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________________ महावीर * ॐ* शान्त, दान्त, गम्भीर, दयालु, परोपकारी, शान्तमूर्ति योगीराज श्री १०८ श्री शान्तिविजयजी पवित्र सेवा में अभिनन्दन पत्र एवं उपाधि-समर्पण मोगीराज ! श्री बामणवाड़जी तीर्थ में श्री नवपदजी की चैत्री ओली पर तथा श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महा सम्मेलन के शुमावसर पर, भारतवर्ष के मिन्न-भिन्न प्रान्तों से आकर एकत्रित हुए जैन संघ को यह जानकर अत्यन्त हर्ष हुआ है कि आपने योगाभ्यास द्वारा शुद्ध और परिष्कृत आत्मबल से अनेक राजा महाराजा, सेठ साहूकार, हिन्द, मुसलमान, ईसाई, पारसी इत्यादिकों को आत्मा की उन्नति के लिये मंत्रोपदेश तथा जीवदया पालन का उपदेश देकर लगभग सारे भारतवर्ष में अहिंसा धर्म का सन्देश पहुँचा कर अनेक जीवों की रक्षा कराई है तथा आपने अनेक जीवों को मदिरापान और मांसाहार से बचाकर उनके प्रति महद् उपकार किया है। - आपके इस परोपकार का बदला चुकाना तो हमारी सामर्थ्य के बाहर है किन्तु इसके स्मरण स्वरूप हम आपको 'अनन्तजीवप्रतिपाल योगलब्धि सम्पन्न राजराजेश्वर' पद विनयपूर्वक अर्पण करते हैं और आपकी आत्मा दिन प्रतिदिन अधिकाधिक शुद्ध और पवित्र होकर अनेक जीवात्माओं का आपके द्वारा उपकार हो, यह शासनदेव से प्रार्थना करते हैं। श्री संघ की आज्ञा से, विनीतभभूतमल चतराजी, दलीचन्द वीरचन्द, श्रीबामणवाड़जी तीर्थ, ) डाह्याजी देवीचन्द, मिती वैशाख वदी ३ गुरुवार रणछोड़भाई रायचन्द मोतीचन्द, . संवत् १६१०. गुलाबचन्द डड्ढा, आदि तारीख ।। अप्रेल सन् १९३९. ) श्री संघ सेवक।
SR No.541501
Book TitleMahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC P Singhi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1933
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size18 MB
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