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पौरवाल जाति प्रगति की ओर हमारे पौरवाल समाज में बुरे २ रस्म और रिवाज न मालूम किस तरह से घुसे हुए हैं कि अब उनमें जरा भी परिवर्तन करना धर्म के नियम को सोड़ना माना जाता है। वृद्ध विवाह और बाल विवाह के कीट हमारे समाज के जीवन को बुरी तरह से नष्ट कर रहे हैं । इस विषय पर सम्मेलन ने प्रस्ताव किया है परन्तु इसको कार्यरूप में रखना पोरवाल समाज के नवयुवकों का कर्तव्य है। उपरोक्त दोनों प्रथाएं बड़ी भयानक तथा हानिकारक हैं। अतएव अब इनका यहां से निरन्तर पावासस्थान करने का विचार है । हे जाति के नेताओ ! क्या अब भी मांखें नहीं खुलती ? क्या अभी दुःख का घडा नहीं भरा है ? क्या अभी अवनति चरम सीमा तक नहीं पहुंची ? क्या अभी गिरना और बाकी है ? क्या आपकी निद्रा उस समय आपका त्याग करेगी जिस समय यह विषमयी कुरीतियें जाति का मृलोच्छेदन कर जायगी ? अब क्या कमी रही है ? अबतो अपनी जाति पर दया करके इसके हित के उपायों की योजना करो। कमर कसकर इस जाति की उन्नति करने के लिये अपने प्राणों को अर्पण करदो । जाति के सच्चे नेता व नायक वे ही हैं जो उसके सच्चे सेवक हैं। जो निस्वार्थता से उसकी सेवा करते हों-उसके कल्याण के लिये ही अपने तन मन धन का भोग देते हों।
हम कभी उन्नत यहां थे, आज अवनत बन गये । भाव सारे धर्ममय थे, पाप में सब सन गये। हम कभी ऊंचे चढे थे, आज नीचे गिर गये। ये भयानक चक्र हैं हा !, सिर अचानक फिर गये ।। यह हमारी जाति सारी, ग्रह दशा में पड़ गई। दुर्भाग्य इस कीच में, धस कर यहां ही अड़ गई ।। अब दुर्दशा निज जाति की, आंखों लखी जाती नहीं । हे वीर सुत ! ये देख कर भी हा ! तरस आती नहीं ॥ हे दीन रक्षक जिनेश ! मेरी, प्रार्थना स्वीकार हो । इस दुर्दशा का नाश हो, इस जाति का उद्धार हो । मिलकर सभी कुछ सोचकर, उद्योग कुछ ऐसा करै । . कि जिससे जाति पौरवाल, फिर जग कर उन्नति करै ॥ ..
-सम्पादक: