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कौशाम्बी तीर्थ की आरती कौशाम्बी तीरथ की, हम आरति करते हैं-२
पद्मप्रभू की जन्मभूमि की, आरति करते हैं। तीरथ की आरति करके, सब आरत टलते हैं।।कौशाम्बी.।।टेक.।।
नृप धरणराज पितु तेरे-हाँ तेरे,अरु मात सुसीमा की कुक्षि से जन्मे। इक्ष्वाकुवंश के भास्कर-हाँ भास्कर,पद्मा के आलय, वन्दन तव पदयुग में।।
लाल कमल सम देहकान्ति, धारक को नमते हैं, तीरथ की आरति करके, सब आरत टलते हैं।।कौशाम्बी.॥१॥ शुभ माघ वदी छठ तिथि में-हाँ तिथि में,गर्भागम मंगल प्राप्त किया प्रभुवर ने। कार्तिक कृष्णा तेरस थी-तेरस थी,त्रैलोक्य विभाकर उदित हुआ भू पर ही।।
स्वर्ग से इन्द्र-इन्द्राणी आ जन्मोत्सव करते हैं, तीरथ की आरति करके, सब आरत टलते हैं।।कौशाम्बी.॥२॥ कैवल्यज्ञान को पाया-हाँ पाया,वह तीरथ आज प्रभाषगिरी कहलाया। फाल्गुन कृष्णा थी चतुर्थी-हाँ चतुर्थी, निर्वाणश्री पाया सम्मेदशिखर जी।।
___ नित्य निरंजन सिद्धप्रभू के पद में नमते हैं, तीरथ की आरति करके, सब आरत टलते हैं।।कौशाम्बी.॥३॥ यहाँ इक पौराणिक घटना-हाँ घटना,कौशाम्बी से है जुड़ी भक्ति की महिमा। महावीर प्रभू थे आए-हाँ आए,बेड़ी टूटी चंदना सती हरषाए।।
देव वहां पंचाश्चर्यों की वृष्टी करते हैं, तीरथ की आरति करके, सब आरत टलते हैं।।कौशाम्बी.॥४॥ तुम कल्पवृक्ष हो स्वामी-हाँ स्वामी,चिंतामणि सम फलदायक हो गुणनामी। हम आरति करने आए-हाँ आए, “चंदनामती” सब मनवांछित फल जाए।
भक्त यही भावना प्रभू के सम्मुख करते हैं, तीरथ की आरति करके, सब आरत टलते हैं। कौशाम्बी.॥५।।
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