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काकन्दी तीर्थ की आरती पुष्पदंत जिन जन्मभूमि, काकन्दी तीरथ प्यारा, उतारें आरती-२॥ सुर नर वंदित तीर्थ हमारा, काकन्दी जी न्यारा, उतारे आरती।।टेक.॥
चौबीस तीर्थंकर में, पुष्पदंत स्वामी नवमें जिनवर हैं।।हो...... काकन्दी नगरी तब से, पावन बनी जो सुर नर वंदित है।हो.. इन्द्र, मनुज भी इस नगरी को, शत-शत शीश झुकाएँ, उतारें आरती।।१।।
जयरामा माता और सुग्रीव पितु का शासन था जहाँहो. जन्मे तो उस क्षण पूरा, स्वर्ग ही उतरकर आया था वहाँ।।हो..... चार-चार कल्याणक से पावन नगरी को ध्याएँ, उतारें आरती।।२।।
बीते करोड़ों वर्षों, फिर भी धरा वह पूजी जाती है।हो......
धूल भी पवित्र उसकी, मस्तक को पावन बनाती है।हो. जैनी संस्कृति की दिग्दर्शक, उस भूमी को ध्यावें, उतारें आरती।।३।।
रोमांच होता है जब, उस क्षण की बातें मन में सोच लो।हो..... वन्दन करो उस भू को, निज मन में इच्छा इक ही तुम धरो।।हो.... कब प्रभु जैसा पद हम पाएं, यही भावना भाएँ, उतारें आरती।।४।।
जो भव्य प्राणी ऐसी, पावन धरा को वंदन करते हैं।हो..... क्रम-क्रम से पावें शक्ती, मानव जनम भी सार्थक करते हैं।।हो.. आरति कर सब भव्य जीव, भव आरत से छुट जाएं, उतारे आरती।।५।। प्राचीन इस तीरथ को, विकसित किया है सबने मिल करके।हो.....
गणिनीप्रमुख श्री माता, ज्ञानमती जी से शिक्षा ले करके।।हो...... तभी “चंदनामती” तीर्थ ने, नव स्वरूप है पाया, उतारें आरती।।६।।
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