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जैन आरती संग्रह
HAPPER
DEYO
परस्परोपग्रहो जीवानाम्
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विषय-सूची (जय जिनेन्द्र)
1. मंत्र जपो नवकार मनवा ....
2. जय बोलो भगवान की...........
3. जिनेन्द्र प्रार्थना- जय जिनेन्द्र ......
4.
जय जय आरती आदि जिणंदा..
5.
6.
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श्री पंच परमेष्टि प्रभु की आरती ........
श्री ऋषभदेव की आरती (1)
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7.
श्री ऋषभदेव की आरती (2).
8.
श्री ऋषभदेव की आरती (3).
9. श्री आदिनाथ भगवान की आरती (1)...........
10. श्री आदिनाथ भगवान की आरती (2). 11. श्री आदिनाथ भगवान की आरती (3).. 12. श्री अजितनाथ भगवान की आरती ........ 13. श्री सम्भवनाथ भगवान की आरती ......... 14. श्री अभिनन्दन नाथ भगवान की आरती. 15. श्री सुमतिनाथ भगवान की आरती.. 16. श्री पद्मप्रभ भगवान की आरती .....
17. श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की आरती. 18. श्री चंद्रप्रभ भगवान की आरती .....
25. श्री वासुपूज्य भगवान की आरती... 26. श्री विमलनाथ भगवान की आरती ...
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19. श्री चंद्रप्रभ भगवान की आरती ... 20. श्री चन्द्र प्रभु जी की आरती................. 21. श्री पुष्पदंतनाथ भगवान की आरती ......... 22. श्री शीतलनाथ भगवान की आरती (1) 23. श्री शीतलनाथ भगवान की आरती (2). 24. श्री श्रेयांसनाथ भगवान की आरती ...
......
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27. श्री अनंतनाथ भगवान की आरती
28. श्री शांतिनाथ भगवान की आरती .
29. श्री शांतिनाथ की आरती
30. श्री शांतिनाथ की आरती ..........
31. भगवान श्री शांति, कुंथ, अरहनाथ भगवान की आरती..
32. श्री कुंथुनाथ भगवान की आरती.......
33. श्री अरहनाथ भगवान की आरती.
34. श्री मल्लिनाथ भगवान की आरती
35. श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान की आरती (1).
36. श्री मुनिसुव्रतनाथ जी की आरती (2).
37. श्री नमिनाथ भगवान की आरती.......
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38. श्री नेमिनाथ भगवान की आरती........ 39. श्री पारसनाथ भगवान की आरती (1)............ 40. श्री पारसनाथ भगवान की आरती (2).............. 41. श्री पार्श्वनाथ भगवान (मैं तो आरती ऊतारूँ रे..)........ 42. श्री पार्श्वनाथ जी भगवान की आरती ............. 43. श्री पारसनाथ प्रभु भगवान की आरती ............ 44. श्री पारसनाथ प्रभु - हम सब उतारे थारी आरती........ 45. श्री पार्श्वनाथ भगवान की आरती ..... 46. श्री पार्श्वनाथ भगवान की आरति .. 47. श्री पार्श्वनाथ भगवान - मैं तो आरती ऊतारूँ ....... 48. अहिच्छत्र पार्श्वनाथ तीर्थ की आरती................ 49. श्री महावीर स्वामी भगवान की आरती (1)..... 50. श्री महावीर स्वामी भगवान की आरती (2).......... 51. श्री महावीर स्वामी भगवान की आरती (3)........ 52. श्री महावीर स्वामी भगवान की आरती (4)...... 53. श्री महावीर स्वामी भगवान की आरती (5)......... 54. श्री चाँदनपुर महावीर स्वामी की आरती... 55. श्री वर्धमान जी भगवान की आरती ................. 56. श्री महावीर वंदना-जो मोह माया......... 57. रंग लाग्यो महावीर.... 58. श्री पद्मावती माता की आरती (1).... 59. श्री पद्मावती माता की आरती (2)............. 60. श्री जिनराज की.. 61. बाजे छम-छम-छम छम बाजे घुघरू ....... 62. झूम-झूम के........... 63. मंगल दीवो ............ .............. 64. श्री महालक्ष्मीमाता की आरति...... 65. श्री शिखर जी आरती....... 66. श्री गौतमस्वामीजी की आरति.......... 67. श्री सरस्वतीमाता की आरति.. 68. श्री घंटाकर्ण महावीरनी की आरति ..... 69. श्री बाहुबली भगवान की आरति(1).. 70. श्री बाहुबली भगवान की आरति(2)... 71. श्री चौबीस भगवान की आरति ............ 72. तुमसे लागी लगन 73. अयोध्या तीर्थ की आरती ....... 74. कम्पिलपुरी तीर्थ की आरती 75. कुण्डलपुर तीर्थ की आरती.. 76. कौशाम्बी तीर्थ की आरती. 77. चन्द्रपुरी तीर्थ की आरती .......... 78. चम्पापुर तीर्थ की आरती... 79. Mभिका तीर्थ की आरती....
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80. मिथिलापुरी तीर्थ की आरती..... 81. रत्नपुरी तीर्थ की आरती... 82. राजगृही तीर्थ की आरती .... 83. शौरीपुर तीर्थ की आरती... 84. सिहपुरी तीर्थ की आरती .. 85. हस्तिनापुर तीर्थ की आरती.... 86. इन्द्रध्वज विधान की आरती 87. कर्मदहन विधान की आरती.... 88. कल्पद्रुम विधान की आरती.......... 89. कल्याण मंदिर विधान की आरती ............. 90. गणधरवलय विधान की आरती ................. 91. श्री चैत्य भक्ति विधान की मंगल आरती ............ 92. चौंसठ ऋद्धि विधान की आरती .... 93. जिनगुणसंपत्ति विधान की आरती .... 94. तीन लोक विधान की आरती...... 95. तीस चौबीसी विधान की आरती 96. त्रैलोक्य विधान की आरती .... 97. धर्मचक्र विधान की आरती ............... 98. नन्दीश्वर मण्डल विधान की आरती ... 99. नवग्रह शांति विधान की आरती ...... 100.नवदेवता विधान आरती ............... 101.पंच परमेष्ठी विधान की आरती... 102.पंचमेरू विधान की आरती...... 103.पुण्यास्रव विधान की आरती..... 104.भक्तामर मण्डल विधान की आरती... 105.मृत्युंजय विधान की आरती ..................... 106.विश्वशांति महावीर विधान की आरती...... 107.विषापहार विधान की आरती. 108.षट्खण्डागम विधान की आरती................... 109.सर्वतोभद्र मण्डल विधान की आरती ............ 110.सहस्रनाम विधान की आरती ... 111.सिध्दचक् विधान की आरती. 112.कैलाश पर्वत की मंगल आरती...... 113.क्षेत्रपाल देव की आरती................. 114.गणधर स्वामी की आरती ........ 115.गणिनी ज्ञानमती माताजी की आरती(1)........... 116.श्री ज्ञानमती माताजी की आरती (2)............... 117.श्री ज्ञानमती माताजी की आरती (3)........... 118.श्री ज्ञानमती माताजी की आरती (4)........ 119.गिरनार सिद्धक्षेत्र तीर्थ की आरती................ 120.गोमुख देव की आरती........ 121.चक्रेश्वरी माता की आरती...
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122.चौबीस तीर्थंकर जन्मभूमि की आरती ............. 123.जम्बूद्वीप की आरती....... 124.तीर्थकर पंचकल्याणक भूमि की आरती... 125.तेरहद्वीप रचना की आरती............ 126.दशधर्म की आरती........... 127.धरणेन्द्र देव की मंगल आरती...... 128.भगवान श्री धर्मनाथ की आरती .. 129.नन्दीश्वर पर्व की आरती ... 130.मंगल आरती ....... 131.परम पूज्य आर्यिका श्री रत्नमती माताजी की आरती ..... 132.पावापुरी सिद्धक्षेत्र की मंगल आरती.................. 133.पावापुरी सिद्धक्षेत्र वंदना.............. 134.पूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की आरती ....... 135.मध्यलोक के चार सौ अट्ठावन जिनमंदिर की आरती ..... 136.महामानसी माता की आरती ... 137.मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र की आरती ............ 138.लक्ष्मी माता की आरती ..... 139.विद्यमान बीस तीर्थंकर की आरती. 140.शांतिसागर महाराज की आरती... ........... 141.श्री गौतम स्वामी की मंगल आरती ........... 142.श्री सुदर्शन मेरू की आरती(1)........... 143.श्री सुदर्शन मेरू की आरती (2)........ 144.श्री वीरसागर महाराज की आरती....... 145.समवसरण की आरती........ 146.सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र की आरती ..... 147.सरस्वती माता की आरती............... 148.सहस्रकूट जिनबिम्ब की आरती..... 149.सिद्धायिनी माता की आरती .... 150.ह्रीं प्रतिमा की आरती ........
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मंत्र जपो नवकार मनवा
मंत्र जपो नवकार मनवा
मंत्र जपो नवकार मंत्र जपो नवकार मनवा, मंत्र जपो नवकार पाँच पदों के पैंतीस अक्षर, हैं सुख के आधार हैं सुख के आधार मनवा, हैं सुख के आधार मंत्र जपो नवकार मनवा, मंत्र जपो नवकार
9 नवकार मंत्र ॐ नमो अरिहंताणं ।
ॐ नमो सिद्धाणं । ॐ नमो आयरियाणं । ॐ नमो उवज्झायाणं । ॐ नमो लोएसव्वसाहूणं ऐसोपंच नमोक्कारो सब्व पावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलं ।
प्राकृत | णमो अरिहंताणं | णमो सिद्धाणं णमो आयरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं एसोपंचणमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो | मंगला णं च सव्वेसिं, पडमम हवई मंगलं
अर्थ अरिहंतो को नमस्कार हो। सिद्धों को नमस्कार हो। आचार्यों को नमस्कार हो। उपाध्यायों को नमस्कार हो।. लोक के सर्व साधुओं को नमस्कार यह णमोकार महामंत्र सब पापो का नाश करने वाला तथा सब मंगलो मे प्रथम मंगल है।
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जय बोलो भगवान की अरिहंतो को नमो नमः सिद्धो को नमो नमः
आचार्यों को को नमो नमः जय बोलो भगवान की जय बोलो भगवान की जय बोलो भगवान की उपाध्याय जय बोलो भगवान की
सर्वसाधु को नमो नमः पंच परमेष्ठि नमो नमः जय बोलो भगवान की णमो-णमो अरिहंताणम् णमो-णमो अरिहंताणम् णमो-णमो श्री सिदाणं णमो-णमो श्री सिदाणं णमो-णमो आयरियाणं णमो-णमो आयरियाणं णमो-णमो उव्वझायणं णमो-णमो उव्वझायणं णमो-लोए सर्वेसाहूणं
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जिनेन्द्र प्रार्थना - जय जिनेन्द्र
जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र बोलिए। जय जिनेन्द्र की ध्वनि से, अपना मौन खोलिए || सुर असुर जिनेन्द्र की महिमा को नहीं गा सके। और गौतम स्वामी न महिमा को पार पा सके। जय जिनेन्द्र बोलकर जिनेन्द्र शक्ति तौलिए। जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, बोलिए।
जय जिनेन्द्र ही हमारा एक मात्र मंत्र हो जय जिनेन्द्र बोलने को हर मनुष्य स्वतंत्र हो । जय जिनेन्द्र बोल-बोल खुद जिनेन्द्र हो लिए। जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र बोलिए || पाप छोड़ धर्म छोड़ ये जिनेन्द्र देशना । अष्ट कर्मको मरोड़ ये जिनेन्द्र देशना || जाग, जाग, जग चेतन बहुकाल सो लिए। जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र बोलिए || है जिनेन्द्र ज्ञान दो, मोक्ष का वरदान दो ।
कर रहे प्रार्थना, प्रार्थना पर ध्यान दो || जय जिनेन्द्र बोलकर हृदय के द्वार खोलिए ।
जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र, जय जिनेन्द्र बोलिए || जय जिनेन्द्र की ध्वनि से अपना मौन खोलिए ।
मुक्तक
द्वार है सब एक दस्तक भिन्न है। भाव है सब एक मस्तक भिन्न है।
जिंदगी स्कूल है ऐसी जहाँपाठ है सब एक पुस्तक भिन्न है।
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जय जय आरती आदि जिणंदा जय जय आरती आदि जिणंदा, नाभिराया मरुदेवी को नन्दाः। पहेली आरती पूजा कीजे, नरभव पामीने लाहो लीजे, जय....॥1॥ दूसरी आरती दीनदयाळा, धूलेवा मंडपमां जग अजवाळ्या, जय... ॥2॥ तीसरी आरती त्रिभुवन देवा, सुर नर इंद्र करे तोरी सेवा, जय... ॥3॥ चौथी आरती चउ गति चूरे, मनवांछित फल शिवसुख पूरे, जय... ॥4॥ पंचमी आरती पुण्य उपाया, मूळचंदे ऋषभ गुण गाया, जय...॥5॥
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श्री पंच परमेष्टि प्रभु की आरती यह विधि मंगल आरती की जय, पंच परम पद भज सुख लीजे पहेली आरती श्री जिनराजा, भव दधि पार उतर जिहाजा I यह विधि मंगल आरती की जय, पंच परम पद भज सुख लीजे
दूसरी आरती सिद्धन केरी, सुमरण करत मिटे भव फेरी I यह विधि मंगल आरती की जय, पंच परम पद भज सुख लीजे
तीजी आरती सूर मुनिंदा, जनम मरन दुःख दूर करिंदा I यह विधि मंगल आरती की जय, पंच परम पद भज सुख लीजे ___ चोथी आरती श्री उवझाया, दर्शन देखत पाप पलाया I
यह विधि मंगल आरती की जय, पंच परम पद भज सुख लीजे पाचवी आरती साधू तिहारी, कुमति विनाशक शिव अधिकारी I यह विधि मंगल आरती की जय, पंच परम पद भज सुख लीजे
छट्टी ग्यारह प्रतिमा धारी, श्रावक वंदो आनद करी I यह विधि मंगल आरती की जय, पंच परम पद भज सुख लीजे
सातवी आरती श्री जिनवाणी, ज्ञानत सुरग मुक्ति सुखदानी I यह विधि मंगल आरती की जय, पंच परम पद भज सुख लीजे आठवी आरती श्री बाभुबली स्वामी, करी तपस्या हुए मोख गामी I यह विधि मंगल आरती की जय, पंच परम पद भज सुख लीजे जो यह आरती करे करावे, सौ नर मन वांछित फल पावे I यह विधि मंगल आरती की जय, पंच परम पद भज सुख लीजे सौने का दीप कपूर की बाती, जगमग ज्योति जले सारी राती I यह विधि मंगल आरती की जय, पंच परम पद भज सुख लीजे संध्या कर के आरत की जे, अपनों जनम सफल कर लीजे I यह विधि मंगल आरती की जय, पंच परम पद भज सुख लीजे
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श्री ऋषभदेव की आरती (1)
ॐजय वृषभेष प्रभो, स्वामी जय वृषभेश प्रभो । पंचकल्याणक अधिपति, प्रथम जिनेश विभो।।ॐ जय.॥टेक.।।
वदि आषाढ़ दुतीया, मात गरभ आए। स्वामी.......। नाभिराय मरुदेवी के संग, सब जन हरषाए।।ॐ जय.॥१॥
धन्य अयोध्या नगरी, जन्में आप जहाँ।...। चैत्र कृष्ण नवमी को, मंगलगान हुआ।।ॐ जय.॥२॥
कर्मभूमि के कर्ता, आप ही कहलाए।स्वामी .......। असि मसि आदि क्रिया बतलाकर, ब्रह्मा कहलाए।।ॐ जय.॥३।। नीलांजना का नृत्य देखकर, मन वैराग्य हुआ|स्वामी......।
चैत्र कृष्ण नवमी को, दीक्षा धार लिया।।ॐजय.।।४।।
सहस वर्ष तप द्वारा, केवल रवि प्रगटास्वामी......। फाल्गुन कृष्ण सुग्यारस, समवसरण बनता।।ॐ जय.॥५॥
माघ कृष्ण चौदस को, मोक्ष धाम पाया।स्वामी......। गिरि कैलाश पे जाकर, स्वातम प्रगटाया।।ॐजय.॥६॥ ऋषभदेव पुरुदेव प्रभू की, आरति जो करते।स्वामी......। क्रम क्रम से “चंदनामती' वे, पूर्ण सुखी बनते।।ॐजय ।।७।।
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श्री ऋषभदेव की आरती (2)
प्रभु आरति करने से, सब आरत टलते हैं। जनम-जनम के पाप सभी, इक क्षण में टलते हैं। मन-मंदिर में ज्ञानज्योति के दीपक जलते हैं।।प्रभु.।।टेक.।।
श्री ऋभषदेव जब जन्में-हां-हां जन्में,
कुछ क्षण को भी शांति हुई नरकों में। स्वर्गों से इन्द्र भी आए....हां-हां आए, प्रभु जन्मोत्सव में खुशियां खूब मनाएं।।
ऐसे प्रभु की आरति से, सब आरत टलते हैं।
मन मंदिर में ज्ञानज्योति.........॥प्रभु.॥१॥ धन-धन्य अयोध्या नगरी-हां-हां नगरी, पन्द्रह महीने जहां हुई रतन की वृष्टी।
हुई धन्य मात मरूदेवी-हां-हां देवी,
जिनकी सेवा करने आईं सुरदेवी।। उन जिनवर के दर्शन से सब पातक टलते हैं।
मन मंदिर में ज्ञानज्योति.........॥प्रभु.॥२॥ सुख भोगे बनकर राजा-हां-हां राजा, वैराग्य हुआ तो राजपाट सब त्यागा। मांगी तब पितु से आज्ञा-हां-हां आज्ञा, निज पुत्र भरत को बना अवध का राजा।।
वृषभेश्वर जिन के दर्शन से, सब सुख मिलते हैं।
मन मंदिर में ज्ञानज्योति.........॥प्रभु.॥३।। इक नहीं अनेकों राजा-हां-हां राजा, ‘चंदनामती' प्रभु संग बने महाराजा। प्रभु हस्तिनागपुर पहुंचे-हां-हां पहुंचे, आहार प्रथम हुआ था श्रेयांस महल में।।
पंचाश्चर्य रतन उनके महलों में बरसते हैं।।
मन मंदिर में ज्ञानज्योति.........॥प्रभु.॥४॥ तपकर कैवल्य को पाया-हां-हां पाया, तब धनपति ने समवसरण रचवाया। फिर शिवलक्ष्मी को पाया-हां-हां पाया, कैलाशगिरि पर ऐसा ध्यान लगाया।।
दीप जला आरति करने से आरत टलते हैं। मन मंदिर में ज्ञानज्योति.........॥प्रभु.॥५॥
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श्री ऋषभदेव की आरती (3) जयति जय जय आदि जिनवर, जयति जय वृषभेश्वरं। जयति जय घृतदीप भरकर, लाए नाथ जिनेश्वरं।।टेक.।।
गर्भ के छह मास पहले से रतनवृष्टी हुई।
तेरे उपदेशों से प्रभु जग में नई सृष्टी हुई।। मात मरुदेवी पिता श्री नाभिराय के जिनवरं।।जयति.....॥१॥
जन्मभूमि नगरि अयोध्या त्याग भूमि प्रयाग है।
शिव गए कैलाशगिरि से तीर्थ ये विख्यात है।। पंचकल्याणकपती पुरुदेव देव महेश्वरं।।जयति...........॥२॥
तुमसे जो निधियां मिलीं वे इस धरा पर छा गई।
नर में ही नहिं नारियों के भी हृदय में समा गई। मात ब्राह्मी-सुन्दरी के पूज्य पितु जगदीश्वरं।।जयति.....॥३।।
तेरी आरति से प्रभो आरत जगत का दूर हो।
"चंदनामती' रत्नत्रय निधि मेरे मन में पूर्ण हो।। ज्ञान की गंगा बहे , आशीष दो परमेश्वरं।।जयति..........॥४॥
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श्री आदिनाथ भगवान की आरती (1)
आरती उतारूँ आदिनाथ भगवान की आरती उतारूँ आदिनाथ भगवान की माता मरुदेवि पिता नाभिराय लाल की रोम रोम पुलकित होता देख मूरत आपकी
आरती हो बाबा, आरती हो,
प्रभुजी हमसब उतारें थारी आरती तुम धर्म 'धुरन्धर धारी, तुम ऋषभ प्रभु अवतारी तुम तीन लोक के स्वामी, तुम गुण अनंत सुखकारी इस युग के प्रथम विधाता, तुम मोक्ष मार्म के दाता जो शरण तुम्हारी आता, वो भव सागर तिर जाता हे... नाम हे हजारों ही गुण गान की ... तुम ज्ञान की ज्योति जमाए, तुम शिव मारग बतलाए तुम आठो करम नशाए, तुम सिद्ध परम पद पाये मैं मंगल दीप सजाऊँ, मैं जग मग ज्योति जलाऊँ
मैं तुम चरणों में आऊँ, मैं भक्ति में रम जाऊँ हे झूम-झूम-झूम नाचूँ करूँ आरती।
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श्री आदिनाथ भगवान की आरती (2)
जय जय आरती आदि जिणंदा, नाभिराया मरुदेवी को नन्दाः। पहेली आरती पूजा कीजे, नरभव पामीने लाहो लीजे
जय... ॥1॥ दूसरी आरती दीनदयाळा, धूलेवा मंडपमां जग अजवाळ्या
__ जय... ॥2॥ तीसरी आरती त्रिभुवन देवा, सुर नर इंद्र करे तोरी सेवा
जय... ॥3॥ चौथी आरती चउ गति चुरे, मनवांछित फल शिवसुख पूरे
जय... ॥4॥ पंचमी आरती पुण्य उपाया, मूळचंदे ऋषभ गुण गाया
जय... ॥5॥
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श्री आदिनाथ भगवान की आरती (3)
जगमग जगमग आरती कीजै, आदिश्वर भगवान की | प्रथम देव अवतारी प्यारे, तीर्थंकर गुणवान की | जगमग
अवधपुरी में जन्मे स्वामी, राजकुंवर वो प्यारे थे, मरु माता बलिहार हुई, जगती के तुम उजियारे थे, द्वार द्वार बजी बधाई, जय हो दयानिधान की || जगमग
बड़े हुए तुम राजा बन गये, अवधपुरी हरषाई थी, 2 भरत - बाहुबली सुत मतवारे मंगल बेला आई ; थी, 2 करें सभी मिल जय जयकारे, भारत पूत महान की | जगमग नश्वरता को देख प्रभुजी, तुमने दीक्षा धारी थी, 2 देख तपस्या नाथ तुम्हारी, यह धरती बलिहारी थी | प्रथम देव तीर्थंकर की जय, महाबली बलवान की || जगमग
बारापाटी में तुम प्रकटे, चादंखेड़ी मन भाई है, जगह-जगह के आवे यात्री, चरणन शीश झुकाई है | फैल रही जगती में "नमजी" महिमा उसके ध्यान की || जगमग (0
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श्री अजितनाथ भगवान की आरती
आरति करो रे..
श्री अजितनाथ तीर्थंकर जिन की आरति करू रे । आरति करो, आरति करो, आरति करो रे.
श्री अजितनाथ तीर्थंकर जिन की आरति करो रे || टेक.।।
नगरि अयोध्या धन्य हो गयी, जहाँ प्रभू ने जन्म लिया,
माघ सुदी दशमी तिथि थी, इन्द्रों ने जन्मकल्याण किया। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, जितशत्रु पिता, विजयानन्दन की आरति करो रे || श्री अजितनाथ ॥१॥
हाथी चिन्ह सहित तीर्थंकर, स्वर्ण वर्ण के धारी हैं, माघ सुदी नवमी को प्रभु ने, जिनदीक्षा स्वीकारी है। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, केवलज्ञानी तीर्थंकर प्रभु की आरति करो रे || श्री अजितनाथ ।।२।।
चैत्र सुदी पंचमी तिथी थी, गिरि सम्मेद से मुक्त हुए, पाई शाश्वत् सिद्धगती, उन परम जिनेश्वर को प्रणमें। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
उन सिद्धशिला के स्वामी प्रभु की आरति करो || श्री अजितनाथ ॥३॥
सुर नर मुनिगण भक्ति-भाव से, निशदिन ध्यान लगाते हैं, कर्म शृंखला अपनी काटें, परम श्रेष्ठ पद पाते हैं। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
" चंदनामती" शिवपद आशा ले, आरति करो रे || श्री अजितनाथ ॥४॥
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श्री सम्भवनाथ भगवान की आरती
मैं तो आरती उतारूं रे, सम्भव जिनेश्वर की, जय जय जिनेन्द्र प्रभु, जय जय जय-२॥टेक॥ इस युग के तृतीय प्रभू, तुम्हीं तो कहलाए, तुम्हीं.. पिता दृढ़रथ सुषेणा मात, पा तुम्हें हरषाए, पा.... अवधपुरी धन्य-धन्य, इन्द्रगण प्रसन्नमन, उत्सव मनाएं रे हो जन्म उत्सव मनाएँ रे ॥ मैं..
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मगशिर सुदी पूनो तिथी, हुए प्रभु वैरागी, हुए.. सिद्ध प्रभुव की ले साक्षी, जिनदीक्षा धारी, जिन.... श्रेष्ठ पद की चाह से, मुक्ति पथ की राह ले, आतम को ध्याया रे प्रभू ने आतम को......।। . ..............॥२॥
वदि कार्तिक चतुर्थी तिथि, केवल रवि प्रगटा, केव....... इन्द्र आज्ञा से धनपति ने, समवसरण को रचा, समवसरण...... दिव्यध्वनि खिर गई, ज्ञानज्योति जल गई, शिवपथ की ओर चले, अनेक जीव शिवपथ की ओर चले । मैं......॥३॥ चैत्र सुदि षष्ठी तिथि को, मोक्षकल्याण हुआ, मोक्ष.. प्रभू जाकर विराजे वहाँ, सिद्धसमूह भरा, सिद्ध... सम्मेदगिरिवर का, कण-कण भी पूज्य है, मुक्ति जहां से मिली, भूको मुक्ति जहाँ से मिली॥ मैं...........................॥४॥
स्वर्ण थाली में रत्नदीप ला, आरति मैं कर लूँ, आरति.. करके आरति प्रभो तेरी, मुक्तिवधू वर लूँ, मुक्ति.......... त्रैलोक्य वंद्य हो, काटो जगफंद को, 'चंदनामती' ये कहे प्रभूजी " चंदनामती” ये कहे । । मैं.. ..11411
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श्री अभिनन्दन नाथ भगवान की आरती
अभिनंदन प्रभू जी की आज, हम सब आरति करें। बड़ा सांचा प्रभू का दरबार, सब मिल आरति करें।।टेक.॥
राजा स्वयंवर के घर जब थे जन्में,
इन्द्रगण आ मेरू पे अभिषेक करते, नगरी अयोध्या में खुशियां अपार, प्रजाजन उत्सव करें,
अभिनंदन प्रभू जी की ......॥१॥
माघ सुदी बारस की तिथि बनी न्यारी,
प्रभुवर ने उग्र वन में दीक्षा थी धारी, त्रैलोक्य पूज्य प्रभुवर की आज, सब मिल आरति करें,
अभिनंदन.............॥२॥ पौष सुदी चौदस में केवल रवि प्रगटा, प्रभु की दिव्यध्वनि सुनकर जग सारा हर्षा, केवलज्ञानी प्रभुवर की आज, सब मिल आरति करें,
अभिनंदन.............॥३॥ शाश्वत निर्वाणथली सम्मेद गिरि है,
वहीं पे प्रभू ने मुक्तिकन्या वरी है, मुक्तिरमापति प्रभू की आज, सब मिल आरति करें,
अभिनंदन.............॥४॥ प्रभु तेरे द्वारे हम आरति को आए,
आरति के द्वारा भव आरत मिटाएं, "चंदनामति'' मिले शिवमार्ग, सब मिल आरति करें
अभिनंदन............॥५॥
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श्री सुमतिनाथ भगवान की आरती
आरती सुमति जिनेश्वर की, सुमति प्रदाता, मुक्ति विधाता, त्रैलोक्य ईश्वर की।।टेक.॥
इक्ष्वाकुवंश के भास्कर, हे स्वर्णप्रभा के धारी। सुर, नर, मुनिगण ने मिलकर, तव महिमा सदा उचारी||आरती....॥१॥
साकेतपुरी में जन्मे, माता सुमंगला हरषीं। जनता आल्हादिक मन हो, आकर तुम वन्दन करती।।आरती...॥२॥
श्रावण शुक्ला दुतिया को, प्रभु गर्भकल्याण हुआ है। फिर चैत्र शुक्ल ग्यारस को, सुरपति ने न्हवन किया है।।आरती....॥३॥
वैशाख शुक्ल नवमी तिथि, लौकान्तिक सुरगण आए। सिद्धों की साक्षीपूर्वक, दीक्षा ले मुनि कहलाए।।आरती....॥४॥
निज जन्म के दिन ही प्रभु को, केवल रवि प्रगट हुआ था। इस ही तिथि शिवरमणी ने, आ करके तुम्हें वरा था।।आरती....॥५॥
सम्मेदशिखर की पावन, वसुधा भी धन्य हुई थी। देवों के देव को पाकर, मानो कृतकृत्य हुई थी।।आरती....॥६॥
उस मुक्तिथान को प्रणमू, नमूं पंचकल्याणक स्वामी।। “चंदनामती” तुम आरति, दे पंचमगति शिवगामी।।आरती....॥७।
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श्री पद्मप्रभ भगवान की आरती
पद्मप्रभू भगवान हैं, त्रिभुवन पूज्य महान हैं, भक्ति भाव से आरति करके, मिटे तिमिर अज्ञान है । । टेक.।। मात सुसीमा धन्य हो गयी, जन्म लिया जब नगरी में। जन्म....... स्वर्ग से इन्द्र-इन्द्राणी आकर, मेरू पर अभिषेक करें ।। मेरू..
कौशाम्बी शुभ धाम है, जहाँ जन्में श्री भगवान हैं। भक्ति भाव से आरति करें, मिटे तिमिर अज्ञान है ॥ १ ॥ कार्तिक वदि तेरस शुभ तिथि थी, वैभव तृणवत छोड़ दिया। वैभव.... मुक्तिमा की प्राप्ती हेतू, ले दीक्षा शुभ ध्यान किया। दीक्षा..
वह भू परम महान है, जहां दीक्षा लें भगवान हैं। भक्ति भाव से आरति करें, मिटे तिमिर अज्ञान है || २ || चैत्र शुक्ल पूनो तिथि तेरी, केवलज्ञान कल्याण तिथी। केवल...... मोहिनि कर्म का नाश किया, मिल गई प्रभो अर्हत् पदवी || मिल...
समवसरण सुखखान है, दिव्यध्वनि खिरी महान है। भक्ति भाव से आरति करें, मिटे तिमिर अज्ञान है || ३ || फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी तिथि में, प्रभु कहलाए मुक्तिपती । प्रभु... लोक शिखर पर जाकर तिष्ठे, सदा जहां शाश्वत सिद्धी ।। सदा..... शिखर सम्मेद महान है, मुक्ति गए भगवान हैं।
भक्ति भाव से आरति करें, मिटे तिमिर अज्ञान है ॥४॥ सुर नर वंदित कल्पवृक्ष प्रभु, तुम पद्मा के आलय हो । कहे ‘चंदनामती' पद्मप्रभु, भविजन सर्व 'सुखाल हो
करें सभी गुणगान है, मिले मुक्ति का दान है। भक्ति भाव से आरति करें, मिटे तिमिर अज्ञान है ॥ ५ ॥
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श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की आरती
आओ सभी मिल आरति करके, श्री सुपार्श्व गुणगान करें। मुक्ति रमापति की आरति, सब भव्यों का कल्याण करें ।। टेक.।। धनपति ने आ नगर बनारस, में रत्नों की वर्षा की,
गर्भ बसे भादों सुदि षष्ठी, पृथ्वीषेणा माँ हरषीं, गर्भकल्याणक की वह तिथि भी, मंगलमय भगवान करें। मुक्ति रमापति की आरति, सब भव्यों का कल्याण करें ॥ १ ॥ ज्येष्ठ सुदी बारस जिनवर का, सुरगिरि पर अभिषेक हुआ, उस ही तिथि दीक्षा ली प्रभु ने, राज-पाट सब त्याग दिया, फाल्गुन वदि षष्ठी शुभ तिथि में, केवलज्ञान कल्याण करें। मुक्ति रमापति की आरति, सब भव्यों का कल्याण करें ॥ २ ॥ फाल्गुन वदि सप्तमि को प्रभुवर, श्री सम्मेदशिखर गिरि से, मुक्तिरमा को वरने हेतू, चले सिद्धिपति बन करके, कर्मनाश शिव वरने वाले, हमको सिद्धि प्रदान करें। मुक्ति रमापति की आरति, सब भव्यों का कल्याण करें || ३ || रत्नथाल में मणिमय दीपक, को प्रज्वलित किया स्वामी,
मोहतिमिर के नाशन हेतू, तव शरणा आते प्राणी, इसी हेतु “चंदनामती”, हम भी तेरा गुणगान करें। मुक्ति रमापति की आरति, सब भव्यों का कल्याण करें ॥ ४ ॥
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श्री चंद्रप्रभ भगवान की आरती
आरति करूँ श्री चंद्रप्रभु की, आरति करूँ प्रभु जी |टेक.।। पहली आरति गर्भकल्याणक - २
जी॥आरति.॥१॥
पन्द्रह मास रतनवृष्टी की, आरति करूँ प्रभु दूजी आरति जन्मोत्सव की - २
मेरू सुदर्शन पर अभिषव की, आरति करूँ प्रभु जी || आरति ।।२।। तीज है निष्क्रमण दिवस की - २
सुर अनुमोदन की, आरति करूँ प्रभु चौथी आरति केवलि प्रभु की - २
द्वादशगणयुत समवसरण की, आरति करूँ प्रभु जी || आरति ॥४॥ पंचम आरति पंचम गति की - २
लौकांतिक
जी।आरति ॥३॥
मोक्ष धाम संयुत जिनवर की, आरति करूँ प्रभु जी || आरति ॥५॥ पंचकल्याणकपति प्रभु तुम हो - २
नाश किया संसार भ्रमण को, आरति करूँ प्रभु जी ।।आरति ॥६॥ आरति से भव आरत छुटता-२
करें “चंदनामति” प्रभु वन्दन, आरति करूँ प्रभु जी ।।आरति ॥७॥
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श्री चंद्रप्रभ भगवान की आरती
जय चंद्रप्रभु देवा, स्वामी जय चंद्रप्रभुदेवा। तुम हो विघ्न विनाशक स्वामी, तुम हो विघ्न विनाशक स्वामी पार करो देवा, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा ० मात सुलक्षणा पिता तुम्हारे महासेन देवा चन्द्र पूरी में जनम लियो हैं स्वामी देवों के देवा तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा ० जन्मोत्सव पर प्रभु तिहारे, सुर नर हर्षाये
रूप तिहार महा मनोहर सब ही को भायें तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा ० बाल्यकाल में ही प्रभ तमने दीक्षा ली प्यारी
भेष दिगंबर धारा, महिमा हैं न्यारी तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
____ जय चंद्रप्रभु देवा ० फाल्गुन वदि सप्तमी को, प्रभु केवल ज्ञान हुआ खुद जियो और जीने दो का सबको सन्देश दिया तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा ० अलवर प्रान्त में नगर तिजारा, देहरे में प्रगटे मूर्ति तिहारी अपने अपने नैनन, निरख निरख हर्षे तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
जय चंद्रप्रभु देवा ० हम प्रभु दास तिहारे, निश दिन गुण गावें पाप तिमिर को दूर करो, प्रभु सुख शांति लावें तुम हो विघ्न विनाशक, स्वामी पार करो देवा ॥
__ जय चंद्रप्रभु देवा ०
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श्री चन्द्र प्रभु जी की आरती
म्हारा चन्द्र प्रभु जी की सुन्दर मूरत, म्हारे मन भाई जी || टेक सावन सुदि दशमी तिथि आई, प्रगटे त्रिभुवन राईजी || अलवर प्रांत में नगर तिजारा, दरशे देहरे मांही जी ||| सीता सती ने तुमको ध्याया, अग्नि में कमल रचायाजी || मैना सती ने तुमको ध्याया, पति का कुष्ट मिटाया जी || जिनमें भूत प्रेत नित आते, उनका साथ छुड़ाया जी || सोमा सती ने तुमको ध्याया, नाग का हार बनाया जी || मानतुंग मुनि तुमको ध्याया, तालों को तोड़ भगाया जी || जो भी दुखिया दर पर आया उसका कष्ट मिटाया जी || अंजन चोर ने तुमको ध्याया, शस्त्रों से अधर उठाया जी || सेठ सुदर्शन तुमको ध्याया, सूली का सिंहासन बनाया जी || समवशरण में जो कोई आया, उसको पार लगाया जी || रत्न जड़ित सिंहासन सोहे, ता में अधर विराजे जी || तीन छत्र शीष पर सोहें, चौंसठ चंवर दुरावें जी || ठाड़ो सेवक अर्ज करै छै, जनम मरण मिटाओ जी || भक्त तुम्हारे तुमको ध्यावैं बेड़ा पार लगाओ जी ||
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श्री पुष्पदंतनाथ भगवान की आरती
ॐ जय पुष्पदन्त स्वामी, प्रभु जय पुष्पदन्त स्वामी। काकन्दी में जन्में, त्रिभुवन में नामी ॥ ॐ जय ॥ फाल्गुन कृष्णा नवमी, गर्भकल्याण हुआ। स्वामी....... जयरामा सुग्रीव मात-पितु, हर्ष महान हुआ | | ॐ जय ॥१॥
मगशिर शुक्ला एकम, जन्मकल्याणक है। स्वामी...... तपकल्याणक से भी, यह तिथि पावन है । ॐ जय ॥२॥ कार्तिक शुक्ला दुतिया, घातिकर्म नाशा। स्वामी......... पुष्पकवन में केवल - ज्ञानसूर्य भासा॥ॐ जय ॥३॥ भादों शुक्ला अष्टमि, सम्मेदाचल से। स्वामी....... सकल कर्म विरहित हो, सिद्धालय पहुँचे || ॐ जय ॥४॥
हम सब घृतदीपक ले, आरति को आए स्वामी...... यही " चंदनामती” कहे, भव आरत नश जाए ॥ ॐ जय ॥५॥
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श्री शीतलनाथ भगवान की आरती (1)
___ ॐ जय शीतलस्वामी, प्रभु जय शीतलस्वामी।
घृतदीपक से करूँ आरती, तुम अन्तर्यामी।।ॐ जय.॥ भद्दिलपुर में जन्म लिया प्रभु, दृढ़रथ पितु नामी।।स्वामी.।। मात सुनन्दा के नन्दा तुम, शिवपथ के स्वामी।।ॐ जय.॥१॥ ___ जन्म समय इन्द्रों ने, उत्सव खूब किया।।स्वामी.।। मेरू सुदर्शन ऊपर, अभिषव खूब किया।।ॐ जय.।।२।। पंचकल्याणक अधिपति, होते तीर्थंकर।।स्वामी.।। तुम दसवें तीर्थंकर, हो प्रभु क्षेमंकर।।ॐ जय.॥३।। अपने पूजक निन्दक के प्रति, तुम हो वैरागी।।स्वामी.।। केवल चित्त पवित्र करन निज, तुम पूजें रागी।।ॐ जय.।।४।।
चन्दन मोती माला आदी, शीतल वस्तु कहीं।।स्वामी.॥ चन्द्ररश्मि गंगाजल में भी, शाश्वत शान्ति नहीं।।ॐ जय.।।५।।
पाप प्रणाशक शिव सुखकारक, तेरे वचन प्रभो।स्वामी.॥ आत्मा को शीतलता शाश्वत, दे तव कथन विभो।।ॐ जय.॥६॥
जिनवर प्रतिमा जिनवर जैसी, हम यह मान रहे।।स्वामी.।। प्रभो “चन्दनामति'' तव आरति, भव दुख हानि करे।।ॐ जय.॥७॥
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श्री शीतलनाथ भगवान की आरती (2)
आरति करने आए जिनवर द्वार तिहारे-हाँ द्वार तिहारे ।। शीतल जिन की आरति से, भव-भव के ताप निवारें ।।
__ आरति करने.............॥टेक.॥ भद्दिलपुर नगरी स्वामी, तुम जन्म से धन्य हुई थी, दृढ़रथ पितु अरु मात सुनन्दा, संग प्रजा हरषी थी। जन्मकल्याणक इन्द्र मनाएं, जय-जयकार उचारें।
आरति करने.............॥१॥ चैत्र वदी अष्टमी गर्भतिथि, माघ वदी बारस जन्मे, माघ वदी बारस को दीक्षा, ले मुनियों में श्रेष्ठ बने। शीतलता देते उन प्रभु के, गुण स्तवन उचारें।।
आरति करने................॥२॥ पौष कृष्ण चौदस को केवलरवि किरणें प्रगटी थीं, आश्विन सुदि अष्टमि को प्रभु ने मुक्तिसखी वरणी थी। मोक्षधाम सम्मेदशिखर के, गुण भी सतत उचारें।
आरति करने.............॥३॥ पुण्य उदय से स्वामी जो, तव शीतल वाणी पाऊं, मन का कमल खिलाकर, अपनी आतम निधि विकसाऊं।। शाश्वत शीतलता के हेतू, भक्ति भाव से ध्याएं।
आरति करने.............॥४॥ सुना बहुत है प्रभुवर कितनों, को भवदधि से तारा है,
कितनों ने पाकर तुम शरणा, मुक्तिधाम स्वीकारा है। उसी मुक्ति की प्राप्ति हेतु, अब “इन्दु” चरण चित लाए ।
आरति करने.............॥५॥
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श्री श्रेयांसनाथ भगवान की आरती
प्रभु श्रेयांस की आरति कीजे,
भव भव के पातक हर लीजे ॥ टेक ॥
स्वर्ण वर्णमय प्रभा निराली,
मूर्ति तुम्हारी है मनहारी। प्रभु.. सिंहपुरी में जब तुम जन्में,
सुरगण जन्मकल्याणक करते ।। प्रभु...। विष्णुमित्र पितु, नन्दा माता,
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...॥२॥
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नगरी में भी आनन्द छाता ।। प्रभु... फाल्गुन वदि ग्यारस शुभ तिथि थी, जब प्रभुवर ने दीक्षा ली थी। प्रभु......॥४॥ माघ कृष्ण मावस को स्वामी कहलाए थे केवलज्ञानी।।प्रभु....... ..11411 श्रावण सुदी पूर्णिमा आई, यम जीता शिवपदवी पाई। प्रभु.....................॥६॥ श्रेय मार्ग के दाता तुम हो,
जजे “चंदनामति’” शिवगति दो।। प्रभु.......॥७॥
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श्री वासुपूज्य भगवान की आरती
ॐ जय वासुपूज्य स्वामी, प्रभु जय वासुपूज्य स्वामी। पंचकल्याणक अधिपति-२, तुम अन्तर्यामी।।ॐ जय.।।
चंपापुर नगरी भी, धन्य हुई तुमसे।स्वामी धन्य...... जयरामा वसुपूज्य तुम्हारे, मात पिता हरष।।ॐ जय.॥१॥ बालब्रह्मचारी बन, महाव्रत को धारा। स्वामी महाव्रत...... प्रथम बालयति जग ने, तुमको स्वीकारा।।ॐ जय.॥२॥ गर्भ जन्म तप एवं, केवलज्ञान लिया। स्वामी. चम्पापुर में तुमने, पद निर्वाण लिया।।ॐ जय.।।३।। वासवगण से पूजित, वासुपूज्य जिनवर। स्वामी.. बारहवें तीर्थंकर, है तुम नाम अमर।।ॐ जय.॥४॥ जो कोई तुमको सुमिरे, सुख सम्पति पावे।स्वामी......
पूजन वंदन करके, वंदित हो जावे।।ॐ जय.॥५॥ घृत आरति ले हम सब, तुम आरति करते।स्वामी. उसका फल यह मिले चंदना-मती शुद्ध कर दे।।ॐ जय.।।६।।
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श्री विमलनाथ भगवान की आरती
आरति करो रे,
तेरहवें जिनवर विमलनाथ की आरति करो रे ॥ टेक ॥ कृतवर्मा पितु राजदुलारे, जयश्यामा के प्यारे। वंपिलपुरि में जन्म लिया है, सुर नर वंदें सारे ।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
निर्मल त्रय ज्ञान सहित स्वामी की आरति करो रे ॥ १ ॥
शुभ ज्येष्ठ वदी दशमी प्रभु की, गर्भागम तिथि मानी जाती। है जन्म और दीक्षाकल्याणक, माघ चतुर्थी सुदि आती।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, मनपर्ययज्ञानी तीर्थंकर की आरति करो रे ॥ २॥
सित माघ छट्ठ को ज्ञान हुआ, धनपति शुभ समवसरण रचता। दिव्यध्वनि प्रभु की खिरी और भव्यों का मनः कुमुद खिलता। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, केवलज्ञानी अर्हत प्रभुवर की आरति करो रे || ३ || आषाढ़ वदी अष्टमि तिथि थी, पंचम गति प्रभुवर ने पाई । शुभ लोक शिखर पर राजे जा, परमातम ज्योती प्रगटाई।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, उन सिद्धिप्रिया के अधिनायक की आरति करो रे ||४|| हे विमल प्रभू! तव चरणों में, बस एक आश यह है मेरी। मम विमल मती हो जावे प्रभु, मिल जाए मुझे भी सिद्धगती आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, "चंदना" स्वात्मसुख पाने हेतू आरति करो रे ||५||
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श्री अनंतनाथ भगवान की आरती करते हैं प्रभू की आरति, आतमज्योति जलेगी। प्रभुवर अनंत की भक्ती, सदा सौख्य भरेगी।।
हे त्रिभुवन स्वामी, हे अन्तर्यामी।।टेक.॥ हे सिंहसेन के राजदुलारे, जयश्यामा प्यारे। साकेतपुरी के नाथ, अनंत गुणाकर तुम न्यारे।।
तेरी भक्ती से हर प्राणी में शक्ति जगेगी, प्रभुवर अनंत की भक्ती, सदा सौख्य भरेगी।। हे.....॥१॥
वदि ज्येष्ठ द्वादशी मे प्रभुवर, दीक्षा को धारा था, चैत्री मावस में ज्ञानकल्याणक उत्सव प्यारा था। प्रभु की दिव्यध्वनि दिव्यज्ञान आलोक भरेगी,
प्रभुवर .........................॥२॥
सम्मेदशिखर की पावन पूज्य धरा भी धन्य हुई जहाँ से प्रभु ने निर्वाण लहा, वह जग में पूज्य कही। उस मुक्तिथान को मैं प्रणमूं, हर वांछा पूरेगी,
प्रभुवर ..........................॥३॥
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श्री शांतिनाथ भगवान की आरती
श्री शांतिनाथ सोलहवें जिन की आरति करो रे | टेक.।। प्रभु आरति से सब जन का, मिथ्यात्व तिमिर नश जाता है, भव-भव के कल्मष धुलकर, सम्यक्त्व उजाला आता है, आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री मोहमहामदनाशक भु की आरति करो रे || श्री शांति....॥ १ ॥ प्रभु ने जन्म लिया जब भू पर, नरकों में भी शांति मिली। ऐरादेवी के आंगन में, आनंद की इक लहर चली ॥
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, विश्वसेन के प्रिय नन्दन की आरति करो रे || श्री शांति.....॥२॥ शांतिनाथ निज चक्ररत्न से, षट्खंडाधिपती बने। इस वैभव में शांति न लखकर, रत्नत्रय के धनी बने । आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
श्री शांतिनाथ पंचम चक्री की आरति करो रे || श्री शांति....॥ ३ ॥ जो प्रभु के दरबार में आता, इच्छित फल को पाता है। आत्मशक्ति को विकसित कर, 'चंदनामती' शिव पाता है। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
मुक्ति श्री के अधिनायक प्रभु की आरति करो रे || श्री शांति.....॥४॥
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श्री शांतिनाथ की आरती शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे।
आरती उतारेंगे हम आरती उतारेंगे आरती उतारेंगे हम आरती उतारेंगे शांतिाथ भगवान.. हस्तिनापुर में जनम लिये हे प्रभु देव करे जयकारा हो । जन्म महोत्सव करें कल्याणक, नाचे झूमे गाये हो ॥
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे। शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे। धन्य है माता ऐरा देवी तुम्हें जो गोद उठाई है। विश्वसेन के कुलदीपक ने ज्ञान की ज्योति जगाई है।
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे।
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे। पंचम चक्रवर्ती पद पाये, जग सुख बढा अपार था। द्वादस कामदेव अति सुन्दर जग में बढा ही नाम था।
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे।
शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे। शांति नाथ प्रभु शांति प्रदाता शुचिता सुख अपार दो। जनम-मरण दुःख मेटो प्रभुजी लेना शरण में आप हो ।
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे। शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे
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श्री शांतिनाथ की आरती शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे।
आरती उतारेंगे हम आरती उतारेंगे आरती उतारेंगे हम आरती उतारेंगे
शांतिनाथ भगवान... हस्तिनापुर में जनम लिये हे प्रभु देव करे जयकारा हो।
जन्म महोत्सव करें कल्याणक, नाचे झूमे गाये हो । ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे । शांतिनाथ भगवान...
___ धन्य है माता ऐरा देवी तुम्हें जो गोद उठाई है।
विश्वसेन के कुलदीपक ने ज्ञान की ज्योति जगाई है। ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे । शांतिनाथ भगवान...
पंचम चक्रवर्ती पद पाये, जग सुख बढा अपार था।
द्वादस कामदेव अति सुन्दर जग में बढा ही नाम था। ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे । शांतिनाथ भगवान..
शांति नाथ प्रभु शांति प्रदाता शुचिता सुख अपार दो। जनम-मरण दुःख मेटो प्रभुजी लेना शरण में आप हो।
ऐसे अवतारी की अब हम आरती उतारेंगे। शांतिनाथ भगवान की हम आरती उतारेंगे।
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भगवान श्री शांति, कुंथ, अरहनाथ भगवान की आरती
आरती तीर्थंकर त्रय की, शांति, कुंथु, अरनाथ जिनेश्वर की पदवी त्रय की।आरती.।।टेक.॥
हस्तिनापुरी में तीनों, जिनवर के जन्म हुए हैं। मेरू की पांडुशिला पर, इन सबके न्हवन हुए हैं।।
आरती तीर्थंकर त्रय की ॥१॥ निज चक्ररत्न के द्वारा, छह खण्ड विजय कर डाला। तीनों ने उसे फिर तजकर, जिनरूप दिगम्बर धारा।।
आरती तीर्थंकर त्रय की ॥२॥ कुरुजांगल के ही वनों में, कैवल्य परम पद पाया। निज दिव्यध्वनी के द्वारा, आतमस्वरूप समझाया।।
आरती तीर्थंकर त्रय की ॥३॥ शुभ चार-चार कल्याणक, तीनों जिनवर के हुए हैं। हस्तिनापुरी में ऐसे, इतिहास अनेक जुड़े हैं।।
आरती तीर्थंकर त्रय की ॥४॥ सम्मेदशिखर तीनों की, निर्वाणभूमि कहलाती। “चंदनामती' प्रभु आरति, से भव बाधा नश जाती।।
आरती तीर्थंकर त्रय की ॥५॥
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श्री कुंथुनाथ भगवान की आरती
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं,
आरति करके जनम-जनम के पाप विनशते हैं, सांसारिक सुख के संग आqत्मक सुख भी मिलते हैं, श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं।।टेक.॥
जब गर्भ में प्रभु तुम आए-हां आए, पितु सूरसेन श्रीकांता माँ हरषाए।
सुर वन्दन करने आए-हां आए, श्रावण वदि दशमी गर्भकल्याण मनाएं। हस्तिनापुरी की उस पावन, धरती को नमते हैं,
आरति करके ...................॥१॥
वैशाख सुदी एकम में-एकम में, जन्मे जब सुरगृह में बाजे बजते थे।
सुरशैल शिखर ले जाकर-ले जाकर, सब इन्द्र सपरिकर करें न्हवन जिनशिशु पर। जन्मकल्याणक से पावन, उस गिरि को जजते हैं,
आरति करके ...................॥२॥ फिर बारह भावना भाई-हां भाई, वैशाख सुदी एकम दीक्षा तिथि आई। लौकान्तिक सुरगण आए-हां आए,
वैराग्य प्रशंसा द्वारा प्रभु गुण गाएं। उन मनपर्ययज्ञानी मुनि को, शत-शत नमते हैं, आरति करके ...................॥३॥
केवलरवि था प्रगटा-हां प्रगटा, प्रभु समवसरण रच गया अलौकिक जो था।
दिव्यध्वनि पान करे जो-हां करे जो, भववारिधि से तिर निज कल्याण करे वो। चार कल्याणक भूमि हस्तिनापुर को नमते हैं,
आरति करके ...................॥४॥
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वैशाख सुदी एकम तिथि- हां एकम तिथि, मुक्तिश्री नामा इक प्रियतमा वरी थी। सम्मेदशिखर गिरि पावन - हां पावन, प्रभुवर ने पाया मोक्षधाम मनभावन ।। उसी धाम की चाह "चंदनामति”, हम करते हैं। आरति करके
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श्री अरहनाथ भगवान की आरती
अरहनाथ तीर्थंकर प्रभु की, आरतिया मनहारी है, जिसने ध्याया सच्चे मन से, मिले ज्ञान उजियारी है ।।टेक.।। हस्तिनागपुर की पावन भू, जहाँ प्रभुवर ने जन्म लिया। पिता सुदर्शन मात मित्रसेना का जीवन धन्य किया।। सुर नर वन्दित उन प्रभुवर को, नित प्रति धोक हमारी है,
जिसने ध्याया ..................॥१॥ तीर्थंकर, चक्री अरु कामदेव पदवी के धारी हो। स्वर्ण वर्ण आभायुत जिनवर, काश्यप कुल अवतारी हो।। मनभावन है रूप तिहारा, निरख-निरख बलिहारी है,
जिसने ध्याया ....................॥२॥ फाल्गुन वदि तृतिया को गर्भकल्याणक सभी मनाते हैं। मगशिर सुदि चौदस की जन्मकल्याणक तिथि को ध्याते हैं।।
मगशिर सित दशमी दीक्षा ली, मुनी श्रेष्ठ पदधारी हैं,
जिसने ध्याया ..........
..........॥३॥ कार्तिक सुदि बारस में, केवलज्ञान उदित हो आया था। हस्तिनागपुर में ही इन्द्र ने, समवसरण रचवाया था।। स्वयं अरी कर्मों को घाता, अर्हत्पदवी प्यारी है,
॥४॥
जिसने ध्याया ............ मृत्युजयी बन, सिद्धपती बन, लोक शिखर पर जा तिष्ठे। गिरि सम्मेदशिखर है पावन, जहाँ से जिनवर मुक्त हुए।। जजे “चंदनामति'' प्रभु वर दो, मिले सिद्धगति न्यारी है,
जिसने ध्याया ....................॥५।।
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श्री मल्लिनाथ भगवान की आरती ॐ जय मल्लिनाथ स्वामी, प्रभु जय मल्लिनाथ स्वामी।। शल्य नशें भक्तों की, होवें निष्कामी ॥ ॐ जय...॥ टेक ॥
चैत्र सुदी एकम को, गर्भ बसे आके || स्वामी ॥ प्रजावती मां कुम्भराज पितु, अतिशय हर्षा ।। ॐ जय...॥१॥ जन्म हुआ मिथिला में, मगशिर सुदि ग्यारस || स्वामी ॥ इसी दिवस शुभ दीक्षा लेकर, सफल किया स्वारथ । ॐ जय...॥२॥ पौष कृष्ण दुतिया को, केवलरवि प्रगटा। स्वामी ॥
इन्द्र स्वयं आकर तब, समवसरण रचता ॥ ॐ जय...॥३॥ फाल्गुन सुदि सप्तम को, मोक्षधाम पाया || स्वामी ॥ सम्मेदाचल पर जा, स्वात्मधाम पाया ॥ ॐ जय...॥४॥
स्वर्ण शरीरी पर अशरीरी, बने मल्लिप्रभु जी ।। स्वामी ॥ करे “चंदनामति” तव वन्दन, तुम सम बने मती ॥ ॐ जय...॥५॥
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श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान की आरती (1) ___ मुनिसुव्रत भगवान हैं, सर्वगुणों की खान हैं। आरति करते जो भविजन, क्रम से पाते निर्वाण हैं।।
मुनिसुव्रतनाथ भगवान हैं।।टेक.।। वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, नील प्रभा के धारी हैं।नील... हे हरिवंश शिरोमणि प्रभुवर, छवि तेरी मनहारी है।छवी......
राजगृही शुभ धाम है, जन्में श्री भगवान हैं।।आरति....॥१॥ पितु सुमित्र जी पिता तुम्हारे, सोमादेवी माता हैं।सोमादेवी..... श्रावण वदी द्वितीया तिथि को, गर्भ बसे जगत्राता हैं।।गर्भ..
इन्द्र करें गुणगान हैं, हुआ गर्भकल्याण है।।आरति....॥२॥ शुभ वैशाख वदी बारस तिथि, जब जिनवर ने जन्म लिया। जब...... अरु वैशाख वदी दशमी तिथि, दीक्षा ले वन गमन किया।।दीक्षा.....
प्रभु महिमा सुखदान है, जाने सकल जहान है।आरति....॥३॥
थी वैशाख वदी नवमी, केवल रवि किरणें प्रकट हुईं।केवल....... फाल्गुन कृष्ण सुबारस, गिरि सम्मेदशिखर से मुक्ति मिली।।सम्मेदशिखर...
तीरथराज महान है, प्रभु को हुआ निर्वाण है।।आरति....॥४॥ प्रभू आपकी आरति करके, केवल इक अभिलाष करूँ।।केवल....... मुक्तिवधू मिल जावे “इन्दू'', फेर न भव-भव भ्रमण करूँ।। फेर...
