SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नपुरी तीर्थ की आरती तीर्थंकर प्रभु श्री धर्मनाथ की, जन्मभूमि को नमन करें। आरति के माध्यम से आओ, अपने कर्मों का हनन करें।।टेक.।। पन्द्रहवें जिन श्री धर्मनाथ ने, रत्नपुरी में जन्म लिया। इन्द्रों ने स्वर्गों से आकर, उत्सव कर नगरी धन्य किया। प्रभु धर्मनाथ को वंदन कर, उन मात-पिता को नमन करें। आरति के माध्यम से.. ................॥१॥ चारों कल्याणक से पावन, है रत्नपुरी नगरी प्यारी। लौकान्तिक सुर भी जिसे नमें, गौरव गरिमा उसकी न्यारी।। तीरथ की कीरत गाकर हम, अपने जीवन को सफल करें। __ आरति के माध्यम से...................॥२॥ उस रत्नपुरी तीरथ से इक, इतिहास जुड़ा सुन लो भाई। देवों के द्वारा निर्मित मन्दिर, वहाँ मिला था सुखदायी।। सति मनोवती की दर्श प्रतिज्ञा, का अन्तर में मनन करें। आरति के माध्यम से...................॥३॥ है आज भी मंदिर वहाँ बना, प्रभु धर्मनाथ जी राजे हैं। मेला लगता तिथि माघ शुक्ल, तेरस को सब जन आते हैं। है नगरि अयोध्या निकट तीर्थ, हर कण को शत-शत नमन करें। ___ आरति के माध्यम से.................॥४॥ श्री धर्मनाथ की जन्मभूमि, शुभ रत्नपुरी तीरथ को नमन। निज भाव तीर्थ की प्राप्ति हेतु, जिननाथ का करना है अर्चन।। 'चंदनामती'' प्रभु आरति से, मानव जीवन को सफल करें। आरति के माध्यम से....................॥५॥ 90
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy