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________________ पौरपाली की शानवीरता [२५ रहने वाले प्रोसवाल, पौरवाल, श्रीमाली आदि असंख्यजन जैन धर्मावलम्बी एवं वैष्णव धर्मी क्षत्रिय राजपूत आदि प्रजायें एक सहस्त्र वर्ष पूर्व इसी अदाचल की पवित्र भूमि के आसपास चन्द्रावती, अमरावती, लाखावती आदि नगरियों में निवास करती थीं और वहां के निवासी अत्यन्त धनवान् , बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ थे, जिनकी धर्म श्रद्धा एवं भाक्ति भाव की सादी आबू कुम्भारिया आदि के जैन मन्दिर स्पष्ट दे रहे हैं। जिन्होंने कोट्यावधि द्रव्य देव-धर्म के निमित्त व्यय किया है। और ऐसे मन्दिर बनवाए हैं कि सारे संसार में धार्मिक भावना का प्राचीन काल का ज्वलन्त इतिहास प्रकट करने वाले अन्यत्र कहीं भी नहीं है। ऐसे अपूर्व और पाश्चर्यकारक व शिल्प कला के चरम सीमा के नमूने बनवाने वाले और भसंख्य द्रव्य को खर्च करने वाले प्रात:स्मरणीय विमणशाह शेठ गुजरात के राजा भीमदेव के प्रधान मन्त्री वीर के पुत्र थे और वे प्राग्वाट ( पोरवाल ) ज्ञाति में उत्पन्न हुए थे । यदि इस अवसर पर ऐसे महानुभाव पुरुष के चरित्र के विषय में थोड़ा कहा जाय तो वह अयोग्य न होगा। पाटन नगर के प्रतिष्ठापक चावडा वंशीय वनराज से मादि लेकर इस वंश के अन्यान्य राजा तथा अनन्तर सोलंकी वंश के राज्यकर्ता राजा उस समय जैनाचार्यों का अच्छा सन्मान करते थे और जैनधर्म की ओर भी अच्छी सहानुभूति एवं श्रद्धा रखते थे। गुजरात में जैनधर्म उस समय उन्नत दशा में था और अधिक तर राज-कार्य पोरवाल वंश के लोग ही करते थे। उनका क्षत्रिय रानामों के साथ विशेष संबन्ध होने से शक्कि (देवी) के उपासक पोरवाल भी अम्बिका आदि देवियों के परम भक्त होते थे । उक्त मंत्री विमनशाह मी जगदम्बा का परम भक्त था और उसकी सहायता से पवित्र भूमि आबू पर प्रथम अम्बिका के देवालय का निर्माण करा कर तदन्तर जैन मन्दिरों का निर्माण कराया था। विमलशाह बालकाल में अपनी माता के साथ कुछ काल अपने मातुल पक्ष में निवास करते थे और विद्याभ्यास करते थे। उनके अलौकिक गुणों से और रूप लावण्य से प्राकृष्ट होकर पाटण के नगर-शेठ श्रीदत्त ने अपनी कन्या श्रीदेवी का संबन्ध उनके साथ किया था। श्रीदेवी भी अत्यन्त सुन्दरी और देवगुरु भक एवं धर्म में पूर्ण श्रद्धा रखने वाली श्राविका थी और दोनों का परस्पर संबन्ध सोने में सुगन्ध की तरह था। उस मुलक्षणी कन्या के साथ संबन्ध होने के
SR No.541501
Book TitleMahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC P Singhi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1933
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size18 MB
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