करते जगकल्याण हैं, पावन पूज्य महान हैं। आरति....॥५।।
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श्री मुनिसुव्रतनाथ जी की आरती (2) ____ (चालः- ओम् जय सन्मति देवा.....) ॐ जय मुनिसुव्रतस्वामी, प्रभु जय मुनिसुव्रतस्वामी | भक्ति भाव से प्रणमू, जय अंतरयामी || ॐ जय0 राजगृही में जन्म लिया प्रभु, आनन्द भयो भारी | सुर नर-मुनि गुण गाएँ, आरती कर थारी || ॐ जय)
पिता तिहारे, सुमित्र राजा, शामा के जाया | श्यामवर्ण मूरत तेरी, पैठण में अतिशय दर्शाया ||ॐ जय)
जो ध्यावे सुख& पावे, सब संकट दूर करें | मन वांछित फल पावे, जो प्रभु चरण धरें || ॐ जय0
जन्म मरण, दुख हरो प्रभु, सब पाप मिटे मेरे | ऐसी कृपा करो प्रभु, हम दास रहें तेरे || ॐ जय)
निजगुण ज्ञान का, दीपक ले आरती करुं थारी | सम्यग्ज्ञान दो सबको, जय त्रिभुवन के स्वामी || ॐ जय0
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श्री नमिनाथ भगवान की आरती
श्री नमिनाथ जिनेश्वर प्रभु की, आरति है सुखकारी। भव दुःख हरती, सब सुख भरती, सदा सौख्य करतारी।।
प्रभू की जय .............॥टेक.॥ मथिला नगरी धन्य हो गई, तुम सम सूर्य को पाके, मात वप्पिला, विजय पिता, जन्मोत्सव खूब मनाते, इन्द्र जन्मकल्याण मनाने, स्वर्ग से आते भारी।
भव दुख..........॥प्रभू...........॥१॥ शुभ आषाढ़ वदी दशमी, सब परिग्रह प्रभु ने त्यागा, नमः सिद्ध कह दीक्षा धारी, आत्म ध्यान मन लागा, ऐसे पूर्ण परिग्रह त्यागी, मुनि पद धोक हमारी।
भव दुख.........||प्रभू..........॥२॥ मगशिर सुदि ग्यारस प्रभु के, केवलरवि प्रगट हुआ था, समवसरण शुभ रचा सभी, दिव्यध्वनि पान किया था, हृदय सरोज खिले भक्तों के, मिली ज्ञान उजियारी।
भव दुख..........॥प्रभू...........॥३॥ तिथि वैशाख वदी चौदस, निर्वाण पधारे स्वामी,
श्री सम्मेदशिखर गिरि है, निर्वाणभूमि कल्याणी, उस पावन पवित्र तीरथ का, कण-कण है सुखकारी। __भव दुख..........॥प्रभू...........॥४॥ हे नमिनाथ जिनेश्वर तव, चरणाम्बुज में जो आते,
श्रद्धायुत हों ध्यान धरें, मनवांछित पदवी पाते, आश एक “चंदनामती' शिवपद पाऊँ अविकारी।
भव दुख.........||प्रभू...........॥५॥
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श्री नेमिनाथ भगवान की आरती जय जय नेमिनाथ भगवान, हम करते तेरा गुणगान।
तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।। करते प्रभू जगत कल्याण, तुमने पाया पद निर्वाण, तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।टेक.।। राजुल को त्यागा प्रभुजी ब्याह ना रचाया।
गिरिनार गिरि पर जाकर योग लगाया।। प्राप्त हुआ फिर केवलज्ञान, दूर हुआ सारा अज्ञान, तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।१।।
शिवादेवी माता तुमसे धन्य हुईं थीं।
शौरीपुरी की जनता पुलकित हुई थी।। समुद्रविजय की कीर्ति महान, गाई सुर इन्द्रों ने आन, तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।२।।
सांझ सबेरे प्रभु की आरति उतारूँ। तेरे गुण गाके निज के गुणों को भी पा लूँ।। करे ‘चंदनामति' गुणगान, होवे मेरा भी कल्याण, तेरी आरति से मिटता है तिमिर अज्ञान।।३।।
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श्री पारसनाथ भगवान की आरती (1)
करते हैं प्रभू की आरति, मन का दीप जलेगा। पारस प्रभु की भक्ती से, मन संक्लेश धुलेगा।। जय पारस देवा, जय पारस देवा-२।।टेक.॥ हे अश्वसेन के नन्दन, वामा माता के प्यारे। तेईसवें तीर्थंकर पारस, प्रभु तुम जग से न्यारे।।
तेरी भक्ती गंगा में जो स्नान करेगा। पारस प्रभु की भक्ती से, मन संक्लेश धुलेगा।।जय पारस देवा-४॥१॥
वाराणसि में जन्में, निर्वाण शिखरजी से पाया। इक लोहा भी प्रभु चरणों में, सोना बनने आया।।
सोना ही क्या वह लोहा, पारसनाथ बनेगा। पारस प्रभु की भक्ती से, मन संक्लेश धुलेगा।।जय पारस देवा-४॥२॥
सुनते हैं जग में वैर सदा, दो तरफा चलता है। पर पाश्र्वनाथ का जीवन, इसे चुनौती करता है।।
इक तरफा वैरी ही कब तक, उपसर्ग करेगा। पारस प्रभु की भक्ती से, मन संक्लेश धुलेगा।जय पारस देवा-४॥३॥
कमठासुर ने बहुतेक भवों में, आ उपसर्ग किया। पारसप्रभु ने सब सहकर, केवलपद को प्राप्त किया।।
वैवैवल्य ज्योति से पापों का, अंधेर मिटेगा। पारस प्रभु की भक्ती से, मन संक्लेश धुलेगा।जय पारस देवा-४॥४॥
प्रभु तेरी आरति से मैं भी, यह शक्ती पा जाऊं। "चंदनामती'' तव गुणमणि की, माला यदि पा जाऊं।
तब जग में निह शत्रू का, मुझ पर वार चलेगा। पारस प्रभु की भक्ती से, मन संक्लेश धुलेगा।जय पारस देवा-४॥५॥
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श्री पारसनाथ भगवान की आरती (2)
ॐ जय पारस स्वामी, प्रभु जय पारस स्वामी। वाराणसि में जन्में, त्रिभुवन में नामी।।ॐ जय.॥ अश्वसेन के नंदन, वामा के प्यारे।।माता वामा....... तेइसवें तीर्थंकर-२, तुम जग से न्यारे।।ॐ जय.॥१॥
वदि वैशाख दुतीया, गर्भकल्याण हुआ।स्वामी..... पौष कृष्ण एकादशि-२, जन्मकल्याण हुआ||ॐ जय.।।२।।
जन्मदिवस ही दीक्षा, धारण की तुमने।स्वामी...... बालब्रह्मचारी बन-२, तप कीना वन में।।ॐ जय.॥३॥ कमठासुर ने तुम पर, घोर उपसर्ग किया।स्वामी. अहिच्छत्र में तुमने-२, पद कैवल्य लिया।।ॐ जय.॥४॥
श्री सम्मेदशिखर पर, मोक्षधाम पाया।स्वामी..... मोक्षकल्याण मनाकर-२, हर मन हरषाया।।ॐ जय.॥५॥
___ परमसहिष्णु प्रभू की, आरति को आए।स्वामी...... यही “चंदनामती” अरज है-२, तव गुण मिल जाएं।।ॐ जय.॥६।।
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श्री पार्श्वनाथ भगवान (मैं तो आरती ऊतारूँ रे..)
मैं तो आरती ऊतारूँ रे, पारस प्रभुजी की,
जय-जय पारस प्रभु जय-जय नाथ॥ बड़ी ममता माया दुलार प्रभुजी चरणों में बड़ी करुणा है, बड़ा प्यार प्रभुजी की आँखों में,
गीत गाऊँ झूम-झूम, झम-झमा झम झूम-झूम, भक्ति निहारूँ रे, ओ प्यारा-प्यारा जीवन सुधारूँ रे।
___मैं तो आरती ऊतारूँ रे.... ॥ सदा होती है जय जयकार प्रभुजी के मंदिर में ... (२) नित साजों की होर झंकार प्रभुजी के मंदिर में ... (२) नृत्य करूँ, गीत गाऊँ, प्रेम सहित भक्ति करूँ,
कर्म जलाऊँ रे, ओ मैं तो कर्म जलाऊँ रे, मैं तो आरती ऊतारूँ रे, पारस प्रभुजी की।
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श्री पार्श्वनाथ जी भगवान की आरती
ॐ जय पारस देवा स्वामी जय पारस देवा | सुर नर मुनिजन तुम चरणन की करते नित सेवा | ऊँ जय (0 पौष वदी ग्यारस काशी में आनन्द अति भारी, स्वामी आनन्द (0
अश्वसेन वामा माता उर लीनों अवतारी || ॐ जय () श्याम वरण नवहस्त काय पग उरग लखन सोहैं, स्वामी उरग (0 सुरकृत अति अनुपम पा भूषण सबका मन मोहैं || ॐ जय जलते देख नाग-नागिन को मंत्र नवकार दिया, स्वामी मंत्र (0
हरा कमठ का मान ज्ञान का भानु प्रकाश किया | ॐ जय मात पिता तुम स्वामी मेरे, आस करूं किसकी, स्वामी आस तुम बिन दाता और न कोई शरण गहूं जिसकी || ऊँ जय (0 तुम परमातम तुम अध्यातम तुम अन्तर्यामी, स्वामी तुम(0) स्वर्ग मोक्ष के दाता तुम हो त्रिभुवन के स्वामी || ॐ जय दीनबन्धु दुःख हरण जिनेश्वर, तुमही हो मेरे, स्वामी तुम (0 दो शिवधाम को वास दास, हम द्वार खड़े तेरे || ॐ जय विपद विकार मिटाओ मन का, अर्ज सुनो दाता, स्वामी अर्ज सुनो दाता | सेवक द्वैर जोड़ प्रभु के चरणो चित लाता || ॐ जय
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श्री पारसनाथ प्रभु भगवान की आरती
पारसनाथ प्रभु, पारसनाथ प्रभु हम सब उतारे थारी आरती पारसनाथ-पारसनाथ हम सब उतारे थारी आरती हो... धन्य धन्य माता वामा देवी हो देख-देख लाल को हरषायें
खेले जब गोद में, खुशी तीनो लोक में
खुशियों से भरी ये है आरतीपारसनाथ हम सब उतारे थारी आरती विश्वसेन के लाल भले हो दर्शन से पाप नशते हो
अनुपम छवि सोहे, आनन्द अति देवे श्रद्धा से आरती के बोल-बोल-बोल-बोल पारसनाथ प्रभु,
पारसनाथ प्रभु आज उतारे हम। तुम पारस हो प्रभु जी मैं हूँ लोहा
छू लो छू लो मुझे बन जाऊँ सोना भक्ति से भरी मेरी आरती पारसनाथ प्रभु,
पारसनाथ प्रभु आज उतारे हम।
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श्री पारसनाथ प्रभु - हम सब उतारें थारी आरती
पारसनाथ प्रभु, पारसनाथ प्रभु हम सब उतारे थारी आरती पारसनाथ-पारसनाथ हम सब उतारे थारी आरती हो...
धन्य धन्य माता वामा देवी हो
देख-देख लाल को हरषायें
खेले जब गोद में, खुशी तीनो लोक में खुशियों से भरी ये है आरती-पारसनाथ हम सब उतारे थारी आरती
विश्वसेन के लाल भले हो
दर्शन से पाप नशते हो अनुपम छवि सोहे, आनन्द अति देवे श्रद्धा से आरती के बोल-बोल-बोल-बोल पारसनाथ प्रभ, पारसनाथ प्रभ आज उतारे हम।
तुम पारस हो प्रभु जी
मैं हूँ लोहा छू लो छू लो मुझे बन जाऊँ सोना
भक्ति से भरी मेरी आरती पारसनाथ प्रभु, पारसनाथ प्रभु आज उतारे हम।
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श्री पार्श्वनाथ भगवान की आरती मैं तो आरती ऊतारूँ रे, पारस प्रभुजी की,
जय-जय पारस प्रभु जय-जय नाथ।। बड़ी ममता माया दुलार प्रभुजी चरणों में बड़ी करुणा है, बड़ा प्यार प्रभुजी की आँखों में, गीत गाऊँ झूम-झूम, झम-झमा झम झूम-झूम, भक्ति निहारूँ रे, ओ प्यारा-प्यारा जीवन सुधारूँ रे।
मैं तो आरती ऊतारूँ रे, पारस प्रभुजी की॥ सदा होती है जय जयकार प्रभुजी के मंदिर में ... (२) नित साजों की होर झंकार प्रभुजी के मंदिर में ... (२)
नृत्य करूँ, गीत गाऊँ, प्रेम सहित भक्ति करूँ,
कर्म जलाऊँ रे, ओ मैं तो कर्म जलाऊँ रे, मैं तो आरती ऊतारूँ रे, पारस प्रभुजी की।
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श्री पार्श्वनाथ भगवान की आरति
(राग:- जय जय आरति आदि जिणंदा.....) जय जय आरति पार्श्व जिनन्दा, अश्वसेन वामाजी के नंदा नील वरण कंचनमय काया नाग नागिन प्रभुदर्श सुहाया
___ ध्यावे नित नित होते आनन्दा..... ॥1॥ समवसरण प्रबु आप बिराजे तीनो लोक में दुंदुभी बाजे
देश बनारस के सुखकंदा ॥2॥ ध्यावे....... कमठ काष्ट के ढेर जलाए प्रभुजी जलते नाग बचाए
नाग वो जन्मे पद धरणेन्द्रा ॥3॥ ध्यावे.....
मेघमाली धन जल बरसावे नासाग्रे प्रभु डूबन आवे पद्मावती प्रभु चरण ऊंचावे मेघमाली समकित ले अभिनंदा ॥4॥ रत्नों भरी आरति उजवावे धरणेन्द्र पद्मावती आरति गावे
इन्द्र इन्द्राणीयां हर्ष भरन्दा ॥5॥ ध्यावे. चिंतामणीजी की आरति गावे सो नर नारी अमर पद पावे
आत्मा निर्मल शुद्ध करन्दा ।।6।। ध्यावे....
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श्री पार्श्वनाथ भगवान - मैं तो आरती ऊतारूँ
मैं तो आरती ऊतारूँ रे, पारस प्रभुजी की,
जय-जय पारस प्रभु जय-जय नाथ॥ बड़ी ममता माया दुलार प्रभुजी चरणों में बड़ी करुणा है, बड़ा प्यार प्रभुजी की आँखों में, गीत गाऊँ झूम-झूम, झम-झमा झम झूम-झूम, भक्ति निहारूँ रे, ओ प्यारा-प्यारा जीवन सुधारूँ रे।
मैं तो आरती ऊतारूँ रे...॥ सदा होती है जय जयकार प्रभुजी के मंदिर में ... (२) नित साजों की होर झंकार प्रभुजी के मंदिर में ... (२)
नृत्य करूँ, गीत गाऊँ, प्रेम सहित भक्ति करूँ,
कर्म जलाऊँ रे, ओ मैं तो कर्म जलाऊँ रे, मैं तो आरती ऊतारूँ रे, पारस प्रभुजी की।
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अहिच्छत्र पार्श्वनाथ तीर्थ की आरती
आरति करो रे, प्रभु पार्श्वनाथ अहिच्छत्र तीर्थ की आरति करो रे।।टेक.।।
जिनशासन के तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ प्रभु हैं। उनके पार्श्वनाथ बनने की कथा ग्रंथ में वर्णित है।।
आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, इतिहास पुरुष श्री पार्श्वनाथ की आरति करो रे॥१॥
वाराणसि में गर्भ जन्म, दीक्षा कल्याणक प्राप्त किया। बालब्रह्मचारी बनकर, सांसारिक सुख का त्याग किया।।
आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, श्री अश्वसेन वामानंदन की आरति करो रे।।२।।
कमठाचर के उपसर्गों को, जहाँ प्रभू ने सहन किया। पद्मावति धरणेंद्र ने आ, उपसर्ग दूर कर नमन किया।।
आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, उपसर्ग विजेता पार्श्वनाथ की आरति करो रे॥३॥
पार्श्वनाथ की प्रथम देशना, समवसरण में खिरी जहाँ। उसके ही प्रतिफल में समव-सरण की रचना बनी जहाँ।।
आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, कैवल्यभूमि अहिच्छत्र तीर्थ की आरति करो रे॥४॥
जहाँ पात्रकेसरी मुनी से, संबंधित इतिहास बना । पद्मावति ने पार्श्व फणा पर, लिखकर दिया उन्हें सपना ।।
आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, "चंदनामती" उस तीर्थभूमि की आरति करो रे ॥५।।
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श्री महावीर स्वामी भगवान की आरती (1)
___ॐ जय महावीर प्रभु, स्वामी जय महावीर प्रभु कुंडलपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो ....ॐ जय महा.....॥ सिद्धारथ घर जन्में, वैभव था भारी, स्वामी वैभव था भारी। बाल ब्रह्मचारी व्रत, पाल्यो तपधारी॥ ....ॐ जय महा....॥
आतम ज्ञान विरागी, समदृष्टि धारी। माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योति धारी॥ ....ॐ जय महा.....॥
जग में पाठ अहिंसा, आप ही विस्तारयो। हिंसा पाप मिटा कार, सुधर्म परिचारयो॥ ....ॐ जय महा....॥
यही विधि चाँदनपुर में, अतिशय दर्शायो। ग्वाल मनोरथ पूरयो, दूध गाय पायो॥ ....ॐ जय महा....॥
प्राणदान मंत्री को, तुमने प्रभु दीना। मंदिर तीन शिखर का, निर्मित है कीना॥ ....ॐ जय महा....॥
जयपुर नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी। एक ग्राम तिन दीनों, सेवा हित यह भी। ....ॐ जय महा....॥
जो कोई तेरे दर पर, इच्छा कर जावे। धन, सुत सब कुछ पावै, संकट मिट जावै।। ....ॐ जय महा....॥
निश दिन प्रभु मंदिर में, जगमग ज्योति जरे। हरि प्रसाद चरणों में, आनंद मोद भरे। ....ॐ जय महा....॥
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श्री महावीर स्वामी भगवान की आरती (2)
जय सन्मति देवा, प्रभु जय सन्मति देवा | वर्द्धमान महावीर वीर अति, जय संकट छेवा || टेक
सिद्धारथ नृप नन्द दुलारे, त्रिशला के जाये | कुण्डलपुर अवतार लिया, प्रभु सुर नर हर्षाये || ॐ जय0
देव इन्द्र जन्माभिषेक कर, उर प्रमोद भरिया | रुप आपका लख नहिं पाये, सहस आंख धरिया ||ऊँ जय0
जल में भिन्न कमल ज्यों रहिये, घर में बाल यती | राजपाट ऐश्वर्य छाँड सब, ममता मोह हती || ॐ जय0
बारह वर्ष छद्मावस्था में, आतम ध्यान किया | घाति-कर्म चकचूर, चूर प्रभु केवल ज्ञान लिया || ॐ जय0
पावापुर के बीच सरोवर, आकर योग कसे | हने अघातिया कर्म शत्रु सब, शिवपुर जाय बसे ||ऊँ जय0
भूमंडल के चांदनपुर में, मंदिर मध्य लसे | शान्त जिनेश्वर मूर्ति आपकी, दर्शन पाप नसे || ॐ जय0
करुणासागर करुणा कीजे, आकर शरण गही || दीन दयाला जगप्रतिपाला, आनन्द भरण तुही || ॐ जय
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श्री महावीर स्वामी भगवान की आरती (3)
ऊं जय महावीर प्रभो ! स्वामी जय महावीर प्रभो | जग-नायक सुखदायक , अति गंभीर प्रभो ! ऊं जय ..|| कुण्डलपुर में जन्में त्रिशला के जाए , स्वामी त्रिशला के जाए
पिता सिद्धार्थ राजा , सुर नर हर्षाए | ऊं जय ..।। दीनानाथ दयानिधि हो मंगलकारी , स्वामी हो मंगलकारी |
जगतहित संयम धारा , प्रभु पर उपकारी | ऊं जय ..|| पापाचार मिटाया , सत्पथ दिखलाया , स्वामी सत्पथ ..|
दया धर्म का झंडा , जग में लहराया | ऊं जय ..।। अर्जुनमाली , गौतम, श्री चन्दनबाला , स्वामी श्री चन्दन .. ||
पार जगत से बेडा , इनका कर डाला | ऊं जय .||| पावन नाम तुम्हारा , जग तारणहारा , स्वामी जग तारण .. ||
निश दिन जो नर ध्यावे , कष्ट मिटे सारा | ऊं जय ..|| करूणासागर ! तेरी महिमा है न्यारी , स्वामी महिमा है ..। ‘ज्ञान मुनि ‘गुण गावे , चरणन बलिहारी | ऊं जय ..||
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श्री महावीर स्वामी भगवान की आरती (4)
जय जय देव जय सुखना स्वामी ! प्रभु (2) वंदन करीये तुझने (2) भवभवना भामी ॥1॥ सिद्धारथना सुत ! त्रिशला ना जाया ! प्रभु (2) जशोदाना छो कंथजी (2) त्रिभुवन जगराया ||2||
बालपणामां आप गया रमवा काजे प्रभु ! (2) देवताए दीधो पडछायो (2) बीवराववा काजे ॥3॥
एकवारनुं रुप लीधु छे नागनुं प्रभु ! (2) बीजीवारनुं रुप (2) लीधु बालकनुं ॥4॥ बालक बीना सहु पोते नथी बीता प्रभु (2) देवतानु कई न चाल्युं (2) हारी जता रेता ॥5॥
एवा छे भगवान महावीर तमे जाणो प्रभु (2) छे हुने (2) मे राय राणो ||6|| जयदेव जयदेव..
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श्री महावीर स्वामी भगवान की आरती (5)
जय वीर प्रभो, महावीर प्रभो, की मंगल दीप प्रजाल के मैं आज उतारूं आरतिया।।टेक.।।
सुदी छट्ठ आषाढ़ प्रभूजी, त्रिशला के उर आए। पन्द्रह महिने तक कुबेर ने, बहुत रत्न बरसाये।।प्रभू जी.।। कुण्डलपुर की, जनता हरषी, प्रभु गर्भागम कल्याण पे, मैं आज उतारूं आरतिया॥१॥
धन्य हुई कुण्डलपुर नगरी, जन्म जहां प्रभु लीना । चैत्र सुदी तेरस के दिन, वहां इन्द्र महोत्सव कीना । । प्रभू जी . ।। काश्यप कुल के, भूषण तुम थे, बस एकमात्र अवतार थे, मैं आज उतारूं आरतिया॥२॥
यौवन में दीक्षा धारण कर, राजपाट सब त्यागा। मगशिर असित मनोहर दशमी, मोह अंधेरा भागा। प्रभू जी ॥ बन बालयती, त्रैलोक्यपती, चल दिए मुक्ति के द्वार पे, मैं आज उतारूं आरतिया॥ ३ ॥
शुक्ल दशमि वैशाख में तुमको, केवलज्ञान हुआ था। गौतम गणधर ने आ तुमको, गुरु स्वीकार किया था। प्रभू जी ॥ तव दिव्यध्वनी, सब जग ने सुनी, तुमको माना भगवान है, मैं आज उतारूं आरतिया॥४॥
कार्तिक
पावापुरि सरवर में तुमने, योग निरोध किया था। कृष्ण अमावस के दिन, मोक्ष प्रवेश किया था। प्रभू जी । निर्वाण हुआ, कल्याण हुआ, दीपोत्सव हुआ संसार में, मैं आज उतारूं आरतिया॥५॥
वर्धमान सन्मति अतिवीरा, मुझको ऐसा वर 1 कहे 'चंदनामती' हृदय में, ज्ञान की ज्योति भर दो। प्रभू जी ।। अतिशयकारी, मंगलकारी, ये कल्पवृक्ष भगवान हैं, मैं आज उतारूं आरतिया॥६॥
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श्री चाँदनपुर महावीर स्वामी की आरती
जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो | कुण्डलपुर अवतारी, त्रिशलानन्द विभो || ॐ जय महावीर प्रभो || सिद्धारथ घर जन्मे, वैभव था भारी, स्वामी वैभव था भारी | बाल ब्रह्मचारी व्रत पाल्यौ तपधारी |1| ॐ जय म0 प्रभो |
आतम ज्ञान विरागी, सम दृष्टि धारी | माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योति जारी |2| ॐ जय म0 प्रभो |
जग में पाठ अहिंसा, आपहि विस्तार्यो | हिंसा पाप मिटाकर, सुधर्म परिचार्यो |3| ॐ जय म0 प्रभो |
इह विधि चाँदनपुर में, अतिशय दरशायो | ग्वाल मनोरथ पुर्यो दूध गाय पायो |4| ॐ जय म0 प्रभो |
__ अमर चन्द को सपना, तुमने प्रभु दीना | मन्दिर तीन शिखर का निर्मित है कीना|5| ॐ जय म0 प्रभो |
जयपुर नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी | एक ग्राम तिन दीनों, सेवा हित यह भी |6| ॐ जय म0 प्रभो |
जो कोई तेरे दर पर, इच्छा कर आवे | होय मनोरथ पूरण, संकट मिट जावे |7| ॐ जय म0 प्रभो |
निशि दिन प्रभु मन्दिर में, जगमग ज्योति जरै | हम सेवक चरणों में, आनन्द मोद भरै |8| ॐ जय म0 प्रभो |
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श्री वर्द्धमान जी भगवान की आरती करौं आरती वर्द्धमानकी | पावापुर निरवान थान की टेक
राग – बिना सब जगजन तारे | द्वेष बिना सब कर्म विदारे | शील-धुरंधर शिव-तिय भोगी | मनवच-कायन कहिये योगी | करौं0
रत्नत्रय निधि परिग्रह-हारी | ज्ञानसुधा भोजनव्रतधारी | करौं0 लोक अलोक व्यापै निजमांहीं | सुखमय इंद्रिय सुखदुख नाहीं | करौं0 पंचकल्याणकपूज्य विरागी | विमल दिगंबर अबर-त्यागी | करौं0
गुनमनि-भूषन भूषित स्वामी | जगत उदास जगंतर स्वामी | करौं0 कहै कहां लौ तुम सबजानौं | ‘द्यानत' की अभिलाषा प्रमानौ | करौं0
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श्री महावीर वंदना - जो मोह माया
जो मोह माया मान मत्सर, मदन मर्दन वीर हैं। जो विपुल विघ्नों बीच में भी, ध्यान धारणा धीर हैं।। जो तरण-तारण, भव-निवारण, भव-जलधि के तीर हैं।
वे वंदनीय जिनेश, तीर्थंकर स्वयं महावीर हैं। जो राग-द्वेष विकार वर्जित, लीन आतम ध्यान में। जिनके विराट विशाल निर्मल, अचल केवल ज्ञान में। युगपद विशद सकलार्थ झलकें, ध्वनित हों व्याख्यान में।
वे वर्द्धमान महान जिन, विचरें हमारे ध्यान में॥ जिनका परम पावन चरित, जलनिधि समान अपार है।
जिनके गणों के कथन में, गणधर न पावै पार है। बस वीतरागी-विज्ञान ही, जिनके कथन का सार है।
उन सर्वदर्शी सन्मति को, वंदना शत बार है।। जिनके विमल उपदेश में, सबके उदय की बात है। समभाव समताभाव जिनका, जगत में विख्यात है।। जिसने बताया जगत को, प्रत्येक कण स्वाधीन है। कर्ता न धर्ता कोई है, अणु-अणु स्वयं में लीन है।।
आतम बने परमात्मा, हो शांति सारे देश में। है देशना-सर्वोदयी, महावीर के संदेश में।
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रंग लाग्यो महावीर
रंग लाग्यो महावीर थारो रंग लाग्यो १. थारी भक्ति करवाने म्हारो भाव जाग्यो ॥ रंग लाग्यो....॥ २. थारा दर्शन करवाने म्हारो भाव जाग्यो ॥ रंग लाग्यो...॥ ३. थारा कलशा करवाने म्हारो भाव जाग्यो ॥ रंग लाग्यो...॥ ४. थारा पूजन करवाने म्हारो भाव जाग्यो ॥ रंग लाग्यो....॥ ५. थारी भक्ति करवाने म्हारो भाव जाग्यो ॥ रंग लाग्यो....॥ ६. थारी वंदना करवाने म्हारो भाव जाग्यो ॥ रंग लाग्यो...॥ ७. थारे पैदल आवाने म्हारो भाव जाग्यो ॥ रंग लाग्यो...॥
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श्री पद्मावती माता की आरती (1)
मैं तो आरती उतारूँ रे, पद्मावती माता की जय जय माँ पद्मावती, जय जय माँ।।टेक.॥ सदा होती है जयजयकार, माँ के मंदिर में-२ लागी भक्तन की भीड़ अपार, माँ के मंदिर में-२ पुष्प लाओ, धूप जलाओ, स्वर्णमयी दीप लाओ, आरती उतारो रे, हो सब मिल आरति उतारो रे।।मैं...॥१॥ पाश्र्व प्रभुवर की शासन देवी, सब संकट हरणी-२
देव धरणेन्द्र की यक्षिणी, तुम मंगल करणी-२
__भक्त जब पुकारते, संकट को टारते, महिमा को गाएं तेरी, हो सब मिल महिमा को गावें तेरी।।मैं...॥२॥
पाश्र्व प्रभुवर के मुख से जब मंत्र नवकार सुना-२
बनें पद्मावती धरणेन्द्र, उपसर्ग दूर किया-२
स्थल वह अहिच्छत्र, तब से है जग प्रसिद्ध, पावन परम पूज्य है, हो देखो वो पावन परम पूज्य है।।मैं...॥३॥
रोग, शोक, दरिद्र, नाशें, प्रेतादि की बाधा-२
धन-संपत्ति सुत देकर, पूरी करें वाञ्छा-२
सुन ले आज फिर पुकार, भक्त खड़े तेरे द्वार, अतुल शक्ति की धारिणी, हो तुम हो अतुल शक्ति की धारिणी।।मैं...॥४॥
माँ सहस्रनाम से तेरी, करते जो आराधना-२ गोदी भरते जो माँ तेरी, परी हों सब कामना-२
ममतामयी मेरी मात, 'इन्दु' करे एक आश, जीवन प्रकाशमान हो, हो मेरा भी जीवन प्रकाशमान हो।।मैं...॥५॥
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श्री पद्मावती माता की आरती (2)
पद्मावती माता, दर्शन की बलिहारियां ।। टेक० ॥
पार्श्वनाथ महाराज विराजे मस्तक ऊपर थारे, माता मस्तक ऊपर थारे ।
इन्द्र, फणेन्द्र, नरेन्द्र सभी मिल, खड़े रहें नित द्वारे । हे पद्मावती माता, दर्शन की बलिहारियां ।। दो बार || जो जीव थारो शरण लीनो, सब संकट हर लीनो, माता सब संकट हर लीनो।
पुत्र, पौत्र, धन, धान्य, सम्पदा, मंगलमय कर दीनो । हे पद्मावती माता, दर्शन की बलिहारियां ।। दो बार || डाकिनि, शाकिनि, भूत, भवानी, नाम लेत भग जायें, माता नाम लेत भग जायें।
वात, पित्त, कफ, कुष्ट मिटे अरू तन सुखमय हो जावे। हे पद्मावती माता, दर्शन की बलिहारियां ।। दो बार || दीप, धूप, अरु पुष्प आरती, ले आरति को आयो, माता ले दर्शन को आयो ।
दर्शन करके मात तिहारो, मनवांछित फल पायो । हे पद्मावती माता, दर्शन की बलिहारियां ।। दो बार || जब भक्तों पर पीर पड़ी है रक्षा तुमने कीनी, माता रक्षा तुमने कीनी |
वैरियों का अभिमान चूरकर इज्जत दूनी दीनी । हे पद्मावती माता, दर्शन की बलिहारियां ।।
हे पद्मावती माता, आरति की बलिहारियां ।।
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श्री शिखर जी आरती मधबन के मंदिरों में , भगवन बस रहा है
परास प्रभु के दर पर सोना बरस रहा है अध्यात्मा का यह सोना परस ने खुद ही दिया है ऋषियों ने इस धरा से निर्वाण पद लिया है सदियों इस शिखर का स्वर्णिम सुयश रहा है
परस प्रभु के दर पैर सोना बरस रहा है मधुबन के मंदिरों में भगवन बस रहा है तिर्थंकरो के तप से पर्वत हुआ यह पवन कवली रश्मियों का बरसा यहाँ पर सावन उस ज्ञानामृत के जल से पर्वत हुआ यह पवन परस प्रभु के दर पर सोना बरस रहा है
मधुबन के मंदिरों में पर्वत के गर्भ में है रतनो का वोह खज़ाना जब तक है चाँद सूरज होगा नहीं पुराना जन्मा है जैन कुल में तू क्यों तरस रहा है परस प्रभु के दर पर सोना बरस रहा है मधुबन के मंदिरों में भगवन बस रहा है
नागो को यह परस राजेंद्रे सम बनाये उपसर्ग के समय तोह धर्मेंद्रे बन के आये मधुबन के मंदिरों में भगवन बस रहा है परस प्रभु के दर पर सोना बरुस रहा है मधुबन के मंदिरों में भगवन बस रहा है मधुबन के मंदिरों में , भगवन बस रहा है परास प्रभु के दर पैर सोना बरस रहा है
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श्री जिनराज की आरति श्रीजिनराज तिहारी, करमदलन संतन हितकारी | टेक सुर-नर-असुर करत तुम सेवा, तुमही सब देवन के देवा | आरती0
पंच महाव्रत दुद्धर धारे, राग रोष परिणाम विदारे | आरती0 भव-भय-भीत शरन जे आये, ते परमारथ-पंथ लगाये | आरती0 जो तुम नाम जपै मनमांही, जनम-मरन-भय ताको नाहीं | आरती0
समवसरन-संपूरन शोभा, जीते क्रोध-मान छल लोभा | आरती0 तुम गुण हम कैसे करि गाउँ, गणधर कहत पार नहिं पावैं | आरती0 करुणासागर करुणा कीजे, ‘द्यानत' सेवक को सुख दीजे | आरती0
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बाजे छम-छम-छम छम बाजे घुघरू बाजे छम-छम-छम छम बाजे घुघरू
बाजे घुघरू... हाथों में दीपक लेकर आरती करूँ
बाजे छम-छम... प्रभु को उठाया हाथी पे बैठाया ...(२) पांडुक बन अभिषेक कराया...इसलिए प्रभु तेरी आरती करूँ
दीपक ज्योति से आरती करूँ ...(२) वीर प्रभुजी की मूरत निहारूँ ...(२)
ध्यान लगन चरणों में धरूँ चरणों में धरूँ... हाथों में दीपक लेकर
हम सब प्रभु के गुण को गाएँ प्रभुजी के चरणों में शीश झुकाएँ... इसलिए प्रभु तेरी आरती करूँ
प्रभु तुम बिन मोहे कोई ना संभाले
प्रभु तुम बिन कोई ना पारे लगावे मेरी यही चाह और कुछ ना कहूँ... हाथों में दीपक लेकर आरती करूँ
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झूम-झूम के मैं करू आरती द्वारे, प्रभुजी की झूम-झूम के
झूम-झूम के, झूम-झूम के मैं करू आरती द्वारे, प्रभुजी की झूम-झूम के
आदि प्रभु कैलाशी जिन राजा
आदि प्रभु कैलाशी जिन राजा पाप नशावे शिव सुख दाता, झूम-झूम के
झूम-झूम के रिषभ प्रभु को बुलाउ – बुलाऊ रे मैं – झम मैं झम मैं
वीस तीर्थंकर तारण हारे, सम्मेद शिखर से मोक्ष पधारे झूम-झूम के, झूम-झूम के करू आरती पारस प्रभु, चन्दा प्रभु की
___ चम्पा पुर वासुपूज्य को ध्याऊ गिरनारी नेमी नाथ को निहारू - झूम-झूम के, झूम-झूम के पावापुर महावीर, बुलाऊ तुम्हे झूम-झूम के – मै करू
आरती... प्रभुजी की विन्धागिरी बाहूबली स्वामी विन्धागिरी बाहूबली स्वामी
तन की बेल संयम तप धारी तन की बेल सन्यम तप धारी झूम-झूम के
झूम-झूम के मैं करू आरती, बाहुबलि जी की झूम-झूम के – मैं करू भावना की भक्ति आरती है अर्पण झम-झम के – मैं करू भावना की भक्ति आरती है अर्पण
__सिद्ध क्षेत्र अतिशय को है वन्दन सिद्ध क्षेत्र अतिशय को है वन्दन झूम-झूम के झूम-झूम के परमेष्ठि प्रभु की करू आरती झूम-झूम के
जिन वाणी की करू आरती झूम-झूम के जिन वाणी की करू आरती झूम-झूम के
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मंगल दीवो दीवो रे दीवो प्रभु मंगलिक दीवो, आरती उतारीने बहु चिरंजीवो, दीवो... ॥1॥
सोहमणुं घेर पर्व दीवाळी, अम्बर खेले अमराबाली, दीवो....॥2॥
दीपाळ भणे एणे कुळ अजुवाळी, भावे भगते विघन निवारी, दीवो... ॥3॥
दीपाळ भणे एणे ए कलिकाळे, आरती उतारी राजा कुमारपाळे, दीवो... ॥4॥ ___ अम घेर मंगलिक, तुम घेर मंगलिक, मंगलिक चतुर्विध संघ ने होजो, दीवो... ॥5॥
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श्री महालक्ष्मीमाता की आरति श्री महालक्ष्मीजीनी आरती (रागः- हे शंखेश्वर स्वामी) जय लक्ष्मी माता, मा जय लक्ष्मी माता, तुमकु नीशदिन सेवत (२)
हर विष्णु धाता. जय....... ब्रह्माणी रुद्राणी कमला, तुं ही पे जग माता (२) सूर्य चंद्रमा ध्यावत (२) नारदऋषि गाता...जय... दुर्गा रुप निरंजन, सुख संपत्ति दाता (२) जो कोई तुमकु ध्यावत (२)
अष्ट सिद्धि पाता. जय... तुंही हे पाताल बसंती, तुंही शुभ दाता (२)कर्म प्रभाव प्रकाश (२)
जगनिधि हे त्राता... जय.... जीस घर थोरी बासे जाहिमें गुण आता (२)करन शके सो करले (२)
____धन नहि धरता....जय..... आरती लक्ष्मीजीकी जो कोई नर गाता (२)उर आनंद अति उमंगे पार उतर जाता...जय....
अटाता
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श्री शिखर जी आरती
मधुबन के मंदिरों में, भगवन बस रहा है परास प्रभु के दर पर सोना बरस रहा है अध्यात्मा का यह सोना परस ने खुद ही दिया है ऋषियों ने इस धरा से निर्वाण पद लिया है सदियों इस शिखर का स्वर्णिम सुयश रहा है
परस प्रभु के दर पैर सोना बरस रहा है मधुबन के मंदिरों में भगवन बस रहा है तिर्थंकरो के तप से पर्वत हुआ यह पवन कवली रश्मियों का बरसा यहाँ पर सावन उस ज्ञानामृत के जल से पर्वत हुआ यह पवन परस प्रभु के दर पर सोना बरस रहा है मधुबन के मंदिरों में पर्वत के गर्भ में है रतनो का वोह खज़ाना जब तक है चाँद सूरज होगा नहीं पुराना जन्मा है जैन कुल में तू क्यों तरस रहा है परस प्रभु के दर पर सोना बरस रहा है मधुबन के मंदिरों में भगवन बस रहा है नागो को यह परस राजेंद्रे सम बनाये उपसर्ग के समय तोह धर्मेंद्रे बन के आये मधुबन के मंदिरों में भगवन बस रहा है परस प्रभु के दर पर सोना बरस रहा है मधुबन के मंदिरों में भगवन बस रहा है मधुबन के मंदिरों में, भगवन बस रहा है परास प्रभु के दर पैर सोना बरस रहा है
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श्री गौतमस्वामीजी की आरति (रागः- जय जय आरति आदि जिणंदा....)
___ जय जय आरति गौतमदेवा, सुरनर किन्नर करते सेवा... पहेली आरति विघ्न को चूरे, मनवांछित फल सघलो पूरे... दूसरी आरति मंगलकारी, विघ्न निवारी सुख दातारी... तीसरी आरति करता भावे, दुःख दोहग सवि दूर जावे... चोथी आरति महाप्रभारी,
आशा पूरे देवो आवी... पांचमी आरति पांच प्रकारी, केवळज्ञान देवे जयकारी.... आत्मकमल में लबधिदाता, गौतम आरति करे सुखशाता... मंगल दीपक
श्री गौतम गुरु समरीए, उठी उगमते सुर, लब्धिनो लीलो गुण नीलो, वेली सुख भरपूर ।।1।।
गौतम गोत्रतणे घणी, रुप अतीव भंडार, अट्ठावीस लब्धिनो धणी, श्री गौतम गणधार ।2।।
अमृतमय अंगुठडो, ठवीयो पात्र मोझार, खीर खांड घृत पूरियो, मुनिवर दोढ हजार ॥3॥
पहेलु मंगल श्री वीरनु, बीजुं गौतम स्वामी, त्रीजुं मंगल स्थूलभद्रनु, चो, धर्मनुं ध्यान ।।4।। प्रह उठी प्रणमुं सदा, जीहां जीहां जिनवर भाण, मानविजय उवज्झायनु, होजो कुशल कल्याण ।।5।।
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श्री सरस्वतीमाता की आरति ॥ सरस्वती माता नी आरति ॥ नमोऽर्हत्..... (राग:- हे शंखेश्वर स्वामी...)
जय वागिश्वरी माता, जय जय जननी माता , पद्मासनी भवतारिणी (२) अनुपम रस दाता...........जय वागिश्वरी माता.....
हंसवाहिनी जलविहारिणी, अलिप्त कमल समी (२) ईन्द्रादि किन्नरने (२) सदा तुं हृदये गमी........जय वागिश्वरी माता.....
तुजथी पंडित पाम्या, कंठ शुद्धि सहसा (२) यशस्वी शिशुने करतां (२) सदा हसित मुखा........जय वागिश्वरी माता....
ज्ञान ध्यान दायिनी, शुद्ध ब्रह्म कृपा (२) अगणित गुणदायिनी (२) विश्वे छो अनूपा........जय वागिश्वरी माता.....
__ ऊर्ध्वगामिनी मां तुं, ऊर्चे लइ लेजे (२) जन्म मरण ने टाळी (२) आत्मिक सुख देजे........जय वागिश्वरी माता....
रत्नमयी ऍ रुपा, सदाय ब्रह्म प्रिया (२) कर कमले वीणाथी (२) शोभो ज्ञान प्रिया.......जय वागिश्वरी माता....
दोषो सहुना दहतां, अक्षय सुख आपो (२) साधक इच्छित अपी (२) शिशु उरने तर्पो .....जय वागिश्वरी माता....
आरती – २ नमोऽर्हत्..... ( रागः- जय जय आरति )
___ जय जय आरती देवी तमारी, आश पुरो हे मात अमारी .......जय जय....
वीणा पुस्तक कर धरनारी, अमने आपो बुद्धि सारी........जय जय....
ज्ञान अनंत हृदये धरनारी, तमने वंदे सहु नर नारी.......जय जय...
मात सरस्वती आरती तमारी, करतां जगमां जय जय कारी...जय जय...
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श्री घंटाकर्ण महावीरनी की आरति
(राग:- जय जय आरति आदि जिणंदा....)
घंटाकर्ण महावीर गाजे, जडचेतन जगमहिमा छाजे मनवांछित पूरण करनारा, भक्तजनोना भय हरनारा घंटाकर्ण....॥1॥ आधि व्याधि उपाधि हरता, रोग उपद्रव दुःख संहरता घंटाकर्ण....॥2॥ ऋद्धि सिद्धि मंगल करता, सत्वर सहाये पगला भरता घंटाकर्ण...॥3॥ तुज स्मरणथी वांछित मेळा, भक्तोनी थाती शुभ वेळा धंटाकर्ण... ॥4॥ घंटाकर्ण महावीर तारी, आरति करता जे नर नारी घंटाकर्ण... ॥5॥ आरति चिंता शोक निवारी, धर्मी थतां दोषने टाळी घंटाकर्ण.... ॥6।। गाजी रह्यो जगमांही सघळे, घरमां सागरमां रण वगडे घंटाकर्ण... ॥7॥ सहाय करंतो वादे झगडे, दुष्टोथी कंइ शुभ न बगडे घंटाकर्ण... ॥8॥ देश नगर संघ वर्तो शांति, भक्त जनोनी वधशे कांति घंटाकर्ण... ॥9॥ महामारी भय संकट नासो, आरोग्यानंदे जगवासो घंटाकर्ण... ॥10॥ मंगल माला घर घर प्रगटो, इति उपद्रव विघ्नो विघटो घंटाकर्ण... ॥11॥ शांति आनंदने प्रगटावो, समरंता झट व्हारे आवो घंटाकर्ण... ॥12॥ आत्म महावीर शासन राज्ये, सेवाकारक जगमां गाजे घंटाकर्ण... ॥13॥ बुद्धि सागर आतम काजे, क्षण क्षण व्हेलो सहाये थाजे घंटाकर्ण... ॥14॥
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श्री बाहुबली भगवान की आरति (1) चंदा तू ला रे चंदनिया, सूरज तू ला रे किरणाँ ... (२) तारा सू जड़ी रे थारी आरती रे बाबा नैना सँवारूँ ...(२)
थारी आरती ... चंदा तू...॥ आदिनाथ का लाड़लाजी नंदा माँ का जाया ...(२) राजपाट ने ठोकर मारी, छोड़ी सारी माया ... (२)
बन ग्या अहिंसाधारी, बाहुबली अवतारी तारा सू जड़ी रे थारी आरती, रे बाबा नैना सँवारूँ ... चंदा तू....॥
तन पे बेला चढ़ी नाथ के, केश घोंसला बन गया ...(२) अडिग हिमालय ठाड्या तनके, टीला-टीला चमक्या ...(२)
थारी तपस्या भारी, तनमन सब थापे वारी ताराँ सू जड़ी रे थारी आरती, रे बाबा नैना सँवारूँ ... चंदा तू...॥
जय-जय जयकारा गावें थारा, सारा ये संसारी ...(२) मुक्ति को मार्ग बतलायो, घंण-घंण ए अवतारी ...(२)
'नेमजी' चरणों में आयो, चरणों में शीश झुकायो जुग-जुग उतारे थारी आरती रे, रे बाबा नैना सँवारूँ।
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श्री बाहुबली भगवान की आरति (2)
जयति जय जय गोम्मटेश्वर, जयति जय बाहुबली। जयति जय भरताधिपति, विजयी अनुपम भुजबली
श्री आदिनाथ युगादिब्रह्मात्रिजगपति विख्यात हैं। गुणमणि विभूषित आदिनाथ के भारत और बाहुबली ॥ जयति जय००
वृषभेश जब तप वन चले तब न्याय नीति कर गए। साकेतनगरीपति भरत,पोदनपुरी बाहुबली ॥ जयति जय००
षटखंड जीता भरत मन की नहीं आशा बुझी । निज चक्ररत्न चला दिया फिर भी विजयी बाहुबली ॥ जयति जय००
सब आखिर राज्यविभव तजा, कैलाश पर जा बसे । इक वर्षकाले योग तब, निश्चल हुए बाहुबली ॥ जयति जय००
तन से प्रभु निर्मम हुए वन जंतु क्रीडा कर रहे । सिद्धि रमावरने चले प्रभु वीर बन बाहुबलि ॥ जयति जय००
प्रभु बाहुबली की नग्न मुद्रासीख यह सिखला रही । सब त्याग करके माधुरी तुम भी बनो बाहुबली ॥ जयति जय००
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श्री चौबीस भगवान की आरति ऋषभ अजित संभव अभिनन्दन, सुमति पद्म सुपार्श्व की जय-2 महाराज की श्रीजिनराज की, दीनदयालकी आरती की जय |
चन्द्र पुष्प शीतल श्रेयांस, वासुपूज्य महाराज की जय-2 महाराज की श्रीजिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय | विमल अनन्त धर्म जस उज्ज्वल, शांतिनाथ महाराज की जय-2
महाराज की श्रीजिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय | कुन्थअरह और मल्लि मुनिसुव्रत, नमिनाथ महाराज की जय-2 महाराज की श्रीजिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय |
नेमिनाथ प्रभु पार्श्व जिनेश्वर, वर्धमान महाराज की जय-2 महाराज की श्रीजिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय | इन चौबीसों की आरती करके, आवागमन निवार की जय-2 महाराज की श्रीजिनराज की, दीनदयाल की आरती की जय |
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तुमसे लागी लगन तुमसे लागी लगन ले लो तर्जःगम दिये मुस्तकिल.......
तुमसे लागी लगन ले लो अपनी शरण--पारस प्यारा, मेटो मेटो जी संकट हमारा।
निशदिन तुमको जणूं पर से नेहा तजूं--जीवन सारा, तेरे चरणों में बीते हमारा। तुमसे लागी ... । १ ।
अश्वसेन के राज दुलारे,
वामा देवी के
सुत प्राण प्यारे ।
सबसे नेहा तोडा जग से मुख को मोडा --संयम धारा, मेटो मेटो जी संकट हमारा | तुमसे लागी । २ ।
इन्द्र और धरणेन्द्र भी आये,
देवी पद्मावती मंगल गाये ।
आशा पूरो सदा, दुख नहीं पावे कदा--सेवक थारा,
मेटो मेटो जी संकट हमारा ॥ तुमसे लागी । ३ ।
की तो परवाह नहीं है,
सुख
की भी चाह नहीं है ।
मेटो जामन मरण होवे ऐसा जतन - तारण हारा, मेटो मेटो जी संकट हमारा। तुमसे लागी ॥४॥
जग के
स्वर्ग
दुख
लाखों बार तुम्हें शीश नवाऊं, जग के नाथ तुम्हें कैसे पाऊं।
पंकज व्याकुल भया, दर्शन बिन ये जिया -- लागे खारा,
मेटोमेटो जी संकट हमारा । तुमसे लागी । ५ ।
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अयोध्या तीर्थ की आरती
आरती तीर्थ अयोध्या की - २
तीर्थंकरों की, जन्मभूमि यह, सब मिल करो आरतिया। आरती तीर्थ अयोध्या की ।। टेक ॥
शाश्वत यह पुरी अयोध्या, जग में जानी जाती है। सम्मेदशिखर के सदृश, पावन मानी जाती है।
आरती तीर्थ अयोध्या की ॥ १ ॥ यूं तो इस भू पर सारे, तीर्थंकर सदा जनमते। लेकिन इस युग में जन्में, तीर्थंकर पंच परम थे।
आरती तीर्थ अयोध्या की || २ ||
श्री ऋषभ अजित अभिनंदन, सुमती अनंत जी जन्मे। उन्नीस शेष तीर्थंकर, सब अलग-अलग ही जन्मे ।
आरती तीर्थ अयोध्या की || ३ || तीरथ की पावन रज को, मस्तक पर धारण कर लो। इसकी आरति कर अपने, कष्टों का निवारण कर लो। आरती तीर्थ अयोध्या की ॥४॥
आदीश्वर की खड्गासन, प्रतिमा को नमन करें हम 'चंदनामती" इस शाश्वत, तीरथ को नमन करें हम || आरती तीर्थ अयोध्या की ॥ ५ ॥
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कम्पिलपुरी तीर्थ की आरती
कम्पिलपुरी तीरथ मेरा, पावन परमधाम है, आरती का थाल ले, तीर्थधाम को जनँ, जिनधर्म की शान है।।टेक.।।
तेरहवें तीर्थंकर श्री विमल हैं, जन्म कम्पिलापुर में लिया। धनद ने माता पिता के महल में, पन्द्रह मास रत्नवृष्टि किया।। देव वहाँ आए, कल्याणक मनाए, उत्सव मनावें नगरी में-२ कृतवर्मा पितु, जयश्यामा माँ का, देखो खिला भाग्य है।।
आरती का थाल ले.............॥१॥ आगम में वर्णित है एक गाथा, सती द्रौपदी का कथानक जुड़ा।
राजा द्रुपद की कन्या द्रौपदी, जन्मस्थान यहीं का कहा। पांचाल नगरी की, राजधानी है ये, द्रौपदी तभी पाञ्चाली हुई-२
यह भूमी है ऐतिहासिक, जग भर में विख्यात है।
__ आरती का थाल ले.............॥२॥ प्राचीन इक जिनमंदिर यहाँ है, गंगा किनारे नगरी बसी। जन जन की श्रद्धा का केंद्र है यह, हरिषेण चक्री की भूमी यही।। मैं भी करूँ दर्शन, शीश झुका वंदन, “चंदनामती” मुझे शक्ती मिले।
आत्मा मेरी निर्मल बने, पावे परम धाम है।। आरती का थाल ले.............॥३॥
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काकन्दी तीर्थ की आरती पुष्पदंत जिन जन्मभूमि, काकन्दी तीरथ प्यारा, उतारें आरती-२॥ सुर नर वंदित तीर्थ हमारा, काकन्दी जी न्यारा, उतारे आरती।।टेक.॥
चौबीस तीर्थंकर में, पुष्पदंत स्वामी नवमें जिनवर हैं।।हो...... काकन्दी नगरी तब से, पावन बनी जो सुर नर वंदित है।हो.. इन्द्र, मनुज भी इस नगरी को, शत-शत शीश झुकाएँ, उतारें आरती।।१।।
जयरामा माता और सुग्रीव पितु का शासन था जहाँहो. जन्मे तो उस क्षण पूरा, स्वर्ग ही उतरकर आया था वहाँ।।हो..... चार-चार कल्याणक से पावन नगरी को ध्याएँ, उतारें आरती।।२।।
बीते करोड़ों वर्षों, फिर भी धरा वह पूजी जाती है।हो......
धूल भी पवित्र उसकी, मस्तक को पावन बनाती है।हो. जैनी संस्कृति की दिग्दर्शक, उस भूमी को ध्यावें, उतारें आरती।।३।।
रोमांच होता है जब, उस क्षण की बातें मन में सोच लो।हो..... वन्दन करो उस भू को, निज मन में इच्छा इक ही तुम धरो।।हो.... कब प्रभु जैसा पद हम पाएं, यही भावना भाएँ, उतारें आरती।।४।।
जो भव्य प्राणी ऐसी, पावन धरा को वंदन करते हैं।हो..... क्रम-क्रम से पावें शक्ती, मानव जनम भी सार्थक करते हैं।।हो.. आरति कर सब भव्य जीव, भव आरत से छुट जाएं, उतारे आरती।।५।। प्राचीन इस तीरथ को, विकसित किया है सबने मिल करके।हो.....
गणिनीप्रमुख श्री माता, ज्ञानमती जी से शिक्षा ले करके।।हो...... तभी “चंदनामती” तीर्थ ने, नव स्वरूप है पाया, उतारें आरती।।६।।
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कुण्डलपुर तीर्थ की आरती त्रिशला के ललना महावीर की, जन्मभूमि अति न्यारी है। आरति कर लो कुण्डलपुर की, तीरथ अर्चन सुखकारी है।।टेक.।। है प्रांत बिहार में कुण्डलपुर, जहाँ वीर प्रभू ने जन्म लिया।
राजा सिद्धार्थ और त्रिशला, माता का आंगन धन्य किया। उस नंद्यावर्त महल की सुन्दरता ग्रन्थों में भारी है।आरति....॥१।।
पलने में झुलते वीर दर्श से, मुनि की शंका दूर हुई।
शैशव में संगम सुर ने परीक्षा, ली प्रभु वीर की विजय हुई।। सन्मति एवं महावीर नाम, तब से ही पड़ा मनहारी है।।आरति....॥२।। हुए तीन कल्याणक इस भू पर, जृम्भिका के तट पर ज्ञान हुआ।
प्रभु मोक्ष गए पावापुरि से, इन्द्रों ने दीपावली किया। उन पाँच नामधारी जिन की, महिमा जग भर में न्यारी है।।आरति....३।। __ कुछ कालदोषवश जन्मभूमि का, रूप पुराना नष्ट हुआ।
पर छब्बिस सौंवे जन्मोत्सव में, ज्ञानमती स्वर गूंज उठा।। इतिहास पुनः साकार हुआ, उत्थान हुआ अतिभारी है।आरति....४॥
जिस नगरी की रज महावीर के, कल्याणक से पावन है।
जहाँ इन्द्र-इन्द्राणी की भक्ती का, सदा महकता सावन है।। वहाँ तीर्थ विकास हुआ विस्तृत, तीरथ की छवि अति न्यारी है।।आरति....५।।
प्रभुवर तेरी इस जन्मभूमि का, कण-कण पावन लगता है।
है परिसर नंद्यावर्त महल, जो नंदनवन सम लगता है।। इस विकसित तीर्थ के हर जिनमंदिर, का दर्शन भवहारी है।।आरति....६।।
जिनशासन के सूरज तीर्थंकर, महावीर को नमन करूं।
उन तीर्थ प्रणेत्री माता को भी, भक्तिभाव से मैं वंदूं।। “चंदनामती' यह तीर्थ अर्चना, दे शिवतिय सुखकारी है।।आरति....७।।
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कौशाम्बी तीर्थ की आरती कौशाम्बी तीरथ की, हम आरति करते हैं-२
पद्मप्रभू की जन्मभूमि की, आरति करते हैं। तीरथ की आरति करके, सब आरत टलते हैं।।कौशाम्बी.।।टेक.।।
नृप धरणराज पितु तेरे-हाँ तेरे,अरु मात सुसीमा की कुक्षि से जन्मे। इक्ष्वाकुवंश के भास्कर-हाँ भास्कर,पद्मा के आलय, वन्दन तव पदयुग में।।
लाल कमल सम देहकान्ति, धारक को नमते हैं, तीरथ की आरति करके, सब आरत टलते हैं।।कौशाम्बी.॥१॥ शुभ माघ वदी छठ तिथि में-हाँ तिथि में,गर्भागम मंगल प्राप्त किया प्रभुवर ने। कार्तिक कृष्णा तेरस थी-तेरस थी,त्रैलोक्य विभाकर उदित हुआ भू पर ही।।
स्वर्ग से इन्द्र-इन्द्राणी आ जन्मोत्सव करते हैं, तीरथ की आरति करके, सब आरत टलते हैं।।कौशाम्बी.॥२॥ कैवल्यज्ञान को पाया-हाँ पाया,वह तीरथ आज प्रभाषगिरी कहलाया। फाल्गुन कृष्णा थी चतुर्थी-हाँ चतुर्थी, निर्वाणश्री पाया सम्मेदशिखर जी।।
___ नित्य निरंजन सिद्धप्रभू के पद में नमते हैं, तीरथ की आरति करके, सब आरत टलते हैं।।कौशाम्बी.॥३॥ यहाँ इक पौराणिक घटना-हाँ घटना,कौशाम्बी से है जुड़ी भक्ति की महिमा। महावीर प्रभू थे आए-हाँ आए,बेड़ी टूटी चंदना सती हरषाए।।
देव वहां पंचाश्चर्यों की वृष्टी करते हैं, तीरथ की आरति करके, सब आरत टलते हैं।।कौशाम्बी.॥४॥ तुम कल्पवृक्ष हो स्वामी-हाँ स्वामी,चिंतामणि सम फलदायक हो गुणनामी। हम आरति करने आए-हाँ आए, “चंदनामती” सब मनवांछित फल जाए।
भक्त यही भावना प्रभू के सम्मुख करते हैं, तीरथ की आरति करके, सब आरत टलते हैं। कौशाम्बी.॥५।।
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चन्द्रपुरी तीर्थ की आरती
आरति करो रे, श्री चन्द्रपुरी शुभ तीर्थक्षेत्र की आरति करो रे। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री चन्द्रपुरी.........॥टेक.।।
अष्टम तीर्थंकर चन्द्रप्रभु, चन्द्रपुरी में जन्मे थे। गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान चार, कल्याणक प्रभु के यहीं हुए ।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, लक्ष्मणा मात के प्रिय नन्दन की आरति करो रे॥श्री....॥१॥ ___गर्भ चैत्र वदि पंचमि तिथि में, पौष कृष्ण ग्यारस जन्मे। इस ही तिथि वैराग्य हुआ, निज राज्य विभव तज विरत हुए।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, दीक्षाभूमी श्री चन्द्रपुरी की आरति करो रे।।श्री....॥२॥ फाल्गुन कृष्णा सप्तमि तिथि में, केवलज्ञान हुआ प्रभु को। फाल्गुन शुक्ला सप्तमि को, सम्मेदशिखर से मुक्त प्रभो।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, चन्दा सम शीतल चन्द्रप्रभू की आरति करो रे।।श्री....॥३॥
गंगा नदि के तट पर स्थित, यह तीरथ मंगलकारी। दृश्य विहंगम प्यारा लगता, प्रभु की प्रतिमा मनहारी।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, शांतीदायक पावन तीरथ की, आरति करो रे।।श्री....॥४॥ इस तीरथ की आरति करके, भाव यही मन में आता। मेरी आत्मा तीर्थ बने, मुक्तीपथ से जोडूं नाता।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, 'चंदनामती' निजसिद्धी हेतू, आरति करो रे॥श्री....॥५॥
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चम्पापुर तीर्थ की आरती
तीर्थ की आरति करते हैं-२ वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।टेक.।।
प्राचीन संस्कृति की ये, दिग्दर्शक मानी जाती। हुआ धर्मतीर्थ का वर्तन, शास्त्रों में गाथा आती ॥
धरा वह पावन नमते हैं-२ वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।१।। वसुपूज्य वहां के राजा, उनकी थीं जयावती रानी। उनकी पावन कुक्षी से, जन्मे थे अन्तर्यामी ।।
जन्म की वह तिथि भजते हैं-२ वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।२।। बचपन से यौवन काया, प्रभु वासुपूज्य ने पाया। पर नहीं पंवैसे विषयों में, अरु बालयती पद पाया।।
दीक्षा की वह तिथि नमते हैं-२ वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।३।।
चम्पापुर के ही निकट में, मंदारगिरी पर्वत है। दीक्षा व ज्ञान से पावन, निर्वाणक्षेत्र भी वह है।।
सिद्धभमी को भजते हैं-२ वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।४।।
हैं वर्तमान में दोनों प्रभु वासुपूज्य के तीरथ। हर भव्यात्मा को दर्शन, से प्रकटाते मुक्तीपथ।।
मुक्ति हेतू हम यजते हैं-२ वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।॥५॥
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जृंभिका तीर्थ की आरती
आरति करो रे,
तीर्थ की सब मिल करके, आरति करो रे । आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, भिका तीर्थ की सब मिल करके, आरति करो रे॥ टेक ॥
कुण्डलपुर के वीर प्रभू ने, केवलज्ञान जहाँ पाया, प्रथम रचा था समवसरण, तब इन्द्र बहुत ही हरषाया।
आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, कैवल्यभूमि की सब मिल करके, आरति करो रे॥१॥ भव्यात्माजन प्रभु दर्शन कर, सम्यग्दर्शन को पाते, दिव्यध्वनी क्यों नहीं खिरी, यह कोई समझ नहीं पाते।
आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, अतिशय ज्ञानी महावीर प्रभू की, आरति करो रे॥२॥ श्रीविहार होते-होते, छ्यासठ दिन ऐसे निकल गए, राजगृही विपुलाचल गिरि पर, इन्द्रभूति थे पहुँच गए।
आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, उस प्रथम देशनास्थल की सब, आरति करो रे || ३ || जिस धरती पर वीर प्रभू को, केवलज्ञान प्रकाश मिला, मिली प्रेरणा ज्ञानमती जी की, जीर्णोद्धार विकास हुआ।
आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, उस परम पूज्य वंदित स्थल की, आरति करो रे ॥४॥ जिन संस्कृति के उद्गम स्थल, यह सब तीर्थ कहे जाते, इनके अर्चन - वंदन से, "चन्दनामती” भवि सुख पाते। आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, आतम निधि की अभिलाषा लेकर, आरति करो रे ॥५॥
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भद्दिलपुर तीर्थ की आरती
शीतलप्रभु जन्मभूमी महान है, नाम भद्रपुरि जग में मान्य है। आरति मोह तिमिर को हरती, जिनशासन का धाम है। शीतल । टेक.। इसी धरा पर शीतल प्रभु जी, मात सुनन्दा से जन्मे ।
राजा दृढ़रथ धन्य हुए, इन्द्रादिक उत्सव खूब करें ।। सभी ग्रन्थ करें इसका बखान है, नाम भद्रपुरि जग में मान्य है। आरती.... ....11311
ब्याह किया और राज्य किया, फिर दीक्षा ले तप हेतु चले । केवलज्ञान हुआ तब समवसरण की रचना अधर बने।। दिव्यध्वनि से हो जन कल्याण है, नाम भद्रपुरि जग में मान्य है। आरती..............................॥२॥
चार-चार कल्याणक से, पावन नगरी मानी जाती। इसका वन्दन करने से, आत्मा भी तीरथ बन जाती। जिनधर्म की संस्कृति का प्राण है, नाम भद्रपुरि जग आरती.................................॥३॥
मान्य है।
जन्मभूमि की आरति से, अब जीवन सफल बनाना है। इसका वन्दन करके हमको, वंद्य परम पद पाना है। "चंदनामती” यह तीर्थ महान है, नाम भद्रपुरि जग में मान्य है।
आरती.
