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महावीर प्रतिक्रमण करते हो तो भाई सच्चा प्रति-क्रमण सीखो । 'दब्बो खेतो कालो भावो' । समय पर समय जाने तो वचन बखाने । उनाले के कपड़े सियाले में काम नहीं भाते । समय को देख कर काम करो। समाज सुधार पर भाषण करते साधु संकोच करते हैं, परंतु मैं कहता हूं कि उपदेश जरूर देना चाहिए । आप विचार करें कि जिसके घर कन्या विक्रय होता है उसके वहाँ का माहार साधु को कल्पता है क्या ? राजा भोज ने एक जगह कहा है कि लड़की के गांव का घास, पानी लोहू के समान है । फिर जहाँ कन्या विक्रय हो और पंच उसके यहाँ लाडू जीम आवे तो क्या कहा जाय ? आप विश्व प्रेम करना भूल गये हो लड्डू प्रेम आपके हृदय में भर गया है। तभी तो किसी भाई के घर मृत्यु हो और आप लड्डू जीमने पहुंच जाते हो । अहिंसा से प्रेम हो तो ६० हजार हाथियों की हिंसा अपने सिर क्यों लेते हो ? हाथी दांत का चूड़ा पहिरना पहिराना छोड़ो। चूड़ा प्रत्यक्ष में हाथ पर ही क्या आत्मा पर भी मैल चढ़ाता है। देखो दिगम्बर भाइयों का एक मन्दिर अजमेर में सोनीजी के मन्दिर के नाम से मशहूर है वहां चूड़ा पहिरने वाली स्त्री मन्दिर में नहीं जाने पाती। स्वर्ग के मन्दिर में चूड़ा पहिर कर तुम कैसे जाने पायोगी ?......"इस विषय को आपने बहुत अच्छी तरह समझाया और कहा कि प्रतिज्ञा करो कि चूड़ा नहीं पहिरेंगे न पहिरावेंगे । सम्मेलन भी इसका प्रस्ताव रक्खे । - योगिराज का उपदेश खाली नहीं गया । त्रियों ने अपने स्थान पर से स्वयं सेवकों द्वारा कहलाया कि हम चूड़ा का त्याग करने को तैयार हैं, यदि हमारे मर्द तय्यार हो जाएँ । इस पर पंडाल में चहल पहल मच गई । एक दूसरे को चूड़ा का त्याग करने पर जोर देने लगे। बहुत से पुरुषों ने खड़े होकर एवं हाथ उठा कर चूड़ा न पहिराने की शपथ ली।
योगिराज ने अन्त में कहा कि मेरे को माषण के लिये आपने टाइम की जो मिक्षा दी है उसका मैं धन्यवाद देता हूँ । महानुभावो ! इस मरुभूमि में ऐसा महोत्सव यह एक भाग्य का प्रसंग है। गर्मियों में हवा खाने के लिये ठंडे पहाड़ों पर जाने वाले बहुत से भाई मरुभूमि की हवा खाने आये हैं, यह समाज का सद् भाग्य ही समझिये । बस आप अपनी त्रुटियों के जानकार बनिये और उन्हें मिठा कर आगे बढ़िये, यही मेरी नम्र विनती है।"