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________________ श्री अखिल भारतीय पोरवाड़ महा-सम्मेलन श्री बामण वाड़जी तीर्थ (सिरोही) . सभापति का भाषण अरिहन्ते सरणं पवज्जामि, सिद्धे सरणं पवज्जामि । . साहु सरणं पवज्जाभि, केवलिपणत्तं धम्म सरणं पवज्जामि ॥ पूज्यपाद् गुरु महाराजाओं, स्वागतकारिणी सभा के सभापति महोदय, प्रविनिधि बन्धुओं, बहनें और अन्य सजनवृन्द । 5 मारवाड़ की अति प्राचीन और पवित्र भूमि पर मिलने वाले 'श्री अखिलभौशीवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन' के प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष स्थान के लिए मुझे नित कर आपने मुझे जो मान और गौरव दिया, है उसके लिए मैं आप सबका हृदय से उपकार मानता हूँ। इस पद को शोभावे ऐसे, अपनी ज्ञाति में अनेक विद्वान पुरुष, मुझसे भी अधिक योग्यता रखने वाले, मौजूद होते हुए भी, आपने मेरी ही नियुक्ति करके इस पद को ग्रहण करने की मुझे आज्ञा की और आपकी उस प्रेमपूर्ण आज्ञा को मुझे शिरोधार्य ही करनी पड़ी। मैं यह पद बड़ी नम्रता के साथ प्रहण करता हूँ और साथ ही साथ आपसे यह भी निवेदन करना उचित समझता हूँ: कि मेरे में जो असंख्य त्रुटियाँ मौजूद हैं उनका मुझे पूरा ज्ञान है । परन्तु मुझे माशा हैक उनत्रुटियों को समाज सेवा के पवित्र कार्य के निमित्त एकत्रित हुए भाप सब ' . . .
SR No.541501
Book TitleMahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC P Singhi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1933
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size18 MB
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