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मिथिलापुरी तीर्थ की आरती तीर्थ अर्चन करें, जो भी वन्दन करें, इसको ध्याएं।
आरती थाल हम लेके आए।।टेक.।। जस धरा पर जनमते हैं जिनवर।
तीर्थ वह ही कहाता है शुभतर।। वन्दना तीर्थ की, वृद्धि निज कीर्ति की, हम कराएं।।
आरती थाल हम लेके आएं ॥१॥ मल्लिप्रभु, नमिप्रभू जन्मभूमी,
धन्य मिथिलापुरी की धरा थी। जन्म उत्सव करें, फिर महोत्सव करें, इन्द्र आए।।
आरती थाल ............॥२॥ दोनों जिनवर के चार कल्याणक,
इस ही भू पर हुए तीर्थ पावन।। आत्मचिंतन किया, मोक्षपद को लहा, सिद्धि पाए।
आरती थाल ............॥३॥ इस जनमभूमि की वंदना से।
आत्मशक्ती मिले अर्चना से।। तीर्थभूमी नमें, जन्म सार्थक करें, प्रभु को ध्याएं।।
आरती थाल ............॥४॥ रत्नत्रय निधि की पूर्ती हो मेरी।
होवे भवसंतती खण्डना भी।। “चंदनामति' यही, आश करते सभी, मुक्ति पाएं।।
आरती थाल ............॥५॥
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रत्नपुरी तीर्थ की आरती तीर्थंकर प्रभु श्री धर्मनाथ की, जन्मभूमि को नमन करें। आरति के माध्यम से आओ, अपने कर्मों का हनन करें।।टेक.।।
पन्द्रहवें जिन श्री धर्मनाथ ने, रत्नपुरी में जन्म लिया। इन्द्रों ने स्वर्गों से आकर, उत्सव कर नगरी धन्य किया। प्रभु धर्मनाथ को वंदन कर, उन मात-पिता को नमन करें।
आरति के माध्यम से.. ................॥१॥ चारों कल्याणक से पावन, है रत्नपुरी नगरी प्यारी। लौकान्तिक सुर भी जिसे नमें, गौरव गरिमा उसकी न्यारी।। तीरथ की कीरत गाकर हम, अपने जीवन को सफल करें। __ आरति के माध्यम से...................॥२॥ उस रत्नपुरी तीरथ से इक, इतिहास जुड़ा सुन लो भाई। देवों के द्वारा निर्मित मन्दिर, वहाँ मिला था सुखदायी।। सति मनोवती की दर्श प्रतिज्ञा, का अन्तर में मनन करें।
आरति के माध्यम से...................॥३॥ है आज भी मंदिर वहाँ बना, प्रभु धर्मनाथ जी राजे हैं। मेला लगता तिथि माघ शुक्ल, तेरस को सब जन आते हैं। है नगरि अयोध्या निकट तीर्थ, हर कण को शत-शत नमन करें। ___ आरति के माध्यम से.................॥४॥
श्री धर्मनाथ की जन्मभूमि, शुभ रत्नपुरी तीरथ को नमन। निज भाव तीर्थ की प्राप्ति हेतु, जिननाथ का करना है अर्चन।। 'चंदनामती'' प्रभु आरति से, मानव जीवन को सफल करें।
आरति के माध्यम से....................॥५॥
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राजगृही तीर्थ की आरती
राजगृही जी तीर्थक्षेत्र की, आरति को हम आए।
आरति के माध्यम से निज में, ज्ञान की ज्योति जलाएँ।। बोलो जय...॥ टेक ॥
इसी धरा पर तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत जी जन्मे, माता सोमा के महलों में, रत्न करोड़ों बरसे। हुए चार कल्याण जहाँ पर ..
हुए चार कल्याण जहाँ पर, उस तीरथ को ध्याएं | | आरति. ॥१॥
समवसरण महावीर प्रभू का, विपुलाचल पर आया, छ्यासठ दिन तक खिरी न वाणी, इन्द्र बहुत अकुलाया। इन्द्रभूति ने ज्यों दीक्षा ली..
इन्द्रभूति ने ज्यों दीक्षा ली, दिव्यध्वनि प्रगटा || आरति ॥२॥
राजा श्रेणिक और चेलना रानी हुईं विख्याता | रथ चलवाया जैनधर्म का फैली थी यशगाथा।। राजा श्रेणिक वीर प्रभू के
राजा श्रेणिक वीर प्रभू के, श्रोता प्रमुख कहाए | | आरति ॥३॥
समवसरण के दर्शन हेतू, चला भक्तिवश मेढ़कागज के पैरों तले दबा, नाना इतिहासों की जननी.
और देव बना था तत्क्षण||
नाना इतिहासों की जननी, भू को शीश झुकाएं। आरति.॥४॥
इस नगरी में पंच पहाड़ी, जन-जन का मन हरतीं। कई मुनी गए मोक्ष जहाँ से, उसकी गाथा कहती जैन संस्कृति की दिग्दर्शक....
जैनी संस्कृति की दिग्दर्शक, हैं इतिहास कथाएं | | आरति ।।५।।
नगरी के गिरिव्रज, वसुमति, कई नाम शास्त्र में माने। जुड़े कई इतिहास यहाँ से, जम्बूस्वामी हुए विरागी..
जम्बूस्वामी हुए विरागी, केवलिजिन को ध्याएं | | आरति ।।६।।
गणिनी माता ज्ञानमती के चरण पड़े तीरथ पर मुनिसुव्रत प्रभु जन्मभूमि की, कीरत फैली भूपर ॥ तीर्थ ‘“चंदनामती’” पूज्य ...
तीर्थ “चंदनामती” पूज्य, आत्मा को तीर्थ बनाए। आरति.।।७।।
तीर्थ पाव
जानें।
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वाराणसी तीर्थ की आरती चलो सभी मिल करें आरती, वाराणसि शुभ धाम की। श्री सुपार्श्व अरु पार्श्वनाथ के, जन्मकल्याण स्थान की।।
जय जय पार्श्व जिनं, प्रभो सुपार्श्व जिन।।टेक.॥ काशी नाम से जानी जाती, वाराणसि यह प्यारी है।
इन्द्र ने जिसे सजाया कर दी, रत्नों की उजियारी है।। वर्णन जिसका अगम-अकथ है, महिमा जन्मस्थान की|श्री.॥जय.॥१॥
श्री सुपार्श्व तीर्थंकर प्रभु के, चार यहाँ कल्याण हुए।
पृथ्वीषेणा के संग राजा, सुप्रतिष्ठ भी धन्य हुए।। श्री सम्मेदशिखर गिरि है उन, प्रभुवर का शिवधाम जी॥श्री.॥जय.॥२॥
पुन :इसी पावन भूमी पर, पारसप्रभु ने जन्म लिया।
अश्वसेन के राजदुलारे, वामा माँ को धन्य किया। यहीं अश्ववन में दीक्षा ले, चले राह शिवधाम की|श्री.।।जय.॥३॥
अहिच्छत्र में ज्ञान मिला, सम्मेदशिखर निर्वाण हुआ। बाल ब्रह्मचारी पारस प्रभु, का हम सबने ध्यान किया।। सांवरिया मनहारी प्रभु की, महिमा अपरम्पार जी||श्री.॥जय.॥४।।
प्रभु तुम सम पद पाने हेतू, इस तीरथ को सदा नमूं।
वाराणसि नगरी की माटी, शीश चढ़ा प्रभु पद प्रण।। भाव यही 'चंदनामती', हर आत्मा बने महान भी।।श्री.॥जय.॥५॥
हुई स्वयंवर प्रथा यहाँ से, ही प्रारंभ कहा जाता।
पद्म नाम के चक्रवर्ति का, जन्म यहीं माना जाता।। भरे कई इतिहास हृदय में, अतिशययुक्त महान भी।श्री.॥जय.॥६॥
समन्तभद्राचार्य गुरू की, भस्मक व्याधी शांत हुई।
चन्द्रप्रभू की प्रतिमा प्रगटी, जैनधर्म की क्रान्ति हुई।। विद्या का यह केन्द्र बनारस, जग में ख्यातीमान भी।।श्री.॥जय.।।७।।
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शौरीपुर तीर्थ की आरती
जन्मभूमि की गुणगाथा गाएं। दीप घृतमय सजा करके लाए।।टेक.।।
नेमिनाथ प्रभू की जनमभूमि है। ।
यमुना तट पर बसा शौरीपुर तीर्थ है।। भक्ति शब्दों से हम दर्शाएं, दीप घृतमय सजा करके लाए॥१॥
शौरीपुर के थे राजा समुद्रविजय।
शिवादेवी के संग, रहते महलों में वे।। वही इतिहास सबको बताएं, दीप घृतमय सजा करके लाए।।२।।
पन्द्रह महीने महल में थे बरसे रतन।
दो-दो कल्याणकों से वो पावन नगर।। उसी तीरथ की महिमा को गाएं, दीप घृतमय सजा करके लाए॥३॥
नेमी जी ब्याह को जब चले जूनागढ़।
पशुबंधन को लख चले दीक्षा को वन।। बालयति प्रभु के पद सिर नमाएँ, दीप घृतमय सजा करके लाए।।४॥
सति राजुल ने भी, पति के ही पथ पे चल।
घोर तप को किया, आर्यिका गणिनी बन।। रत्नत्रय प्राप्ति के हेतु ध्याएं, दीप घृतमय सजा करके लाए।५।।
कई मुनियों ने निर्वाण पद पाया है।
सिद्धभूमि भी यह, तीर्थ कहलाया है।। “चंदनामती' वो पद हम भी पाएं, दीप घृतमय सजा करके लाए।।६।।
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श्रावस्ती तीर्थ की आरती
तीरथ श्रावस्ती की आरति को दीप जला कर लाए, तीरथ श्रावस्ती। टेक ॥
श्री सम्भव जिन के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान चार कल्याण हुए। दृढ़राज पिता अरु मात सुषेणा, प्रभू जन्म से धन्य हुए। नगरी में हर्ष अपार हुआ.....
नगरी में हर्ष अपार हुआ, घण्टे शहनाई बाज रहे। इक्ष्वाकु वंश के भास्कर को, पा जनता हर क्षण मुदित रहे । तीरथ श्रावस्ती.
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सुरपति की आज्ञा से धनपति ने, रतन जहाँ बरसाए थे। दीक्षा ली थी जब जिनवर ने, तब लौकान्तिक सुर आए थे। कह सिद्ध नम : दीक्षा ले ली...
कह सिद्ध नम : दीक्षा ले ली, सुर नर जयकार लगाते हैं। सोलह सौ हाथ तनू प्रभु का, अरु स्वर्ण वर्ण मन भाते हैं। तीरथ श्रावस्ती. .........IIRII
थी कार्तिक कृष्ण चतुर्थी जब, प्रभुवर को केवलज्ञान हुआ। शुभ समवसरण रच गया, सभी ने दिव्यध्वनि का पान किया ।। बारहों सभा में बैठ भव्य ..........
बारहों सभा में बैठ भव्य, प्रभु दिव्यध्वनि सुन हरषाएँ। गणधर, मुनिगण आदिक संयुत, शुभ समवसरण को हम ध्याएं || तीरथ श्रावस्ती..........................॥३॥
थी चैत्र शुक्ल षष्ठी संभव जिन, सम्मेदाचल से मोक्ष गए। प्रभु का निर्वाणकल्याण मनाकर, हम उस तीरथ को प्रणमें|| तीरथ का कण-कण परम पूज्य ..
तीरथ का कण-कण परम पूज्य, आगम में वर्णित गाथाएँ। शाश्वत निर्वाणभूमि पावन, उसकी रज को हम सिर नाएँ।। तीरथ श्रावस्ती.
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तीरथ का वंदन करने से, आत्मा भी तीरथ बनती है। अन्तर के भाव करे निर्मल, मन के सब कल्मष धुलती है।।
जब सम्यग्ज्ञान प्रगट होता.......... जब सम्यग्ज्ञान प्रगट होता, अंतर की कली खिल जाएगी। 'चंदनामती' है आश मेरी, आत्मा तीरथ बन जाएगी।।
तीरथ श्रावस्ती............॥५॥
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सिहपुरी तीर्थ की आरती श्री सिंहपुरी पावन तीरथ की आरति को हम आए।
कंचन का थाल सजाएँ।।टेक.॥ है पुण्य बड़ा जो तीर्थंकर प्रभु, जन्म धरा पर लेते। अपनी पावनता से वे जग भर, को पावन कर देते।।हाँ.... उनकी पदरज पाने हेतु, हम तीर्थ नमन को आए,
कंचन का थाल सजाएँ।।१।। श्रेयांसनाथ ग्यारहवें प्रभुवर, इसी धरा पर जन्में। पितु विष्णुमित्र माता नंदा के, संग इन्द्रगण हरष।।हाँ..... हुए चार-चार कल्याण जहाँ, उस तीर्थभूमि को ध्याएं,
कंचन का थाल सजाएँ।।२॥ प्राचीन यहाँ इक मंदिर है, श्रेयांसनाथ जिनवर का। मनहारी प्रतिमा श्यामवर्ण, अतिशय है उन प्रभुवर का॥अतिशय.... है निकट बनारस तीर्थक्षेत्र, उसकी आरति को आए,
कंचन का थाल सजाएँ।।३।। इस नगरी को अब सारनाथ के, नाम से जाना जाता। श्रेयांसनाथ धर्मस्थल इसको, कहें ज्ञानमति माता।।हाँ..... “चंदनामती' भी ज्ञानप्राप्ति हित, चरण कमल प्रभु ध्याए।
कंचन का थाल सजाएँ।।४॥
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हस्तिनापुर तीर्थ की आरती
हस्तिनागपुर तीरथ की हम, आरति करने आए। आरति करते तीरथ की, निज अन्तर्मन खिल जाए || बोलो जय जय जय-२, प्रभू की जय, जय, जय || टेक.। है इतिहास प्रसिद्ध तीर्थ यह, अतिप्राचीन सुपावन इस भूमी का वन्दन कर लो, अद्भुत है मनभावन ।। देवों द्वारा रची गई .....
देवों द्वारा रची गई, नगरी की महिमा गाएं। आरति....॥१॥ वर्तमान के तीन तीर्थंकर, इसी धरा पर जन्में | चक्रवर्ति अरु कामदेव तीनों पदवी से त थे। तीन बार आ धनदराज ने..
तीन बार आ धनदराज ने, रत्न बहुत बरसाए । । आरति.. प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की, प्रथम पारणा भूमी । दानतीर्थ का हुआ प्रवर्तन, धन्य हुई यह भूमी
अक्षय तृतिया पर्व आज भी..
अक्षय तृतिया पर्व आज भी, वह इतिहास बताए।। आरति.. रक्षाबन्धन पर्व, महाभारत, की जुड़ी कहानी । मनोवती की दर्श प्रतिज्ञा, शुरू यहीं से मानी || सति सुलोचना, रोहिणि रानी..........
सति सुलोचना, रोहिणि रानी, की विख्यात कथाएं | | आरति... गणिनी ज्ञानमती माताजी, नई चेतना लाईं।
स्वर्ग सरीखे जम्बूद्वीप से, विश्वप्रसिद्धि कराई।। करे " चन्दनामती” वंदना.........
करे “चन्दनामती” वंदना, ज्ञान ज्योति जग जाए।।आरति.....................॥५॥
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इन्द्रध्वज विधान की आरती
ॐ जय श्री सिद्ध प्रभो, स्वामी जय श्री सिद्ध प्रभो । शत इन्द्रों से वंदित, त्रिभुवन पूज्य विभो ॥ ॐ जय .....॥ टेक ॥ भूत भविष्यत संप्रति, कालीक कहें। स्वामी. नरलोकोद्भव सिद्धा, नंतानंत रहें ।। ॐ जय..
...॥१॥
मध्यलोक के शाश्वत, मणिमय अभिरामा | स्वामी..... चारशतक अट्ठावन, अविचल जिनधामा ॥ ॐ जय.....................॥२॥
सबमें जिनवर प्रतिमा, इक सौ आठ कहीं । स्वामी. सिद्धन की है उपमा, अनुपम रत्नमयी ॥ ॐ जय ॥३॥
कनकमयी सिंहासन, अद्भुत कांति भरे। स्वामी. जिनमूरति पद्मासन, राजे शांति धरे॥ ॐ जय ॥४॥
तीन छत्र हैं सिर पर, चौंसठ चंवर दुरें | स्वामी... भामंडल द्युति अद्भुत, सूरज कांति हरे॥ॐ जय........॥५॥ इन्द्र सभी मिल करके, पूजा भक्ति करें। स्वामी. जिनमंदिर के ऊपर, ध्वज आरोप करें | ॐ जय..................॥६॥ इसी हेतु इन्द्रध्वज, पूजन है सार्थका स्वामी..
जो करते श्रद्धा से, पाते शिवमारग ।। ॐ जय...........................॥७॥ हम सब भी मिल करके, आरति नित्य करें। स्वामी. 'ज्ञानमती” ज्योती से, तम अज्ञान हरें ।। ॐ जय.....................॥८॥
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कर्मदहन विधान की आरती
ॐ जय जय कर्मजयी, स्वामी जय जय कर्मजयी । ध्यान अग्नि से कर्म दहन कर, बन गए मृत्युजयी ॥ॐ जय ॥ मानव तन अनमोल रतन पा, मुनि पद जो धरते — स्वामी । त्याग तपस्या द्वारा, शिवपद को वरते ॥ ॥ ॐ जय ॥१॥ घात कर्म को क्षय कर, केवलज्ञान मिले . स्वामी।
जय ॥२॥
पा अरिहन्त अवस्था, दिव्यध्वनी खिरे ॥ ॐ शेष अघाति नशाकर, सिद्धशिला पाते.. . स्वामी। काल अनन्त बिताकर, फिर न यहाँ आते ॥ ॐ जय.॥३॥ इन्द्रियविजयी नर ही, कर्मजी . स्वामी।
जय ॥४॥
तभी पंचपरमेष्ठी, परम पूज्य बनते ॥ॐ प्रभु आरति से हम भी, ऐसी शक्ति लहें. शीघ्र “चंदनामती” मुक्ति के, पथ की युक्ति गहें ॥ॐ जय ॥५॥
. स्वामी।
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कल्पद्रुम विधान की आरती जय जय प्रभुवर, चौबिस जिनवर की, मंगल दीप प्रजाल के
मैं आज उतारूं आरतिया ।टेक.॥
समवसरण के बीच प्रभूजी, नासादृष्टि विराजें। गणधर मुनि नरपति से शोभित, बारह सभा सुराजें।प्रभू जी.॥ ओंकार धुनी, सुन करके मुनि, रत रहें स्वपर कल्याण में
__मैं आज उतारूं आरतिया॥१॥
चार दिशा के मानस्तंभों, में जिनप्रतिमा सोहें।, चारों ही उपवन भूमी में, चैत्यवृक्ष मन मोहे।।प्रभू जी.।। करके दर्शन, प्रभु का वंदन, सम्यक् का हुआ प्रसार है।
___मैं आज उतारूं आरतिया ॥२॥
पंचम ध्वजा भूमि के अंदर, ऊँचे ध्वज लहराएं। मालादिक चिन्हों से युत हो, जिनवर का यश गाएं।।प्रभू जी.।। है कल्पवृक्ष, सिद्धार्थवृक्ष, जिनमें प्रतिमा सुखकार है,
___ मैं आज उतारूं आरतिया।॥३॥
भवनभूमि के स्तूपों में, जिनवर बिम्ब विराजें। द्वादशगण युत श्रीमंडप में, सम्यग्दृष्टी राजे।।प्रभू जी.।। अगणित वैभव, युत बाह्य विभव से, शोभ रहे भगवान हैं,
मैं आज उतारूं आरतिया॥४॥ धर्मचक्रयुत गंधकुटी पर, अधर प्रभू रहते हैं। ऐसे जिनवर की आरति से, भव आरत टरते हैं।।प्रभू जी.॥ जय कल्पतरू, “चंदना' प्रभू, तव महिमा अपरम्पार है।
मैं आज उतारूं आरतिया॥५॥
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कल्याण मंदिर विधान की आरती जय जय प्रभुवर, जय जय जिनवर, की मंगल दीप प्रजाल के
मैं आज उतारूँ आरतिया....॥टेक.।।
कुमुदचंद्र आचार्यप्रवर ने, इक स्तोत्र रच डाला। पार्श्वनाथ की महिमा का है, चमत्कार दिखलाया।।प्रभू जी...। प्रभु पार्श्वनाथ की, भक्ती में, मन मगन हुआ मुनिराज का,
___ मैं आज उतारूँ आरतिया....॥१॥ चौवालिस काव्यों में निर्मित, यह विधान अति सुन्दर, रचा चंदनामती मात ने स्तोत्र पद्य रचनाकर।प्रभू जी...... प्रभु भक्ती से, निज शक्ति बढ़े, औ मिले मुक्ति का धाम रे
मैं आज उतारूँ आरतिया....॥२॥ काल सर्प का योग निवारण करने में है सक्षम। जिनभक्ति से अपमृत्यु का दूर भी होता संकट।प्रभू जी.. प्रभु पार्श्वनाथ, सर्वज्ञ हितंकर करें जगत कल्याण रे,
___ मैं आज उतारूँ आरतिया....॥३॥
पार्श्वप्रभु ने संकट सहकर, शिवपद को है पाया। दशभव तक कमठासुर के प्रति, क्षमाभाव अपनाया।।प्रभू जी.. मुझको भी वैसी, शक्ति मिले, जब तक नहिं मुक्ती प्राप्त हो,
मैं आज उतारूँ आरतिया....॥४॥ ___ गणिनी ज्ञानमती माता की, मिली प्रेरणा सबको। पार्श्वनाथ का महामहोत्सव, आयोजन करने को।।प्रभू जी.. कर रही 'आस्था', यही कामना, मेरा भी कल्याण हो
___ मैं आज उतारूँ आरतिया....॥५॥
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गणधरवलय विधान की आरती
आरती गणधर स्वामी की। ऋद्धि समन्वित, सबका करें हित, निज में सदा रत रहते।।टेक.।।
मुनि व्रत धारण कर जो नर, उग्रोग्र तपस्या करते। तप के ही बल पर वे मुनि, नाना ऋद्धी को वरते।।
आरती गणधर स्वामी की ॥१॥ श्री विष्णुकुमार मुनी को, हुई प्राप्त विक्रिया ऋद्धी। उपसर्ग दूर कर मुनि का, हो गई सफल उन ऋद्धी ।।
आरती गणधर स्वामी की ॥२॥ अक्षीणमहानस ऋद्धी, युत मुनि आहार जहाँ हो। उनकी ऋद्धी से उस दिन, अक्षय भंडार वहाँ हो।।
आरती गणधर स्वामी की ॥३॥ चारणऋद्धीयुत ऋषिगण, आकाशगमन करते हैं। ढाई द्वीपों के अंदर, विचरण करते रहते हैं।।
आरती गणधर स्वामी की ॥४॥ कलिकाल में कोई मुनिवर, निह ऋद्धि प्राप्त करते हैं। "चंदनामती'' फिर भी वे, शक्तीयुत तप करते हैं।।
आरती गणधर स्वामी की ॥५।।
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श्री चैत्य भक्ति विधान की मंगल आरती
मै तो आरती उतारूं रे, श्री चैत्यभक्ति की,
जय जय महावीर प्रभो जय जय जय - 2 || टेक.|| समसरण में, पधारे गौतम जब | "पधारे गौतम जब ... हुआ मान गलित उनका दीक्षा धारी तब | दीक्षा धारी तब ...... जयति भगवान कहा,मन में श्रद्धान महा, जय जय उचारी रे
वीर
प्रभु
हाँ.... प्रभु की जय जय उचारी रे ||मैं तो आरती ...|| 1|| उसी स्तुति का नाम चैत्य भक्ति, पड़ गया उस क्षण से || पड़ गया . तीनो लोको के जिनवर की भक्ति, हो जाती है उससे || हो जाती है गौतम गणीश को, महावीर शिष्य को, वंदूँ मै बारम्बार,
हां.....उनको वंदूँ मै बारम्बार ||मै तो आरती .... 12 || चैत्य भक्ति का सुन्दर विधान कर मन हरषा हैं | कर मन चंद्रामती शक्ति मिले, चैत्यों की भक्ति मिले, जीवन सुधारों रे, ..... प्यारा प्यारा जीवन सुधारों रे ||मै तो आरती..||3||
हां
....
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चौंसठ ऋद्धि विधान की आरती जय जय ऋषिवर, हे ऋद्धीश्वर, की मंगल दीप प्रजाल के,
___मैं आज उतारूं आरतिया।टेक.॥
तीन न्यून नव कोटि मुनीश्वर, ढाई द्वीप में होते। घोर तपस्या के द्वारा, निज कर्म कालिमा धोते।।गुरू जी..... गणधर भी हैं, श्रुतधर भी हैं, इन मुनियों में सरताज वे
___ मैं आज उतारूं आरतिया।।१॥
वृषभसेन से गौतम तक हैं, तीर्थंकर के गणधर। सबने ही वैवैवल्य प्राप्त कर, पाया पद परमेश्वर।।गुरू जी..... प्रभु दिव्यध्वनि, सुन करके मुनी, करते निज पर कल्याण हैं।
__ मैं आज उतारूं आरतिया।।२।। गणधर के अतिरिक्त तपस्वी, मुनि की ऋद्धी पाते। उनको नमकर नर-नारी के, रोग, शोक नश जाते।।गुरू जी... अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा इत्यादि ऋद्धियां प्राप्त हैं।
मैं आज उतारूं आरतिया।॥३॥ ऋद्धि प्राप्त मुनि निज ऋद्धी का लाभ स्वयं निह लेते। अपनी ऋद्धी के द्वारा वे सबका हित कर देते।।गुरू जी.... तप वृद्धि करें, मुनि ऋद्धि वरें, फिर बनें सिद्धि के नाथ वे।
___ मैं आज उतारूं आरतिया।।४।।
इन मुनियों के वंदन में, निज वंदन भी करना है।, क्योंकि “चंदनामती” मुझे भी, इक दिन शिव वरना है।।गुरू जी.. ज्ञानी ध्यानी, श्रुत विज्ञानी, गुरू को वन्दन शत बार है।
मैं आज उतारूं आरतिया।॥५॥
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जिनगुणसंपत्ति विधान की आरती
ॐ जय जिनराज प्रभो! स्वामी जय जिनराज प्रभो। धर्मतीर्थ के कर्ता, जय तीर्थेश विभो।।ॐ जय.॥१॥ __सोलह कारण भाके, प्रभु तीर्थेश हुए।स्वामी.। पंचकल्याणक पाके, सुरपति वंद्य हुए ।।ॐ जय.।।२।।
चौंतिस अतिशय मंडित, अनवधि गुणभर्ता।स्वामी.। प्रातिहार्य गुणभूषित, त्रिभुवन हितकर्ता।।ॐ जय.॥३॥
श्री जिनगुणसंपत् है, त्रेसठ विध गाये।स्वामी.। जो जिनगुण को वंदे, निज संपति पाये ।।ॐ जय.॥४॥
परम अनंत चतुष्टय, आभ्यंतर लक्ष्मी।स्वामी.। सम्यग्ज्ञानमती से, पाऊँ शिवलक्ष्मी।।ॐ जय.।।५।।
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तीन लोक विधान की आरती
तर्ज क्यों ना ध्यान लगाए, वीर के बावरिया.
कर लो सकल नरनार, प्रभू जी की आरतिया करती है भव से पार, श्री जी की आरतिया || टेक.।। तीनों लोकों में तू घूमा, लेकिन जीवन प्रभु बिन सूना। जीवन में लाती बहार, प्रभू जी की आरतिया । कर लो सकल नर नार....॥१॥
आठ करोड़ लक्ष छप्पन हैं, सहस सतानवे चार शतक हैं। इक्यासी जिनधाम, प्रभू जी की आरतिया || कर लो सकल नर नार....॥ २ ॥
सब कृत्रिम अकृत्रिम प्रतिमा, तीन लोक की जानो महिमा। भरे सकल भण्डार, प्रभू जी की आरतिया कर लो सकल नर नार.... ॥ ३ ॥
इस नरतन को तूने पाया, तीन लोक मंडल रचवाया। कर दे सुखी संसार, प्रभू जी की आरतिया ।। कर लो सकल नर नार.... ॥४॥
प्रभु की आरति भव दुखहारी, भव्य जनों को आनंदकारी।
वरण करे शिवनारी, प्रभू जी की आरतिया || कर लो सकल नर नार.... ॥ ५॥
जय जयकार करो अति भारी, गूँज उठेगी नगरी सारी। गाओ सभी नरनार, प्रभू जी की आरतिया कर लो सकल नर नार.... ॥६॥
ज्ञानमती माताजी की महिमा, कहे " चंदनामती” गुण : भरे ज्ञान भण्डार, प्रभू जी की आरतिया।। कर लो सकल नर नार॥७॥
गरिमा ।
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तीस चौबीसी विधान की आरती आरति करो रे,
श्री तीस परम चौबीसी जिनकी आरति करो रे || टेक.। जम्बूद्वीप के भरतैरावत की त्रय-त्रय चौबीसी हैं। दुतिय धातकीखंड द्वीप में भी छह-छह चौबीसी हैं।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, द्वीपों के सब तीर्थंकर की आरति करो रे ॥ १ ॥ पुष्करार्ध 'और, पश्चिम में छह-छह चौबीसी ।
कुल मिलकर ढाई द्वीपों में, तीस परम हैं चौबीसी।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, उन सभी सात सौ बीस प्रभु की आरति करो रे || २ || सभी जिनेश्वर जब जब अपनी माँ के गर्भ में आते हैं। रत्नवृष्टि वहाँ करने हेतू धनकुबेर खुद आते हैं ।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, त्रैकालिक जिनवर तीर्थंकर की आरति करो रे || ३ || मध्यलोक की दशो ं कर्मभूमी में त्रैकालिक जिनवर। धर्मतीर्थ को चलाते हैं कहलाते तभी ये तीर्थंकर।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, तीर्थंकर एवं तीर्थक्षेत्र की आरति करो रे || ४ || गणिनी ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा का प्रतिफल है। अहिच्छत्र में ग्यारह शिखरों वाला सुन्दर मंदिर है।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, “चन्दनामती” उस जिनमंदिर की आरति करो रे ॥५॥
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त्रैलोक्य विधान की आरती तर्ज-क्यों न ध्यान लगाए, वीर से बावरिया..
कर लो सकल नरनार, प्रभूजी की आरतिया। करती है भव से पार, श्री जी की आरतिया।।टेक.।। तीनों लोकों में तू घूमा, लेकिन जीवन प्रभु बिन सूना। जीवन में लाती बहार, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.॥१॥ आठ करोड़ लक्ष छप्पन हैं, सहस सतानवे चार शतक हैं। इक्यासी जिनधाम, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.॥२॥ सब कृत्रिम अकृत्रिम प्रतिमा, तीन लोक की जानो महिमा। भरे सकल भंडार, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.॥३॥ इस नरतन को तूने पाया, तीन लोक मंडल रचवाया। कर दे सुखी संसार, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.॥४॥ प्रभु की आरति भवदुखहारी, भव्यजनों को आनंदकारी। वरण करे शिवनारि, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.॥५।। जय जयकार करो अति भारी, गूंज उठे यह नगरी सारी।
बोलो सभी नर नार, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.॥६॥ ज्ञानमती माताजी की महिमा, कहे "चन्दना'' तव गुण गरिमा।
भरे ज्ञान भण्डार, प्रभूजी की आरतिया।।कर लो.।।७।।
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धर्मचक्र विधान की आरती
जिनवर का दरबार है नमन करें शतबार है। धर्मचक्र की देखो कैसी महिमा अपरंपार है।।टेक.।। मंगल आरति लेकर प्रभु जी आया तेरे द्वार जी।
धर्मचक्र का पाठ करे जो होगा बेड़ा पार जी।। यही जगत में सार है, झूठा सब संसार है।।धर्म.॥१॥
चौबीसों जिन पंच परम गुरु, रत्नत्रय उर धार जी। अवधि ऋद्धि धारक ऋषि धर्म को भक्ति सहित शिर धार जी।।
यही गले का हार है, मानव का शृंगार है।।धर्म.॥२॥ पाठ तो हमने बहुत से देखे, भारत देश विदेश जी। धर्मचक्र सा पाठ न देखा, अतिशय दिखे विशेष जी।। मूल मंत्र आधार है, बीज यंत्र साकार है।।धर्म.॥३॥
यह तन तेरा इक दिन चेतन मिट्टी में मिल जायेगा। “अभयमती' कहं जप तप कर ले नहिं पीछे पछतायेगा।। प्रभु की भक्ति अपार है, पावें मुक्ति पुकार है।।धर्म.॥४॥
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नन्दीश्वर मण्डल विधान की आरती
आरति करो रे, श्री नन्दीश्वर के जिन भवनों की आरति करो रे।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे।।टेक.॥ बावन जिनमंदिर से शोभित अष्टम द्वीप नन्दीश्वर है। सब मंदिर में अगल-अलग, इक सौ अठ कहे जिनेश्वर हैं।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री स्वयंसिद्ध जिनप्रतिमाओं की आरति करो रे।।१।। रतिकर अंजनगिरि दधिमुख, पर्वत शाश्वत वहाँ राज रहे। बावड़ियों में रतिकर नग पर, जिनवर बिम्ब विराज रहे।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री अकृत्रिम जिनवर बिम्बों की आरति करो रे॥२॥ आष्टान्हिक पवों में सब, इन्द्रादि देवगण जाते हैं। आठ दिनों तक वहाँ निरन्तर, पूजा भक्ति रचाते हैं।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, नंदीश्वर के बावन भवनों की आरति करो रे।।३।। मानव विद्याधर कोई इस, द्वीप में निह जा सकते हैं। तभी "चंदनामती” यहाँ वे, आरति भक्ती करते हैं।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री शान्त छवीयुत जिनबिम्बों की आरति करो रे॥४॥
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नवग्रह शांति विधान की आरती
आरती नवग्रह स्वामी की-२ ग्रह शांति हेतू, तीर्थंकरों की, सब मिल करो आरतिया।।टेक.॥
आत्मा के संग अनादी, से कर्मबंध माना है। उस कर्मबंध को तजकर, परमातम पद पाना है।
आरती नवग्रह स्वामी की।।१॥ निज दोष शांत कर जिनवर, तीर्थंकर बन जाते हैं। तब ही परग्रह नाशन में, वे सक्षम कहलाते हैं।
आरती नवग्रह स्वामी की।।२।। जो नवग्रह शांती पूजन, को भक्ति सहित करते हैं। उनके आर्थिक-शारीरिक, सब रोग स्वयं टरते हैं।
__ आरती नवग्रह स्वामी की।।३।। कंचन का दीप जलाकर, हम आरति करने आए। "चंदनामती” मुझ मन में, कुछ ज्ञानज्योति जल जाए।
आरती नवग्रह स्वामी की।॥४॥
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नवदेवता विधान आरती ॐ जय नवदेव प्रभो, स्वामी जय नवदेव प्रभो। शरण तुम्हारी आए, आरति हेतु प्रभो।। ॐ जय.।। श्री अरिहंत जिनेश्वर, प्रथम देव माने। स्वामी प्रथम....... दूजे देव कहाते, सिद्धशिला स्वामी।। ॐ जय.....॥१॥ चउसंघ नायक सूरी, तृतिय देवता हैं। स्वामी तृतिय......
चौथे देव कहाए, उपाध्याय मुनि हैं।। ॐ जय.......॥२॥ सर्वसाधु हैं पंचम, श्री जिनधर्म छठा। स्वामी श्री जिन........
सप्तम देव जिनागम, जिनवचसार कहा।। ॐ जय....॥३॥ श्री जिनचैत्य हैं अष्टम, जिनप्रतिमा जानो। स्वामी जिन..
श्री जिनचैत्यालय को, देव नवम मानो।।ॐ जय....।।४।। ढाई द्वीप के अन्दर, ये नव देव रहें। स्वामी ये नव.......
उनकी भक्ती करके, नर भी देव बनें।।ॐ जय....॥५॥ दो ही देवता आगे, द्वीपों में माने। स्वामी द्वीपों... श्री जिनचैत्य जिनालय, अकृत्रिम माने।।ॐ जय....॥६।। नवदेवों की आरति, करते जो निश दिन। स्वामी करते.... लहें “चंदनामति' वे, सुख साधन प्रतिपल।।ॐ जय....॥७।।
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पंच परमेष्ठी विधान की आरती
ॐ जय पंच परम देवा, स्वामी जय पंच परम देवा। दुखहारी सुखकारी, जय जय जय देवा।।ॐ जय.।।टेक.।।
घाती कर्म विनाशा, केवल रवि प्रगटा।।स्वामी.॥ दर्श ज्ञान सुख वीरज, अनुपम शांति छटा।।ॐ जय.।। अष्ट कर्म रिपु क्षय कर, सिद्ध प्रसिद्ध हुए।स्वामी.।।
लोक शिखर पर राजे, नंतानंत रहे।।ॐ जय.।। पंचाचार सहित जो, गणनायक होते ॥स्वामी.॥ सूरि स्वात्म आराधक, सुखदायक होते ।।ॐ जय.। गुण पच्चीस सुशोभे, अतिशय गुणधारी ॥स्वामी.।। शिष्य पठन पाठनरत, जिनमहिमा न्यारी।।ॐ जय.॥ राज्यविभव सुख संपति, छोड़ विराग लिया।।स्वामी.।। सर्वसाधु परमेष्ठी, नरभव सफल किया।।ॐ जय.॥
पंच परम पद स्थित, परमेष्ठी होवें।।स्वामी.।। करे ‘चन्दनामती' आश यह, भव भ्रम मम खोवे।।ॐ जय.।।
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पंचमेरू विधान की आरती ॐ जय श्री मेरुजिनं, स्वामी जय श्री मेरुजिन। ढाई द्वीपों में हैं-२, पंचमेरु अनुपम।।ॐ जय.।। मेरु सुदर्शन प्रथम द्वीप के, मध्य विराज रहा।स्वामी.। सोलह चैत्यालय से-२, स्वर्णिम राज रहा।।ॐ जय.॥१॥
पूर्वधातकी खण्ड द्वीप में, विजय मेरु शाश्वतास्वामी.। ऋषिगण वंदन करने जाते-२, पीते परमामृत।।ॐ जय.॥२॥
अपर धातकी अचलमेरु से, सुन्दर शोभ रहा।स्वामी.। तीर्थंकर जन्माभिषेक भी-२, करते इन्द्र जहाँ।।ॐ जय.॥३॥
पुष्करार्ध के पूर्व अपर में, मेरू द्वय माने।स्वामी.। मंदर विद्युन्माली-२, नामों से जाने।।ॐ जय.॥४॥
पंचमेरु के अस्सी, जिनमन्दिर शोभेस्वामी.। इक सौ अठ जिनप्रतिमा, सुर नर मन मोहें।।ॐ जय.॥५।।
जो जन श्रद्धा रुचि से, प्रभु आरति करते।स्वामी.। वही "चंदनामति” क्रम क्रम से, भव आरत हरते।।ॐ जय.॥६।।
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पुण्यास्रव विधान की आरती आरती गुणभंडारी की - २
जहाँ पुण्यभंडार भरा उन पुण्यभंडारी की। टेक.।। मन वचन काय योगों से, कर्मों का आश्रव होता । शुभ-अशुभ उभय भेदों से, सब संसारी में होता।। आरती गुण भंडारी की ॥ १ ॥
इक सौ अड़तालिस कर्मों, में पुण्य प्रकृतियाँ भी हैं। शुभ योगों से ही बंधती, निश्चित वे प्रकृतियाँ भी हैं।। आरती गुण भंडारी की ॥२॥
तीर्थंकर कर्म प्रकृति भी, पुण्याश्रव से बंधती है। तुम भी पुण्याश्रव कर लो, यह जिनवाणी कहती है ।। आरती गुण भंडारी की ॥३॥
हीरे मोती के खजाने, भी पुण्य से ही मिलते हैं। चक्री व इन्द्र के वैभव, नहिं पाप से मिल सकते हैं। आरती गुण भंडारी की ॥४॥
जो पुण्य का फल जिनपद है, हम उसे नमन करते हैं। “चंदना” प्रभू आरति कर, सब पाप शमन करते हैं।। आरती गुण भंडारी की॥५॥
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भक्तामर मण्डल विधान की आरती भक्तामर मण्डल विधान की, आरति करलो आज।
आदि प्रभो के दर्शन से ही, बनते सारे काज। ओ जिनवर हम सब उतारे तेरी आरती........॥टेक.।।
कृतयुग के हे प्रथम जिनेश्वर, जग के तुम निर्माता। अषि, मषि आदिक क्रिया बताकर, बन गये आदि विधाता।।
ओ जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती........॥१॥
कोड़ाकोड़ी वर्ष बाद भी, तुम्हें सभी ध्याते हैं। मन वच तन से पूजा करके, इच्छित फल पाते हैं।। ओ जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती........॥२॥ एक समय श्रीमानतुंग, मुनि पर उपसर्ग था आया।
तुम भक्ती से ताले टूटे, कैसी तेरी माया।। ओ जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती........॥३॥ भोजराज ने यह अतिशय लख, मुनि को शीश नमाया।
मुनिवर ने भक्तामर का, संक्षिप्त सार बतलाया।। ओ जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती........॥४॥ वीतराग प्रभु का आराधन, क्रम से मुक्ति दिलाता। जग में भी 'चंदनामती', वह सर्व सौख्य दिलवाता।। ओ जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती........॥५॥
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मृत्युंजय विधान की आरती ॐ जय जय मृत्युंजय, प्रिय जय जय मृत्युंजय।
दुखकारी सुखकारी, करे सुयंत्र विजया।टेक.॥ जिसके सुमरन से ही डाकिन भूत पिशाच भगे। अहो. भव दुख भंजन पाप निकन्दन, आतम ज्योति जगे।ॐ......। जिसकी महिमा सुनकर, भविजन श्रद्धा उर प्रगटे। अहो. बीज मंत्र का ध्यान लगाकर, निज के रूप लसे।ॐ......।
जिसकी स्तुति पूजन से झट, भव बंधन टूटे। अहो. मूल मंत्र का जप करने से, सब ही पाप कटे।ॐ......। एक एक अक्षर का जो भवि नित ही ध्यान धरे। अहो. ज्ञान चेतना जगे शीघ्र ही निज के रूप करे।ॐ......।
जो भी इसका पाठ करे है वह मृत्यु जीते। अहो. विघ्न रोग उपसर्ग नशे जब विषयों से रीते।ॐ......।
मृत्युंजय का ध्यान धरे जो चतुर्गती छूटे। अहो. "अभयमती' निज में ही रमकर पंचम गति पहुँचे।ॐ......।
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विश्वशांति महावीर विधान की आरती
विश्वशांति महावीर विधान की, आरति कर लो आज।
तीर्थंकर महावीर की महिमा, गाओ सब मिल आज।। आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती, आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती।।टेक.।।
तीर्थंकर की परम्परा में, चौबिसवें तीर्थंकर।
सत्य अहिंसा अनेकान्त के, पोषक वीर जिनेश्वर।। आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती, आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती॥१॥
पितु सिद्धारथ माता त्रिशला, के नन्दन महावीरा।
___ चैत्र सुदी तेरस को कुण्डलपुर में जन्मे वीरा।। आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती, आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती॥२॥
छब्बिस सौवाँ जन्मकल्याणक, महावीर का आया।
शासन औ जनता ने मिलकर, उत्सव खूब मनाया।। आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती, आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती॥३॥
छब्बिस सौ गुण के सूचक, छब्बिस सौ मंत्र हैं इसमें।
गणिनी माता ज्ञानमती ने, रचा पाठ भक्ती से॥ आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती, आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती॥४॥
मेरु दर्शन के मंडल पर, रत्न चढ़ाए जाते।
श्रद्धा से पूजा कर श्रावक, भक्ती का फल पाते।। आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती, आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती।।५।।
घृत दीपक से आरति करके, भव आरत टलता है।
तभी “चन्दनामती” हृदय में ज्ञानामृत बहता है।। आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती, आओ सब मिल उतारें प्रभु आरती॥६॥
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विषापहार विधान की आरती
___ आरति करो रे, श्री विषापहार मण्डल विधान की आरति करो रे। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे।।श्री विषापहार.टेक.।। जिस स्तोत्र के अतिशय से, सर्पादिक के विष दूर भगे। जिस स्तोत्र के पढ़ने से, सम्यग्दर्शन की ज्योति जगे।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, सम्यक्त्व सहित प्रभु भक्तिधाम की आरति करो रे।।१।। कवी धनंजय के सुत को इक दिन इक सांप ने काट लिया। इस स्तोत्र की रचना से कविवर ने वह विष शांत किया।। __ आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, इस चमत्कारि स्तोत्र पाठ की आरति करो रे।।२।। चालिस छन्दों में जिनवर श्री ऋषभदेव को वंदन है। भव-भव के कर्मों का विष अपहरने में जो सक्षम हैं।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, विष अपहर्ता श्री ऋषभदेव की आरति करो रे।।३।। गणिनी माता ज्ञानमती ने, इसका एक विधान रचा। एक-एक पद के मंत्रों में, देखो कितना सार भरा।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, तनु रोग विनाशक शक्तिधाम की आरति करो रे।।४।। एक दिवस में इस विधान को, करके आतमलाभ करो। चालिस दिन तक भी करके, “चंदनामती' फल प्राप्त करो।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, प्रभु ऋषभदेव के गुण निधान की आरति करो रे।।५।।
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षट्खण्डागम विधान की आरती
आज हम आरति करते हैं-२ षटखण्डागम ग्रंथराज की, आरति करते हैं।।टेक.।। महावीर प्रभू के शासन का ग्रंथ प्रथम कहलाया। उनकी वाणी सुन गौतम-गणधर ने सबको बताया।।
आज हम आरति करते हैं-२ वीरप्रभू के परम शिष्य की, आरति करते हैं।।१॥
क्रम परम्परा से यह श्रुत, धरसेनाचार्य ने पाया। निज आयु अल्प समझी तब, दो शिष्यों को बुलवाया।।
आज हम आरति करते हैं-२ श्री धरसेनाचार्य प्रवर की, आरति करते हैं।।२।। मुनि नरवाहन व सुबुद्धी, ने गुरु का मन जीता था। देवों ने आ पूजा कर, उन नामकरण भी किया था।।
आज हम आरति करते हैं-२ पुष्पदंत अरु भूतबली की, आरति करते हैं।॥३॥ ___ श्री वीरसेन सूरी ने, इस ग्रंथराज के ऊपर। धवला टीका रच करके, उपकार कर दिया जग पर।।
__ आज हम आरति करते हैं-२ वीरसेन आचार्य प्रवर की, आरति करते हैं।।४।। गणिनी माँ ज्ञानमती ने, इस ग्रंथ की संस्कृत टीका। लिखकर सिद्धान्तसुचिन्तामणि नाम दिया है उसका।।
आज हम आरति करते हैं-२ श्री सिद्धान्तसुचिन्तामणि की, आरति करते हैं।५।।
चन्दनामती माताजी, माँ ज्ञानमती की शिष्या। हिन्दी अनुवाद किया है, इस चिन्तामणि टीका का।।
आज हम आरति करते हैं-२ सरल-सरस टीका की “सारिका'' आरति करते हैं।।६।।
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सर्वतोभद्र मण्डल विधान की आरती
आज करें सर्वतोभद्र की, आरति सब नरनार । मणिमय दीपक लेकर आए, जिनवर के दरबार ।।
हो प्रभुवर हम सब उतारें तेरी आरती ।। टेक.।। ऊध्र्व, मध्य अरू अधोलोक में, जितने भव्य जिनालय । कृत्रिम और अकृत्रिम जिनगृह, सौख्य सुधारस आलय।। जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ॥ १ ॥ भवनवासि व्यन्तर ज्योतिष, वैमानिक के जिनमंदिर। इक सौ आठ जैन प्रतिमा से, शोभ रहे अतिसुन्दर।।
जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ॥२॥
चार शतक अट्ठावन मंदिर, मध्यलोक में गाए। स्वयं सिद्ध जिननिलय अकृत्रिम, ग्रंथों में बतलाए ।
जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ॥ ३ ॥ पंच भरत ऐरावत पांचों, में तीर्थंकर जितने । पांचों महाविदेहों के सब, तीर्थंकर को नम लें ||
जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ॥४॥ अर्हत, सिद्धाचार्य उपाध्याय, साधु पंचपरमेष्ठी । जिनवाणी, जिनधर्म, जिनालय, चैत्य सर्व सुख जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ॥५॥ सबका जो कल्याण करे, सर्वतोभद्र कहलाता।
श्रेष्ठी ॥
इसकी आरति से जन-जन का, भव आरत छुट जाता। जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ॥६॥ ज्ञानमती माताजी ने यह, महाविधान बनाया। करे 'चन्दनामति' जो इसको, मनवांछित फल पाया। जिनवर हम सब उतारें तेरी आरती ||७||
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सहस्रनाम विधान की आरती
ॐ जय अन्तर्यामी, स्वामी जय अन्तर्यामी। सहस आठ गुणधारी, सिद्धिप्रिया स्वामी।।ॐ जय.।टेक.।। निज में निज हेतू ही, निज को जन्म दिया।स्वामी......
अतः स्वयम्भू कहकर, जग ने नमन किया।।ॐ जय.।।१।। चार घातिया नाश अर्ध, नारीश्वर कहलाए।स्वामी ईश्वर.
जग के शांति विधाता, शंकर कहलाए।।ॐ जय.॥२॥ इन्द्र सहस्र नेत्रों से, तेरा दर्श करें। स्वामी.......
नाम सहस्रों द्वारा, संस्तुति नृत्य करें।।ॐ जय.॥३॥ समवसरण के अधिपति, जिनवर की वाणी।स्वामी..
गणधर मुनिगण नरपति, सबकी कल्याणी।।ॐ जय.।।४।। जो प्रभु तेरे गुण की, आरति नित्य करें।स्वामी.... वही “चंदनामती'' जगत की, पीड़ा सर्व हरें।।ॐ जय.।।५।।
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सिध्दचक् विधान की आरती
छम छम छम छम बाजे घुघरू। सिद्धचक्र पाठ की मैं आरती करूँ।।टेक.। आठ कर्म नाश करके आप सिद्ध बन गये। आठ गुण को प्राप्त करके आत्मा में रम गये।। __ इसीलिए उन गुणों की आरती करूँ। सिद्धचक्र पाठ की मैं आरती करूँ ॥१॥
मैनासुन्दरी ने सिद्धचक्र पाठ था किया। पति का कुष्ट रोग प्रभु की भक्ति से मिटा दिया।
भक्ति से मैं भी तुम्हारी आरती करूँ। सिद्धचक्र पाठ की मैं आरती करूँ॥२॥ सिद्धप्रभु का संस्मरण भी कार्यसिद्धि को करे। सिद्धशिला छूके शब्द वर्गणाएँ आती हैं।।
शब्द पुष्प गूंथ के मैं आरती करूँ। सिद्धचक्र पाठ की मैं आरती करूँ॥३॥ वर्तमान, भूत, भाविकाल सिद्ध अर्चना। सब अनंतानंत सिद्ध के गुणों की वंदना।। __ वंदना के गीत गाके आरती करूँ। सिद्धचक्र पाठ की मैं आरती करूँ ॥४॥ स्वर्ण थाल मे रतन के दीप मेरे जल रहे। "चंदनामती” हृदय के पाप मेरे गल रहे।।
चित्त को लगाए ज्ञानभारती भरूँ। सिद्धचक्र पाठ की मैं आरती करूँ ॥५॥
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कैलाश पर्वत की मंगल आरती
मैं तो आरती उतारूँ रे, केलाश गिरिवर की।
जय जय वैवैलाशगिरि, जय जय जय-२॥टेक.।। युग की आदी में प्रभु ऋषभदेव, इस गिरि पर पहुँचे।इस गिरि... अपने योगों का करके निरोध, मुक्तिपुरी पहुँचे।। मुक्तिपुरी...... इन्द्रों ने झूम-झूम, नृत्य किया धूम-धूम, उत्सव मनाया रे,
हो निर्वाण उत्सव मनाया रे।मैं तो..............॥१॥ चक्रवर्ती भरतानो वहाँ, मंदिर बनवाए। मंदिर........... उनके अंदर रतन प्रतिमा, उन्होंने पधराईं।।उन्होंने....... भक्ती का रंग था, वैभव के संग था, खुशियाँ मनाई थीं,
उन्होंने खुशियाँ मनाई थीं।।मैं तो .............॥२॥ वैसी प्रतिमा गिरी पर आज, दिखती हैं कलियुग में। दिखती....
