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________________ कुण्डलपुर तीर्थ की आरती त्रिशला के ललना महावीर की, जन्मभूमि अति न्यारी है। आरति कर लो कुण्डलपुर की, तीरथ अर्चन सुखकारी है।।टेक.।। है प्रांत बिहार में कुण्डलपुर, जहाँ वीर प्रभू ने जन्म लिया। राजा सिद्धार्थ और त्रिशला, माता का आंगन धन्य किया। उस नंद्यावर्त महल की सुन्दरता ग्रन्थों में भारी है।आरति....॥१।। पलने में झुलते वीर दर्श से, मुनि की शंका दूर हुई। शैशव में संगम सुर ने परीक्षा, ली प्रभु वीर की विजय हुई।। सन्मति एवं महावीर नाम, तब से ही पड़ा मनहारी है।।आरति....॥२।। हुए तीन कल्याणक इस भू पर, जृम्भिका के तट पर ज्ञान हुआ। प्रभु मोक्ष गए पावापुरि से, इन्द्रों ने दीपावली किया। उन पाँच नामधारी जिन की, महिमा जग भर में न्यारी है।।आरति....३।। __ कुछ कालदोषवश जन्मभूमि का, रूप पुराना नष्ट हुआ। पर छब्बिस सौंवे जन्मोत्सव में, ज्ञानमती स्वर गूंज उठा।। इतिहास पुनः साकार हुआ, उत्थान हुआ अतिभारी है।आरति....४॥ जिस नगरी की रज महावीर के, कल्याणक से पावन है। जहाँ इन्द्र-इन्द्राणी की भक्ती का, सदा महकता सावन है।। वहाँ तीर्थ विकास हुआ विस्तृत, तीरथ की छवि अति न्यारी है।।आरति....५।। प्रभुवर तेरी इस जन्मभूमि का, कण-कण पावन लगता है। है परिसर नंद्यावर्त महल, जो नंदनवन सम लगता है।। इस विकसित तीर्थ के हर जिनमंदिर, का दर्शन भवहारी है।।आरति....६।। जिनशासन के सूरज तीर्थंकर, महावीर को नमन करूं। उन तीर्थ प्रणेत्री माता को भी, भक्तिभाव से मैं वंदूं।। “चंदनामती' यह तीर्थ अर्चना, दे शिवतिय सुखकारी है।।आरति....७।। 83
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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