आरती का करो खूब ठाठ, मानो है सतयुग यह।। मानो है.... "चंदना'' मैं भक्ति करूँ, आतम में शक्ति भरूँ, इनको निहारूँ रे,
हो प्यारा-प्यारा पर्वत निहारूँ रे।।मैं तो.........॥३॥
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क्षेत्रपाल देव की आरती
आरति करो रे, श्री क्षेत्रपाल देवा की सब मिल आरति करो रे, आरति करो, आरति करो, आरति करो रे॥श्री...॥टेक.।। विजय वीर मणिभद्र कहाते, आभा तेरी न्यारी है, अपराजित भैरव भी नाम हैं, वूवैकर वाहन धारी हैं।
आरति करो.. सम्यग्दृष्टी देवा की सब मिल आरति करो रे॥१॥ देव शास्त्र गुरू आयतनों की, रक्षा में तुम तत्पर हो, भूत-प्रेत की बाधा हरते, सकल सौख्य के पूरक हो।।
आरति करो.............. धन सुख सम्पति दाता, देवा की आरति करो रे।।२।। परम कृपाला, दीनदयाला, तेरी आरति को आए, इच्छा सारी पूरी होगी, आश ‘इन्दु' मन में लाए।
आरति करो.............. संकटहर्ता, मंगलकर्ता की आरति करो रे॥३॥
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गणधर स्वामी की आरती जय जय ऋषिवर, हे ऋद्धीश्वर, की मंगल दीप प्रजाल के,
____ मैं आज उतारूं आरतिया।टेक.।।
तीन न्यून नव कोटि मुनीश्वर, ढाई द्वीप में होते। घोर तपस्या के द्वारा, निज कर्म कालिमा धोते।।गुरू जी।। गणधर भी हैं, श्रुतधर भी हैं, इन मुनियों में सरताज वे
____ मैं आज उतारूं आरतिया।।१॥
वृषभसेन से गौतम तक हैं, तीर्थंकर के गणधर। सबने ही कैवल्य प्राप्त कर, पाया पद परमेश्वर।।गुरू जी..... प्रभु दिव्यध्वनि, सुन करके मुनी, करते निज पर कल्याण हैं।
___ मैं आज उतारूं आरतिया।।२।। गणधर के अतिरिक्त तपस्वी, मुनि की ऋद्धी पाते। उनको नमकर नर-नारी के, रोग, शोक नश जाते।।गुरू जी.।। अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा इत्यादि ऋद्धियां प्राप्त हैं।
__ मैं आज उतारूं आरतिया।।३॥
इन मुनियों के वंदन में, निज वंदन भी करना है।, क्योंकि "चंदनामती'' मुझे भी, इक दिन शिव वरना है।।गुरू जी.।। ज्ञानी ध्यानी, श्रुत विज्ञानी, गुरू को वन्दन शत बार है।
मैं आज उतारूं आरतिया।॥४॥
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गणिनी ज्ञानमती माताजी की आरती (1)
गणिनी माता ज्ञानमती की आरति है सखकारी। इनके दर्शन से नश जाता मोह तिमिर भी भारी।।
बोलो जय जय जय, बोलो......|टेक.।। धन्य टिकैतनगर की धरती, जन्म हुआ जहाँ इनका। छोटेलाल पिता माँ मोहिनि, शरदपूर्णिमा दिन था।।
अमृत झरता था चंदा से.. अमृत झरता था चंदा से, खिली चाँदनी प्यारी।।इनके......॥१॥
ब्राह्मी चन्दनबाला का, मारग अपनाया माता। साधू पद धारण कर तुमने, तोड़ा जग से नाता।।
सारी वसुधा बनी कुटुम्बी.... सारी वसुधा बनी कुटुम्बी, महिमा तेरी निराली।।इनके......॥२॥
ग्रन्थों की रचना में तुमने, नव इतिहास बनाया। ऋषभदेव के समवसरण का, भारत भ्रमण कराया।।
___ हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की.......... हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप की, रचना है अति प्यारी।।इनके......॥३॥
तीर्थ अयोध्या, मांगीतुंगी, का विकास करवाया। नई-नई निर्माण योजना, को साकार कराया।।
युगप्रवर्तिका, प्रमुख आर्यिका........ युगप्रवर्तिका, प्रमुख आर्यिका, छवि तेरी अति प्यारी।।इनके .....॥४॥
ऐसी माता से धरती का, आंचल होय न सूना। युग-युग तक “चंदना” अमर हो, यह प्राचीन नमूना।।
इनमें दिखती सरस्वती की.......... इनमें दिखती सरस्वती की, पावन मूरत प्यारी।।इनके......॥५।।
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श्री ज्ञानमती माताजी की आरती (2)
आरति करो रे, श्री गणिनी ज्ञानमती माताजी की आरति करो रे ।।टेक.।।
जिनके दर्शन वंदन से, अज्ञान तिमिर नश जाता है। जिनकी दिव्य देशना से, शुभ ज्ञान हृदय वश जाता है।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती जी की आरति करो रे॥१॥
श्री चारित्रचक्रवर्ती, आचार्य शांतिसागर जी थे। उनके प्रथम पट्ट पर श्री आचार्य वीरसागर जी थे।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री वीरसिन्धु की शुभ शिष्या की आरति करो रे।।२।। कितने ग्रन्थों की रचयित्री, युग की पहली बालसती। तेरे चरणों में आ करके, बन गए कितने बालयती।। ___ आरति करो, आरति करो, आरति करो रे,
श्री पारसमणि सम ज्ञानरत्न की आरति करो रे।।३।। पितु श्री छोटेलाल मोहिनी, माँ के घर में जन्म लिया। मोहिनि से बन रत्नमती, तव चरणों में भी नमन किया।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री सरस्वती की प्रतिमूर्ती की आरति करो रे।।४।। जम्बूद्वीप प्रेरणा कर शुभ, ज्ञानज्योति उद्योत किया। सबको ज्ञानज्योति देकर, निज आत्मज्योति प्रद्योत किया।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री ज्ञानज्योति दाता माता की आरति करो रे।।५।।
तव चरणों में आए माता, ज्ञानपिपासा पूर्ण करो। कहे “चंदनामती'' ज्ञान की, सरिता मुझमें पूर्ण भरो।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, माँ ज्ञानमती के ज्ञानगुणों की आरति करो रे।।६।।
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श्री ज्ञानमती माताजी की आरती (3) जलाकर दीप खुशियों के, हम आरति करने आए हैं। हम..... तेरी इस ज्ञान सरिता से, सुधारस भरने आए हैं।। सुधा....॥टेक.।। पिता-माता की ममता तज, जगत का प्यार पाया है।
गुरु श्री वीरसागर से, ज्ञानमती नाम पाया है।। तेरी उस ज्ञानमय प्रतिभा, का दर्शन करने आए हैं। हाँ दर्शन..............जलाकर दीप..............॥१॥
सुना है तेरे तप में भी, विशल्या जैसी शक्ती है।
तेरे पूजा विधानों ने, दिखा दी तेरी भक्ति है।। उसी तप शक्ति, भक्ती का, हाँ दर्शन करने आए हैं। हाँ दर्शन..............जलाकर दीप..............॥२॥ मेरी इस काव्यमय लघु आरती, में शब्दों का घृत है। भाव हैं “चंदनामति” ये, मिले श्रुतज्ञान अमृत है।।
इसी विश्वास में हे माँ, तेरे पे हम आए हैं।तत
तेरे दर पे..............जलाकर दीप..............॥३॥
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श्री ज्ञानमती माताजी की आरती (4)
आरति करने आये हम सब द्वार तिहारे ॥हाँ.........॥ भावों का यह दीप है जिसमें चमकें चाँद सितारे।। आरति.।।टेक.।।
विषय भोग तज करके तुमने, गृहबन्धन को तोड़ा। प्रभु वाणी भज करके तुमने, जग से मुख को मोड़ा।। तभी तुम्हारे दर्शन करके, भक्त विघन सब टारें।।
आरति..........................॥१॥ धन्य हुईं वे मोहिनि माता, जिनने तुमको जन्म दिया। स्वयं आर्यिका रत्नमती बन, नारी जीवन धन्य किया।। छोटेलाल पिता भी तुमसे, थे विराग में हारे।
आरति.. ......................॥२॥ श्री आचार्य वीरसागर से, ज्ञानमती संज्ञा पाई। गणिनी पद को प्राप्त किया, तुम युगप्रवर्तिका कहलाई।। हे चारित्रचन्द्रिका माता! हम हैं भक्त तुम्हारे।
आरति..........................॥३॥ तुमने अपने ज्ञान का उपवन, रत्नत्रय से संवारा है। तभी सैकड़ों ग्रन्थों की, रचना तुमने कर डाला है। इस युग के विद्वान भी तेरे, गुण को सतत उचारें।
___ आरति..........................॥४॥ शारद माता की आरति, अज्ञान तिमिर को हरती है। जीवन पथ को ज्ञान रश्मियों, से आलोकित करती है।। यही "चंदना' भाव संजोकर, आरति सभी उतारें। आरति..
.........॥५॥
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गणिनी ज्ञानमती माताजी की आरती (5)
भक्ति भाव लेकर, दीपक थाल लेकर, गणिनी माता की आरती करें हम || टेक.।। तुम ज्ञानमती कहलाईं, तुम बालसती बन आईं, दीपक हाथ लेकर, सबको साथ लेकर, गणिनी माता की आरती करें हम ॥ १ ॥
इतिहास की तुम निर्मात्री,कई तीर्थों की प्रेरणाप्रदात्री,
नई याद लेकर, भक्ति साथ लेकर, गणिनी माता की आरती करें हम ॥ २ ॥
जम्बूद्वीप बना है धरा पर, जिससे चमक रहा हस्तिनापुर, वही याद लेकर, भक्ति साथ लेकर, गणिनी माता की आरती करें हम || ३ ||
मांगीतुंगी अयोध्या में जाकर, किया निर्माण नूतन वहाँ पर, वही याद लेकर, भक्ति साथ लेकर, गणिनी माता की आरती करें हम ||४||
पुनः तीरथ प्रयाग बनाया, ऋषभ जिनवर का नाम गुंजाया,
पुण्यधाम लेकर, तेरा नाम लेकर,
गणिनी माता की आरती करें हम ॥५॥
वीर जन्मभूमी का यश बढ़ाया, कुण्डलपुर का विकास कराया,
श्रुत का सार लेकर, आधार लेकर,
गणिनी माता की आरती करें हम ॥ ६ ॥,
तुम युग-युग जिओ मेरी माता, " चंदना" गाएँ सब तेरी गाथा,
श्रद्धाभाव लेकर, दीपक थाल लेकर, गणिनी माता की आरती करें हम ॥७॥
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गणिनी ज्ञानमती माताजी की आरती (6)
आरती गणिनी माता की
दीपक जलाकर, थाली सजाकर, सब मिल करो आरतिया .टेक.।।
आरती.
अज्ञान तिमिर न जावे, निज ज्ञान किरण पा जाऊँ । गणिनी माँ की आरति कर, भव आरत से छुट जाऊँ।। आरती गणिनी माता की .. ...॥१॥
आश्विन शुक्ला पूनो को, इक चाँद धरा पर आया। मैना से ज्ञानमती बन, उसने अमृत बरसाया।
आरती गणिनी माता की .......॥२॥ साहित्य सृजन के द्वारा, तुमने इतिहास बनाया। शुभ ज्ञान ज्योति के द्वारा, जग में प्रकाश फैलाया ।। आरती गणिनी माता की. .॥३॥
C
ब्राह्मी माँ की प्रतिमूरत, मानो कलियुग में आईं। आर्यिका परम्परा ने, क्वाँरी कन्याएँ पाईं।।
आरती गणिनी माता की .......॥४॥
कंचन का दीप जलाकर, वरदान यही मैं चाहूँ ।
'चंदनामती' निज आतम, में ज्ञान की ज्योति जलाऊँ।।
आरती गणिनी माता की .......॥५॥
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गिरनार सिद्धक्षेत्र तीर्थ की आरती
चलो सभी मिल करें आरती, सिद्धक्षेत्र गिरनार की । नेमिप्रभु के तीन कल्याणक पावन शुभ धाम की। जय गिरनार गिरी, बोलो जय गिरनार गिर ॥ टेक ॥
जूनागढ़ में नेमिनाथ राजुल को ब्याहन आए थे, पशुओं की चीत्कार सुनी जब, मन ही मन अकुलाए थे, चले विरक्तमना होकर प्रभु, राह गही शिवधाम की। नेमिनाथ.... ॥ जय जय ॥ १॥
राजुल भी पति की अनुगामिनि, बन नेमी की शरण गई, दीक्षा ले प्रभु पादकमल में, तपश्चरण में लीन हुई, समवसरण में गणिनी बन, हुईं पावन पूज्य महान थीं। नेमिनाथ.. ॥जय-जय ॥२॥ टोंक पांचवीं इस पर्वत की, प्रभु को जहाँ निर्वाण हुआ, इसी तीर्थ गिरनार से कितने, मुनियों ने भी मोक्ष लहा, कर उत्कीर्ण चरण सुरपति ने, गाया जय-जयगान भी। नेमिनाथ.... इस पर्वत का वन्दन करने, कुंदकुंददेव गुरु आए थे, बोल पड़ी पाषाण अम्बिका, चमत्कार दरशाए थे,
॥जय-जय ॥३॥
हुई जीत nirgrantha_ धर्म की, ऐसी महिमावान थी । नेमिनाथ.... जिन संस्कृति की अमिट धरोहर, पावन पूज्य तीर्थ अ
॥ जय जय ॥४॥
पना, वर्तमान में हर जैनी की, श्रद्धा का शुभ केन्द्र बना, मुक्तिधाम की आश लिए, 'चंदना' जजूं गिरिराज जी । ॥जय-जय ॥५॥
नोमिनाथ...
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गोमुख देव की आरती (इसमें किसी भी देवी-देव का नाम लेकर उनकी आरती कर सकते हैं)
ॐ जय गोमुख स्वामी, स्वामी जय गोमुख स्वामी मंगलकारक, दुःखनिवारक, विघ्नहरण नामी।।ॐ.॥टेक.।।
ऋषभदेव के शासन यक्ष हो, जिनपद के सेवी, धर्म प्रभावन तत्पर, सेवा हित यह भी।।ॐ जय......॥१॥
देव, शास्त्र, गुरु आयतनों की रक्षा सदा करें, पीर पड़े जब प्रभु भक्तन पे, उनकी पीर हरें।।ॐ जय......॥२॥
रोग, शोक, भयनाश्नाकारी, मंगलकर्ता हो, भूत, प्रेत, दुख-दारिद नाशक, संकट हर्ता हो।।ॐ जय......॥३॥
__ धनअर्थी धन की इच्छाकर धनसम्पति पाते, सुतअर्थी उज्ज्वल कीर्तीयुत संतति को पाते।।ॐ जय......॥४॥
इसी हेतु घृत दीपक लेकर, तव द्वारे लाए, लौकिक सुख के साथ-२ आध्यात्मिक सुख पाएं।।ॐ जय......॥५॥
श्रद्धा भक्ति भरे भावों से, जो द्वारे आता, 'इन्दु' पूर्ण हो सब मनवांछित, जो तव गुण गाता।।ॐ जय.......॥६॥
माता,
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चक्रेश्वरी माता की आरती तर्ज—करती हूँ तुम्हारी भक्ति............ करते हैं तुम्हारी आरति, अन्तरदीप जलेगा। चक्रेश्वरि माता का सुमिरन, दःख शोक हरेगा।। जय माँ चक्रेश्वरि, जय माँ चक्रेश्वरि।।टेक.।।
आये है बड़ी दूर से, ले दर्श की आशा। मनवाच्छित पूरा होता, हरती सब असाता।। तेरे भक्त खड़े तेरे द्वारे, उद्धार तो होगा।
चक्रेश्वरि माता.......जय माँ.......॥१॥ हे ऋषभदेव की शासन देवी, अरज मेरी सुन लो। हे गोमुख यक्ष की प्रियकारिणि, मेरी मनवांछा पूरो।। सच्ची श्रद्धा जब होगी, तब ही कार्य बनेगा।
चक्रेश्वरि माता.......जय माँ.......॥२॥
हमने सुना जो जीव, तेरे द्वार पर आता। धन, पुत्र, पौत्र अरु सम्पति पाकर, सुखमय हो जाता।।
घर, ग्राम, नगर अरु देश सदा खुशहाल रहेगा। __चक्रेश्वरि माता.......जय माँ.......॥३॥ ये तो सांसारिक सुख हैं माँ, आध्यात्मिक सुख दे दो।
आत्मा हो निर्मल शीघ्र हमारी, ऐसी शक्ती दो।। माँ “इन्दु'' आश यह सबकी, वह सुख शीघ्र मिलेगा।
चक्रेश्वरि माता.......जय माँ.......॥४॥
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चौबीस तीर्थंकर जन्मभूमि की आरती
आरति करो रे, चौबिस तीर्थंकर जन्मभूमि की आरति करो रे।। __ आरति करो, आरति करो, आरति करो रे। चौबिस तीर्थंकर जन्मभूमि की, आरति करो रे।।टेक.।। शाश्वत जन्मभूमि जिनवर की, नगरि अयोध्या मानी है। पर हुण्डावसर्पिणी युग की, बदली पुण्य कहानी है।।
___आरति करो, आरति करो, आरति करो रे। सब तीर्थंकर की पुण्यभूमि की, आरति करो रे।।चौबिस.।।१।। ऋषभ, अजित, अभिनंदन, सुमती, प्रभु अनन्त तीर्थंकर ने। जन्म अयोध्या में लेकर, पावनता भर दी फिर उसमें।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे। शुभ तीर्थ अयोध्या जन्मभूमि की, आरति करो रे।।चौबिस.॥२।।
श्रावस्ती, कौशाम्बी, वाराणसी, चन्द्रपुरि, काकन्दी। संभव,पद्म, सुपारस, पारस, चन्द्र व पुष्पदंत नगरी।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे। तीर्थंकर जन्म व कर्मभूमि की आरति करो रे।।चौबिस.॥३॥
तीर्थ भद्रिकापुरी, सिंहपुरि, चंपापुरि, कम्पिलनगरी। शीतल, श्रेयो, वासुपूज्य एवं प्रभु विमल की जन्मपुरी।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे। चारों कल्याणक पावन भू की आरति करो रे।।चौबिस.॥४॥
रत्नपुरी, हस्तिनापुरी, मिथिला, राजगृह,शौरीपुर। धर्म, शांति, कुंथू, अर, मल्ली, नमि, मुनिसुव्रत, नेमीश्वर।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे। आठों जिनवर की जन्मभूमि की आरति करो रे।।चौबिस.॥५।।
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जम्बूद्वीप की आरती ॐ जय जम्बूद्वीप जिनं, स्वामी जय जम्बूद्वीप जिन। इसके बीचोंबीच सुशोभित, स्वर्णाचल अनुपम।।ॐ जय.॥टेक.॥
जम्बूद्रुम से सार्थक, जम्बूद्वीप कहा।।स्वामी.।। मणिमय नग चैत्यालय-२, से युत शोभ रहा।।ॐ जय.॥१॥
मेरू सुदर्शन पूर्व अपर में, बत्तिस हैं नगरी।। स्वामी.।। तीर्थंकर की सतत जहां पर-२ दिव्यध्वनि खिरती।।ॐ जय.॥२॥
सिद्धकूट अरू सुरगृह में भी, जिनप्रतिमा शाश्वत।स्वामी.।। ऋद्धि सहित ऋषि वन्दन करके-२ पीते परमामृत।।ॐ जय.॥३।।
सिद्ध केवली तीर्थंकर अरू, परमेष्ठी होते।।स्वामी.।। इस ही भू पर जन्मे-२ अरू शिव भी पहुंचे ।।ॐ जय.।४।।
इसी हेतु यह द्वीप जगत में, पावन पूज्य कहा।। स्वामी।। तीर्थंकर जन्माभिषेक भी-२ करते इन्द्र जहां।।ॐ जय.॥५।।
हस्तिनागपुर में यह रचना, वैभवपूर्ण बनी।।स्वामी.।। ज्ञानमती की अमरकृती यह-२ सुन्दर सौख्य घनी।।ॐ जय.॥६॥
अठसत्तर जिनगेह अकृत्रिम, अतिशय युत शोभें।।स्वामी.।। लहें “चंदना” क्रम से शिवपुर-२, जो जिनवर पूजे।।ॐ जय.।।७।।
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तीर्थंकर पंचकल्याणक भूमि की आरती
तर्ज—पंखिड़ा.....
आरती करूँ मैं सभी तीर्थधाम की। जिनवरों के पंचकल्याण धाम की।।आरती........।।टेक.।
प्रभु की जन्मभूमि वंदना से जन्म सफल हो। प्रभु की त्यागभूमि अर्चना से धन्य जनम हो।।
झूम झूम भक्ति करूँ, नृत्य करूँ मैं। आरती प्रभू की करके पुण्य भरूँ मैं।आरती......॥१॥
घाति कर्मनाश प्रभु को दिव्यज्ञान हो जहाँ। धनकुबेर नभ में समवसरण को रचें वहाँ।।
झूम झूम भक्ति करूँ नृत्य करूँ मैं। आरती प्रभू की करके पुण्य भरूँ मैं।आरती......॥२॥
अष्टकर्म नाश प्रभु को मोक्ष प्राप्त हो जहाँ। सिद्धक्षेत्र उनको जैन ग्रंथ शास्त्रों में कहा।।
झूम झूम भक्ति करूँ, नृत्य करूँ मैं। आरती प्रभू की करके पुण्य भरूँ मैं।आरती......॥३॥
मांगीतुंगी आदि और कई सिद्धक्षेत्र हैं। अन्य अतिशयों से पूर्ण कहे अतिशयक्षेत्र हैं।।
झूम झूम भक्ति करूँ, नृत्य करूँ मैं। आरती प्रभू की करके पुण्य भरूँ मैं।।आरती......॥४॥
घृत का दीप लेके तीर्थक्षेत्र आरती करूँ। "चन्दनामति” हृदय में ज्ञानभारती भरूँ।।
झूम झूम भक्ति करूँ, नृत्य करूँ मैं। आरती प्रभू की करके पुण्य भरूँ मैं।आरती......॥५॥
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तेरहद्वीप रचना की आरती
आरति करो रे, तेरहद्वीपों के जिनबिम्बों की आरति करो रे।। टेक.।। तीन लोक में मध्यलोक के अंदर द्वीप असंख्य कहे। उनमें से तेरहद्वीपों में अकृत्रिम जिनबिंब रहें।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, चउ शत अट्ठावन जिनमंदिर की आरति करो रे॥१॥ इनमें ढाई द्वीपों तक ही मनुज क्षेत्र कहलाता है। पंच भरत पंचैरावत क्षेत्रों का दृश्य सुहाता है।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्रीपंचमेरु के जिनबिम्बों की आरति करो रे।।२।। पंचम क्षीर समुद्र के जल से प्रभु का जन्म न्हवन होता।
अष्टम द्वीप नंदीश्वर में इन्द्रों द्वारा अर्चन होता।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, कुण्डलवर और रुचकवर द्वीप की आरति करो रे॥३॥
इन सबका वर्णन तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में मिलता है। दर्शन कर साक्षात् पुण्य का कमल हृदय में खिलता है।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, ढाई द्वीपों के समवसरण की आरति करो रे॥४॥ गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माताजी ने हमें बताया है। हस्तिनापुर में यह रचना जिनमंदिर में बनवाया है।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, “चन्दनामती'' इस अद्भुत कृति की आरति करो रे।।५।।
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दशधर्म की आरती दशधर्मों की आरति करके, होगा बेड़ा पार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।टेक.॥ आत्मा को दुख से निकालकर, जो सुख में पहुँचाता। हर प्राणी के लिए वही तो, सच्चा धर्म कहाता।
उसी धर्म को धारण करके, होगा बेड़ा पार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।१।। उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव, धर्म कहे आत्मा के। इनसे मैत्री विनय सरलता, प्रगटित हों आत्मा में।।
उत्तम सत्य व शौच धर्म से, होगा बेड़ा पार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।२।। उत्तम संयम तप व त्याग, मुक्ती का मार्ग बताते। इनको पालन करके मुनिजन, मुक्तिपथिक कहलाते। हम भी इनका पालन करके, लहें मुक्ति का द्वार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।३।। उत्तम आकिञ्चन्य धर्म, परिग्रह का त्याग कराता। श्रावक को परिग्रह प्रमाण का, सरल मार्ग समझाता।।
उत्तम ब्रह्मचर्य तिहुँ जग में, है सब धर्म का सार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।४।। पर्व अनादी दशलक्षण में, दश धर्मों को वन्दन। इनकी आरति से हि “चन्दनामती' को भव बंधन।।
इसीलिए दश धर्म हृदय में, लिए हैं हमने धार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।५।।
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धरणेन्द्र देव की मंगल आरती
मैं तो आरती उतारूं रे, धरणेन्द्र देवा की जय जय धरणेन्द्र देव, जय जय जय-टेक.॥ पाश्र्वनाथ के शासन देव, महिमा जग न्यारी।
सम्यग्दर्शन से हो परिपूर्ण, सब संकट हारी।। सुख के प्रदाता हो, मनवांछित दाता हो, इच्छा करो पूरी,
भक्त की इच्छा करो पूरी।। मैं तो आरती उतारूं रे ..............॥१॥ पारस प्रभुवर से जब तुमने, मंत्र नवकार सुना।
बनें पद्मावती धरणेन्द्र, विघ्नों का नाश किया।। उपकारकर्ता पे, उपसर्ग आया तो, छत्र किया फण का,
हो आकर छत्र किया फण का ॥ मैं तो आरती उतारूं रे ..............॥२॥ भक्ति भाव से आशा ले, जो दर पे आता।
रोग, शोक व दुख, दारिद्र, संकट मिट जाता।। सुत अर्थी सुत पाने, धन अर्थी धन पाते, महिमा को गाते हैं,
भक्त तेरी महिमा को गाते हैं।। मैं तो आरती उतारूं रे ..............॥३॥ कष्ट जब-जब पड़े भक्त पे, रक्षा तुम करते।
जो भटक जाए मारग से, राह नई देते।। दिव्य प्रभाधारी हो, सकल सौख्यकारी हो, शत-शत नमन तुमको,
हे यक्ष देव शत-शत नमन तुमको।।
मैं तो आरती उतारू रे ..............॥४॥ देवी पद्मावती के स्वामि, तव महिमा गाऊंलौकिक सुख के संग आत्मिक सुख इक दिन पाऊं।।
ऐसी ही आश ले, मन में विश्वास ले, ‘इन्दु' तेरे द्वार आई रे,
_ 'इन्दु' तेरे भक्त तेरे द्वार आए रे।। मैं तो आरती उतारूं रे ..............॥५॥
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भगवान श्री धर्मनाथ की आरती
तर्ज—मन डोले, मेरा तन डोले......... जय धर्म प्रभू, करूणासिन्धू की मंगल दीप प्रजाल के
मैं आज उतारूं आरतिया ।।टेक.॥ पन्द्रहवें तीर्थंकर जिनवर, धर्मनाथ सुखकारी। तिथि वैशाख सुदी तेरस, गर्भागम उत्सव भारी।।
प्रभू गर्भागम उत्सव भारी.. सुप्रभावती, माता हरषीं, पितु धन्य भानु महाराज थे,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।जय धर्म.....॥१॥ रत्नपुरी में रत्न असंख्यों, बरसे प्रभु जब जन्मे। गिरि सुमेरु की पांडुशिला पर, इन्द्र न्हवन शुभ करते।।
प्रभू जी इन्द्र कर जन्मकल्याणक का उत्सव, महिमा गाएं जिननाथ की,
__मैं आज उतारूँ आरतिया।।जय धर्म.....॥२॥ वैरागी हो जब प्रभु ने, दीक्षा की मन में ठानी। लौकान्तिक सुर स्तुति करके, कहें तुम्हें शिवगामी।।
प्रभू जी कहें....... कह सिद्ध नमः, दीक्षा धारी, मुनियों में श्रेष्ठ महान थे,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।जय धर्म.....॥३॥ केवलज्ञान प्रगट होने पर, अर्हत् प्रभु कहलाए। द्वादश सभा रची सुर नर मुनि, ज्ञानामृत को पाएं।।
प्रभू जी ज्ञानामृत को पाएं............ केवलज्ञानी, अन्तर्यामी, कैवल्यरमापति नाथ की
मैं आज उतारूँ आरतिया।।जय धर्म.....॥४॥ ज्येष्ठ सुदी शुभ आई चतुर्थी, शिवपद प्राप्त किया था। श्री सम्मेदशिखर गिरिवर से, शिवपद प्राप्त किया था।।
प्रभू जी शिवपद... "चंदनामती” तव चरण नती, कर पाऊँ सुख साम्राज्य भी
मैं आज उतारूँ आरतिया।। जय धर्म.....॥५।।
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नन्दीश्वर पर्व की आरती
चलो सब मिल आरति कर लो, चलो सब मिल आरति कर लो।
नन्दीश्वर के बावन मंदिर की आरति कर लो।।चलो. ॥ टेक ॥
मध्यलोक में अष्टम द्वीप का नाम नन्दीश्वर है । उसी द्वीप के चारों दिश में, बावन मन्दिर हैं। उन्हीं प्रभु की आरति कर लो,
अंजन दधिमुख रतिकर पर्वत की आरति कर लो ।।चलो. ॥१॥ केवल इन्द्र देवगण ही, इस द्वीप में जाते हैं । नन्दीश्वर पर्वों में वहां पर, धूम मचाते हैं ।। मेरूगिरि की आरति कर लो,
मनुज क्षेत्र के पंचमेरु, जिनकी आरति कर लो। चलो . ॥२॥ कार्तिक, फाल्गुन, षाढ़ मास में पर्व है यह आता। आष्टान्हिक या नन्दीश्वर, कहकर पूजा जाता । सिद्ध प्रभु की आरति कर लो,
अकृत्रिम सब जिनवर बिम्बों, की आरति कर लो। चलो ॥३॥
सिद्धों की वंदना कार्य की, सिद्धी करती है। भक्ती से “चंदनामती’”, मुक्ती भी मिलती है। अतः भक्ती तुम भी कर लो, श्री जिनमंदिर, जिनप्रतिमाओं की आरति कर लो। चलो. ॥४॥
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मंगल आरती घृत दीपक का थाल ले, उतारूँ आरतिया, मैं तो पाँचों परमेष्ठी की। पाँचों परमेष्ठी की एवं चौबीसों जिनवर की।घृत दीपक.।टेक.।।
समवसरणयुत अरिहंतों की, सिद्धशिला के सिद्धों की-२ भवदुख नाशन हेतु ही, उतारूँ आरतिया मैं तो पाँचों परमेष्ठी की॥१॥
___ परमेष्ठी आचार्य उपाध्याय साधु मोक्षपथगामी है-२ रत्नत्रय की प्राप्ति हित, उतारूँ आरतिया मैं तो पाँचों परमेष्ठी की।॥२॥
___ मुनिवर ही तो कर्म नाश, अरिहंत-सिद्ध पद पाते हैं-२ कर्म विनाशन हेतु ही, उतारूँ आरतिया मैं तो पाँचों परमेष्ठी की।।३।।
चौबीस जिन जहाँ जन्मे एवं जहाँ से मोक्ष पधारे हैं-२ उन सब पावन तीर्थ की, उतारूँ आरतिया मैं तो पाँचों परमेष्ठी की।॥४॥
देव-शास्त्र-गुरू तीनों जग में, तीन रतन माने हैं-२ आतम निधि के हेतु ही, उतारूँ आरतिया मैं तो पाँचों परमेष्ठी की।।५।।
तीन लोक के जिनमन्दिर, कृत्रिम-अकृत्रिम जितने हैं-२ उन सबकी “चंदनामती”, उतारूँ आरतिया मैं तो पाँचों परमेष्ठी की॥६॥
पाँचों परमेष्ठी की एवं चौबीसों जिनवर की-२ घृत दीपक का थाल ले, उतारूँ आरतिया मैं तो पाँचों परमेष्ठी की।।७।।
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परम पूज्य आर्यिका श्री रत्नमती माताजी की आरती
ॐ जय जय रत्नमती, माता जय जय रत्नमती। मनहारी सुखकारी, तेरी शांत छवी।।ॐ जय.॥टेक.।। मोहिनी से बन रत्नमती यह, पद सच्चा पाया। माता....... कितने रत्न दिये तुम जग को, तज ममता माया।।ॐ जय.।। पूर्व दिशा रवि से मुखरित हो, जग तामस हरतीं। माता....... ज्ञानमती सा रवि प्रगटाकर, मिथ्यातम हरतीं।। ॐ जय.।। रत्नत्रय में लीन सदा तुम, संयम साध रहीं। माता........ यही कामना करे “चंदना', पाऊँ मोक्ष मही॥ ॐ जय.॥
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पावापुरी सिद्धक्षेत्र की मंगल आरती
आरती पावापुरिवर की, वीर प्रभू के मोक्षगमन से, पावन स्थल की।।आरती...॥टेक.॥
सिद्धारथ के घर जन्में, कुण्डलपुर धन्य हुआ था, जृम्भिका ग्राम में प्रभु को, फिर केवलज्ञान हुआ था।।आरती...।।१।।
कार्तिक कृष्णा मावस को, भगवन निर्वाण पधारे, सब कर्म अरी को नाशा, जा सिद्धशिला पर राजे।।आरती...॥२॥
देवों ने नगरी में आ, निर्वाणकल्याण मनाया, अगणित दीपों को जलाकर, उत्सव था खूब कराया।।आरती...॥३॥
उसके प्रतीक में तब से, ‘दीपावलि' पर्व चला है, सुर नर वंदित यह तीरथ, तब से ही पूज्य हुआ है।।आरती...॥४॥
इन्द्रों से विराजित चरणों, को हर प्राणी नमता है, पावापुरि का जल मंदिर, वह दिव्य कथा कहता है।।आरती...॥५।।
गौतम गणधर स्वामी की, यह केवलज्ञान थली है, दीपावलि की सन्ध्या में, दिव्यध्वनि वहीं खिरी है।।आरती...॥६॥
गणिनी माँ ज्ञानमती के, जब चरण पड़े तीरथ पर, भूमण्डल पर वह छाया, फैली जग में नव कीरत।।आरती...॥७।।
प्रभू वीर का नूतन मंदिर, उसमें खड्गासन प्रतिमा, "चंदनामती'' युग-युग तक, फैलेगी धर्म की महिमा।।आरती...॥८॥
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पावापुरी सिद्धक्षेत्र वंदना
वंदना मैं करूँ पावापुर तीर्थ की, जो है निर्वाणभूमी महावीर की। अर्चना मैं करूँ पावापुर तीर्थ की, जो है कैवल्यभूमी गणाधीश की। जैनशासन के चौबीसवें तीर्थंकर, जन्मे कुण्डलपुरी राजा सिद्धार्थ घर। रानी त्रिशला ने सपनों का फल पा लिया, बोलो जय त्रिशलानंदन महावीर की॥१॥
वीर वैरागी बनकर युवावस्था में, दीक्षा ले चल दिये घोर तप करने को।
मध्य में चन्दना के भी बंधन कटे, बोलो कौशाम्बी में जय महावीर की।।२।। प्रभु ने बारह बरस तक तपस्या किया,
केवलज्ञान तब प्राप्त उनको हुआ। राजगिरि विपुलाचल पर प्रथम दिव्यध्वनि, खिर गई बोलो जय जय महावीर की।।३।। तीस वर्षों में, प्रभु का भ्रमण जो हुआ,
सब जगह समवसरणों की रचना हुई। पावापुर के सरोवर से शिवपद लिया, बोलो जय पावापुर के महावीर की॥४॥ मास कार्तिक अमावस के प्रत्यूष में, कर्मों को नष्ट कर पहुँचे शिवलोक में।
तब से दीपावली पर्व है चल गया, बोलो सब मिल के जय जय महावीर की॥५॥
पावापुर के सरोवर में फूले कमल, आज भी गा रहे कीर्ति प्रभु की अमर।
वीर प्रभु के चरण की करो अर्चना, बोलो जय सिद्ध भगवन् महावीर की।६।।
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पंक में खिल के पंकज अलग जैसे हैं,
मेरी आत्मा भी संसार में वैसे है। उसको प्रभु सम बनाने का पुरुषार्थ कर, जय हो अंतिम जिनेश्वर महावीर की।।७।। पूरे सरवर के बिच एक मंदिर बना, जो कहा जाता जल मंदिर है सोहना। पारकर पुल से जाकर करो वंदना, बोलो जय पास जाकर महावीर की।।८।। लोग प्रतिवर्ष दीपावली के ही दिन,
पावापुर में मनाते हैं निर्वाणश्री। भक्त निर्वाणलाडू चढ़ाते जहाँ, बोलो
उस भूमि पर जय महावीर की।९।। वीर के शिष्य गौतम गणीश्वर ने भी, पाया कैवल्यपद वीर सिद्धि दिवस। पूजा महावीर के संग करो उनकी भी, बोलो गौतम के गुरु जय महावीर की।।१०।।
पावापुर में नमूं वीर के पदकमल,
और गौतम, सुधर्मा के गणधर चरण। “चन्दनामति” चरणत्रय का वन्दन करो, बोलो जय रत्नत्रयपति महावीर की॥११॥
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पूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की आरती
हे बालसती, माँ ज्ञानमती, हम आए तेरे द्वार पे
शुभ मंगल दीप प्रजाल लिया ।। टेक.।।
शरद पूर्णिमा दिन था सुन्दर, तुम धरती पर आईं। उन्नीस सौ चौंतिस में मोहिनि जी हरषाईं||माता
माता,
थे पिता धन्य, नगरी भी धन्य, मैना के इस अवतार पे, शुभ मंगल दीप प्रजाल लिया ॥१॥
बाल्यकाल से ही मैना के, मन वैराग्य समाया।
तोड़ जगत के बन्धन सारे, छोड़ी ममता माया ।। माता... गुरु संग मिला, अवलम्ब मिला, पग बढ़े मुक्ति के द्वार पे, शुभ मंगल दीप प्रजा लिया ॥२॥
प्रथम देशभूषण गुरुवर से, लिया क्षुल्लिका दीक्षा । वीरसागर आचार्य से पाई, आत्मज्ञान की शिक्षा ।। माता.. बन वीरमती, से ज्ञानमती, उपकार किया संसार पे, शुभ मंगल दीप प्रजाल लिया ॥३॥
यथा नाम गुण भी हैं वैसे, तुम हो ज्ञान की दाता। तुम चरणों में आकर के हर, जनमानस हरषाता ॥ माता....... साहित्य सृजन, श्रुत में ही रमण, कर चलीं स्वात्म विश्राम पे, शुभ मंगल दीप प्रजाल लिया॥४॥ मंगल आरति करके माता, यही याचना करते । अपने से गुण मुझको देकर, ज्ञान की सरिता भर दे || माता ... भव पार करो, उद्धार करो, " चंदना ” यही जग सार है। शुभ मंगल दीप प्रजाल लिया ॥५॥
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मध्यलोक के चार सौ अट्ठावन जिनमंदिर की आरती जय सिद्ध प्रभो, अरहंत प्रभो, अकृत्रिम जिनवर धाम की,
मैं आज उतारूँ आरतिया।टेक.। मध्यलोक में चार शतक, अट्ठावन जिन चैत्यालय। जिनप्रतिमा से शोभित सुन्दर, सौख्य सुधारस आलय।।प्रभू जी.॥ प्रभु दर्श करो, स्पर्श करो, शुभ चरणधूलि भगवान की,
___मैं आज उतारूँ आरतिया।।१।।
तीन छत्रयुत श्रीजिनप्रतिमा, सिंहासन पर राजे। चौसठ चँवर ढुरावें सुरगण, और बजावें बाजे।।प्रभू जी.॥ प्रभुपद नम लो, मन में धर लो, ओंकार धुनी भगवान की,
__मैं आज उतारूँ आरतिया।।२।। निजानंद सुख के सागर में, मग्न प्रभो रहते हैं। वीतराग परमानंदामृत, स्वातम रस चखते हैं।।प्रभू जी.।। तुम भी चख लो, आतम रस को, यह वाणी है मुनिनाथ की,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।३॥ मंगल आरति करके प्रभुवर, यही याचना करते। अपने से गुण मुझको देकर, निज सम मुझको कर ले।।प्रभू जी.॥ श्री सिद्ध प्रभो, अरहंत प्रभो, “चंदनामती' शिवधाम की,
मैं आज उतारूँ आरतिया।।४।।
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महामानसी माता की आरती
आरती महामानसी की-२ श्री शांति प्रभु की, शासन देवी, गरुड़देव की यक्षिणी।।
आरती महामानसी की।।टेक.॥ सम्यग्दर्शन से सेवित, माँ तुमरी महिमा न्यारी, सुन्दर है रूप तुम्हारा, जिनभक्तों की रखवारी।।
आरती महामानसी की॥१॥ जो तेरी शरण में आता, मनवांछित फल पाता है, भय, रोग, शोक, दुःख, दारिद, पल भर में भग जाता है।।
आरती महामानसी की।।२।। धनअर्थी धन को पाते, सुतअर्थी सुत पा जाते, मंगलकरणी, दुःखहरिणी, को सच्चे मन से ध्याते।।
आरती महामानसी की॥३॥ माँ ‘इन्दु' शरण जो आए, मनवाञ्छा पूरी कर दो, तुम माता हम हैं बालक, इक दृष्टि दया की कर दो।।
आरती महामानसी की।।४।।
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मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र की आरती आरती मांगीतुंगी की,
सिद्धक्षेत्र से, सिद्धी को प्राप्त, सिद्धों की आरतिया।। टेक.।। निज आत्मसिद्धि करने को, श्री पद्म यहां आये थे। निन्यानवे कोटि मुनी भी, यहीं से शिवपद पाये थे।। आरती मांगीतुंगी की ॥१॥
मांगी एवं तुंगीगिरि, दोनों आदर्श खड़े हैं। वहां निर्मित जिनालयों में, जिनमंदिर कई दिखे हैं || आरती मांगीतुंगी की ॥२॥
पर्वत की तलहटी में जिन, मंदिर आदीश्वर का है। अतिशयकारी प्रतिमायुत, मंदिर पारस प्रभु का है। आरती मांगीतुंगी की ॥३॥
मुनिसुव्रत तीर्थंकर का, जिनमंदिर अति विस्तृत है। श्रेयांस सिन्धु सूरी की, यह अमिट हुई स्मृति है।। आरती मांगीतुंगी की ॥४॥
प्रभु मेरा यह घृत दीपक, अंतर की ज्योति जलावे। 'चंदनामती' सिद्धों की, रज कण मुझको मिल जावे।। आरती मांगीतुंगी की ॥५॥
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लक्ष्मी माता की आरती तर्ज—चाँद मेरे आ जा रे.........
आरती लक्ष्मी देवी की-२ धन धान्य की सम्पति देने वाली माँ की करो आरतिया।।
आरती.॥टेक.॥ जिनशासन में जिनवर की, ये भक्त कही जाती हैं। जो इनकी भक्ती करते, उनके घर में आती हैं।।
आरती लक्ष्मी देवी की ॥१॥ प्रभु समवसरण के आगे, आगे लक्ष्मी चलती हैं। जिससे प्रभु के वैभव में, कुछ कमी न रह सकती है।।
आरती लक्ष्मी देवी की ॥२॥ धन वैभव के इच्छुक जन, इनका आराधन करते। आर्थिक संकट नश जाता, इच्छित फल को वे लभते।।
आरती लक्ष्मी देवी की ॥३॥ हे लक्ष्मी माता मुझको भक्ती का ऐसा वर दो। लौकिक आध्यात्मिक लक्ष्मी, “चंदनामती” मन भर दो।।
आरती लक्ष्मी देवी की ॥४॥
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विद्यमान बीस तीर्थंकर की आरती
तर्ज—चांद मेरे आ जा रे..
आरती बीस जिनेश्वर की-२ विद्यमान श्री बीस तीर्थंकर, पांच विदेहों की|आरती.।।
जम्बूद्वीपादिक ढ़ाई, द्वीपों में पांच विदेहा। हैं चार-चार पांचों में, होते तीर्थंकर देवा।।
आरती बीस.................॥१॥ हैं आज भी उन क्षेत्रों में, विहरण करते तीर्थंकर। इसलिए कहे जाते हैं, ये विहरमाण तीर्थंकर।।
आरती बीस.................॥२॥ सीमन्धर आदिक उन ही, जिनवर की ये प्रतिमाएं। कमलों पर राज रही हैं, ये बीसों जिनप्रतिमाएं।।
आरती बीस................॥३॥ उनका यह पावन मंदिर, है प्रथम बार इस भू पर। गणिनी माँ ज्ञानमती की, प्रेरणा मिली है सुन्दर ।।
आरती बीस....................॥४॥ इनकी आरति कर मैं भी, तीर्थंकर बनना चाहूं। "चंदना' प्रभू भक्ती से, साक्षात दर्श कर पाऊं।।
आरती बीस................॥५॥
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शांतिसागर महाराज की आरती
जय जय गुरुवर, हे सूरीश्वर, श्री शांतिसिन्धु महाराज की, मैं आज उतारूं आरतिया।।टेक.।।
जग में महापुरूष युग का, परिवर्तन करने आते । अपनी त्याग तपस्या से वे, नवजीवन भर जाते ॥
गुरुजी नवजीवन...
जग धन्य हुआ, तव जन्म हुआ, मुनि परम्परा साकार की, मैं आज उतारूं आरतिया॥१॥
कलियुग में साक्षात् मोक्ष की, परम्परा नहिं मानी।
फिर भी शिव का मार्ग खुला है, जिस पर चलते ज्ञानी ।। गुरु जी जिस पर ..
मुनि पद पाया, पथ दिखलाया, चर्या पाली जिननाथ की, मैं आज उतारूं आरतिया॥२॥
मुनि देवेन्द्रकीर्ति गुरुवर से, दीक्षा तुमने पाई । भोजग्राम माँ सत्यवती की, कीर्तिप्रभा फैलाई || गुरु 'जी कीर्तिप्रभा..........
हे शांतिसिन्धु, हे विश्ववन्द्य, तेरी महिमा अपरम्पार थी मैं आज उतारूं आरतिया॥३॥
परमेष्ठी आचार्य प्रथम तुम, इस युग के कहलाए। सदियों सोई मानवता को, आप जगाने आए। गुरु जी आप...
तपमूर्ति बने, कटुकर्म हने, उत्तम समाधि भी प्राप्त की, मैं आज उतारूँ आरतिया॥४॥
श्री चारित्रचक्रवर्ती के, चरणों में वंदन है। अहिविष भी "चंदनामती", तव पास बना चंदन है ||
गुरु जी भव पार करो, कल्याण करो, मिल जावे बोधि समाधि भी, मैं आज उतारूं आरतिया॥५॥
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श्री गौतम स्वामी की मंगल आरती
ॐ जय गौतम स्वामी, स्वामी जय गणधर स्वामी।
द्वादशांग के कत्र्ता, मनपर्ययज्ञानी।। ॐ जय.।। तीर्थंकर महावीर के, शिष्य प्रमुख गणधर। स्वामी... इन्द्रभूति गौतम यह, नाम मिला सुखकर ॥ॐ जय.॥१।।
श्रावण कुष्णा एकम, गणधर पद पाया। स्वामी तीर्थंकर महावीर प्रभू सम, गुरु तुमने पाया।।ॐ जय.॥२॥ दिव्यध्वनि सुन प्रभु की, श्रुत रचना कर दी। स्वामी.... द्वादशांग से जग में, श्रुतसरिता भर दी।।ॐ जय.॥३।। अंग पूर्व श्रुत अंश आज भी, है उपलब्ध यहाँ। स्वामी... चतुरनुयोगों में निबद्ध वह, ज्ञान प्रसिद्ध कहा।।ॐ जय.।।४।।
गणधर गुरु की आरति, ऋद्धि-सिद्धि देवे। स्वामी..... पुनः “चंदनामती' ज्ञाननिधि, सुख संपति लेवें।। ॐ जय.॥५।।
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श्री सुदर्शन मेरू की आरती (1)
ॐ जय श्री मेरू जिनं, स्वामी जय श्री मेरू जिनं। सोलह चैत्यालय से, शोभित गिरि अनुपम।।ॐ जय.।।टेक.।।
भद्रशाल वन भू पर, वन उपवन सोहे।स्वामी..... चउ दिशि चार जिनालय, जिन प्रतिमा शोभे।।ॐ जय.॥१॥
पांच शतक योजन पर, नंदनवन आता।।स्वामी....... साढ़े बासठ सहस सुयोजन, सुमनस मन भाता।।ॐ जय.॥२॥
चंपक तरू आदिक से, मंडित चैत्यालयास्वामी...... कांचन मणिमय शुभ रत्नों से, सुंदर जिन आलय।।ॐ जय.॥३।।
सहस छत्तीस सुयोजन, पांडुक सौख्य भरे।स्वामी...... तीर्थंकर अभिषेक जहां पर, सुर नर द्वन्द करें।।ॐ जय.॥४॥
बिम्ब अचेतन होकर, चेतन फल देवें।स्वामी...... भाव “चंदना' जग में, खुशियां भर देवें।।ॐ जय.॥५॥
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श्री सुदर्शन मेरू की आरती (2)
मैं तो आरती उतारूं रे, मेरू सुदर्शन की,
जय जय जय मेरू शिखर, जय जय जय।।टेक.।। बड़े सुन्दर हैं जिनबिम्ब, मेरू के मंदिर में।मेरू के........... चारों दिशा में चार बिम्ब, मेरू के मंदिर में।।मेरू के....... भक्ति करो घूम-घूम, नृत्य करो झूम-झूम, जीवन सुधारो रे, हो हो प्यारा-प्यारा जीवन सुधारो रे।।मैं तो आरती.........॥१॥
ऐरावत पर चढ़कर, इन्द्र जाता है मेरू पे।।इसी ही मेरू पे।। तीर्थंकर का जन्माभिषेक, करता है मेरू पे।। इस ही मेरू पे।। चार वन हैं शोभ रहे, देव जहां खेल रहे, आभा निराली है, हो हो जिनकी आभा निराली है।।मैं तो आरती.........॥२॥
इस मेरू की महिमा अचिंत्य, ग्रंथों में कहते हैं।।ग्रंथों में....... करे ‘चन्दनामती' जो प्रभु भक्ति, सिद्धी को वरते हैं।। सिद्धी को..... स्वर्णाचल मेरू कहे, अकृत्रिम जिनबिम्ब रहे, रचना है प्यारी रे,
हो हो रचना है प्यारी रे।।मैं तो आरती........॥३॥
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श्री वीरसागर महाराज की आरती
ॐ जय जय गुरुदेवा, स्वामी जय जय गुरुदेवा । जिनवर के लघुनंदन-२, वीर सिन्धु देवा।।ॐ जय.।। श्रीचारित्रचक्रवर्ती के, प्रथम शिष्य माने। स्वामी......... पट्टाचार्य प्रथम बन-२, निज पर को जानें ॥ॐ जय ॥१॥ संघ चतुर्विध के अधिनायक, छत्तिस गुणधारी । स्वामी..... गुरूपूर्णिमा के दिन जन्मे-२, गुरुपद के धारी ॥ ॐ जय ॥२॥ आश्विन वदि मावस को, मरण समाधि हुआ स्वामी. जीवन मंदिर पर तब - २, स्वर्णिम कलश चढ़ा || ॐ जय ॥३॥
गुरु आरति से मेरा, आरत दूर भगे। स्वामी
तभी “चंदनामती” हृदय में, आतम ज्योति जगे ॥ ॐ जय ॥४॥
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समवसरण की आरती
जय जय जिनवर के, समवसरण की, मंगल दीप प्रजाल के, मैं आज उतारूं आरतिया ।।
समवसरण के बीच प्रभू जी, नासादृष्टि विराजे । गणधर मुनि नरपति से शोभित, बारह सभा सुराजे || प्रभू जी. ओंकार ध्वनि, सुन करके मुनि, रत रहें स्व पर कल्याण में, मैं आज उतारूं आरतिया॥१॥
चार दिशा के मानस्तम्भों को भी मेरा वन्दन । मिथ्यादृष्टी जिनको लखकर पाते सम्यग्दर्शन || प्रभू जी.. करके दर्शन, प्रभु का वंदन, सम्यक् का हुआ प्रचार है, मैं आज उतारूं आरतिया॥२॥
ध्वजाभूमि के अंदर देखो, ऊँचे ध्वज लहराएं। मालादिक चिन्हों से युत वे, जिनवर का यश गाएं। प्रभू जी.. शुभ कल्पवृक्ष, , सिद्धार्थवृक्ष, से समवसरण सुखकार है। मैं आज उतारूं आरतिया॥३॥
भवनभूमि के स्तूपों में, जिनवर बिम्ब विराजें द्वादशगण युत श्रीमण्डप में, सम्यग्दृष्टी राजें ।। प्रभू जी. अगणित वैभव, युत बाह्य विभव से, शोभ रहे भगवान हैं, मैं आज उतारूं आरतिया॥४॥
धर्मचक्रयुत गन्धकुटी पर, अधर प्रभू रहते हैं। उनकी आरति से ही “चंदनामती", दुःख हरते हैं | | प्रभू जी.
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वृषभेश्वर की, परमेश्वर की, गुण महिमा अपरम्पार है। मैं आज उतारूं आरतिया॥५॥
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सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र की आरती
मैं तो आरती उतारूँ रे, सम्मेदगिरिवर की,
जय जय सम्मेदशिखर, जय जय जय-२॥टेक.॥ कहा शाश्वत है यह गिरिराज, अनादी कालों से-अनादी कालों से। मुक्ति वरते यहीं से जिनराज, अनादी कालों से-अनादी कालों से।। पावन है, पूज्य है, गिरिवर की धूल है, सिर पे चढ़ाओ जी,
___ हो धूली सिर पे चढ़ाओ जी।।मैं तो......॥१॥ इस युग के जिनेश्वर बीस, मुक्त हुए यहीं से—मुक्त हुए यहीं से। बने सिद्धशिला के ईश, नमन करूँ रूचि से-नमन करूं रूचि से।। आरती का थाल ले, भक्ति सुमन माल ले, सबको बुलाऊँ मैं,
हो भक्तों की टोली बुलाऊँ मैं।।मैं तो......॥२॥ इक बार भी जो वन्दना, करे इस गिरिवर की—करे इस गिरिवर की। उनको मिलती न उस भव से, नरक अरु पशुगति भी-नरक अरु पशुगति भी।।
मैं भी इसी भाव से, शुभ गती की चाव से, भक्ती रचाऊँ रे, ____ हो गिरि पर चढ़ करके जाऊँ रे।।मैं तो.......॥३॥
सांवरिया का है चमत्कार, सम्मेदाचल में—सम्मेदाचल में। पारस पारस की ही है पुकार, आज भी मधुवन में-आज भी मधुवन में।। "चंदनामति” भक्ति में, आज भी शक्ति है, उसमें ही रम जाओ रे,
हो गिरि की आरति का फल पाओ रे।मैं तो......॥४॥
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सरस्वती माता की आरती
आरति करो रे, जिनवाणी माता सरस्वती की आरति करो रे। द्वादशांगमय श्रुतदेवी का श्रेष्ठ तिलक सम्यग्दर्शन। वस्त्र धारतीं चारित के चौदह पूरब के आभूषण।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, आकार सहित उन श्रुतदेवी की आरति करो रे।।१।।
इनके आराधन से ज्ञानावरण कर्म क्षय होता है। मति श्रुत ज्ञान प्राप्त होकर, अज्ञान स्वयं व्यय होता है।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, तीर्थंकर प्रभु की दिव्यध्वनि की आरति करो रे ॥२॥ मनपर्ययज्ञानी गणधर भी, श्रुत आराधन करते हैं। तभी घातिया कर्म नाशकर, केवलज्ञानी बनते हैं।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, कैवल्यमयी शीतलवाणी की आरति करो रे ॥३॥ मुनि के अंग पूर्व की महिमा, तो आगम में मिलती है। सम्यग्दृष्टि आर्यिका ग्यारह, अंगों को पढ़ सकती है।। __ आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, सौन्दर्यवती माँ सरस्वती की आरति करो रे।।४।। शुभ्र वस्त्र धारिणी, हंसवाहिनी, सरस्वती माता हैं। ज्ञान किरणयुत श्रुतमाता ‘चन्दनामती' सुखदाता है।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्रुतज्ञान समन्वित सरस्वती की आरति करो रे ॥५।।
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सहस्रकूट जिनबिम्ब की आरती
आरति करो रे, श्री सहस्रकूट के जिनबिम्बों की आरति करो रे। टेक.। इनकी आरति जनम जनम के, पाप तिमिर को हरती है। पुण्य सूर्य की दिव्यप्रभा से, अन्तर कलियाँ खिलती हैं।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री सहस्रकूट के जिनबिम्बों की आरति करो रे॥१॥ श्री जिनसेनसूरि ने प्रभु के, सहस्र नाम बतलाए हैं। मानो उनके ही प्रतीक में, ये जिनबिम्ब बनाए हैं।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री सहस्रकूट के जिनबिम्बों की आरति करो रे।।२।। एक हजार आठ खड्गासन, प्रतिमा हैं इसमें रहती। जिनवर के इक सहस आठ नामों को जो प्रगटित करतीं।।
___ आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री सहस्रकूट के जिनबिम्बों की आरति करो रे।।३।। एक हजार आठ लक्षणयुत, काय मुझे भी मिल जावे। इनके वंदन से मुझको, “चंदना'' यही फल मिल जावे।।
आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री सहस्रकूट के जिनबिम्बों की आरति करो रे।।४।।
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सिद्धायिनी माता की आरती (इसमें किसी भी देवी का नाम लेकर उनकी आरती कर सकते हैं) जय जय हे सिद्धायिनि मात, तेरे चरण नमाते माथ
तेरी आरति से मिटता है जग संताप ॥ तेरे भक्त खड़े तेरे द्वार, बिगड़े सभी बनातीं काज तेरी आरति से मिटता है जग संताप ॥टेक.॥
महावीर प्रभु की तुम हो शासन देवी। भक्तों की पीड़ा तुम तो क्षण भर में हरतीं। हे जिनशासन रक्षाकत्री, तुम त्रैलोक्यपूज्य हो मात। तेरी आरति से मिटता है जग संताप ॥१॥
मातंग यक्ष की प्रियकारिणी हो। वंचन सी काया तेरी सुखकारिणी हो।। भक्ति भाव से आए द्वार. मिल जाएगी शांति अपार।
तेरी आरति से मिटता है जग संताप ॥२॥ भूत, प्रेत आदिक बाधा क्षण भर में हरतीं। पुत्र, पौत्र, धन धान्यादिक से झोली भरतीं ।। तेरी सुन्दर छवि है मात, मैय्या तेरा दिव्य प्रताप। तेरी आरति से मिटता है जग संताप ॥३।।
हे सच्ची माता सच्चा मारग दिखा दे।
जग भर के प्राणी को तु सुखमय बना दे।। सबको मिल जाए नवराह, मैय्या ऐसी ज्योति जगाए। तेरी आरति से मिटता है जग संताप ॥४॥
वीरा के भक्तों पे जब संकट आवे।
झट आके माता मेरी उसको बचावे।। ‘इन्दू' करती तव गुणगान, मैय्या तू है बड़ी महान।
तेरी आरति से मिटता है जग संताप ॥५।।
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________________ ह्रीं प्रतिमा की आरती हीं को मेरा नमस्कार है, चौबिस जिनवर से जो साकार है।हो ओ..... आरति करूँ मैं बारम्बार है, चौबिस जिनवर को नमस्कार है।।टेक.।। पद्मप्रभ वासुपूज्य राजते, कला में दोनों ही विराजते।। लाल वरण शुभकार है, दोनों प्रभू को नमस्कार है।हीं.॥१॥ पारस सुपारस हरित वर्ण के, सर्प व स्वस्तिक जिनके चिन्ह हैं। इनसे सुशोभित ईकार है, जिनवर युगल को नमस्कार है।।हीं.॥२॥ चन्द्रप्रभ पुष्पदन्त नाम है, चन्द्रमा में विराजमान हैं। श्वेत धवल आकार है, जिनवर की आरति सुखकार है।ही.।।३।। मुनिसुव्रत नेमीप्रभु श्याम हैं, जिनका बिन्दु में स्थान है। दीपक ले आए प्रभु के द्वार हैं, आरति उतारूं बारम्बार है।ह्रीं.।।४।। ऋषभाजित संभव अभिनंदनं, सुमति शीतल श्रेयो जिनवरम्। विमल अनंत धर्म सार हैं, शांति, कुंथु ,अर करते पार हैं।ह्रीं.॥५।। मल्लिप्रभु नमिनाथ राजते, सबके ही संग में विराजते। वीरा की महिमा अपरम्पार है, आरति उतारूं बारम्बार है।ह्रीं.॥६।। सोलह तीर्थंकर ह्रीं में शोभते, केशरिया वर्ण से सुशोभते। स्वर्ण छवि सुखकार है, आरति उतारूं बारम्बार है।।ह्रीं.॥७॥ “चंदनामती' करे वंदना, ध्यान करो तो दुःख रंच ना। पंचवर्ण सुखकार है, आरति से होता बेड़ा पार है।।हीं.॥८॥ 165