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राजगृही तीर्थ की आरती
राजगृही जी तीर्थक्षेत्र की, आरति को हम आए।
आरति के माध्यम से निज में, ज्ञान की ज्योति जलाएँ।। बोलो जय...॥ टेक ॥
इसी धरा पर तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत जी जन्मे, माता सोमा के महलों में, रत्न करोड़ों बरसे। हुए चार कल्याण जहाँ पर ..
हुए चार कल्याण जहाँ पर, उस तीरथ को ध्याएं | | आरति. ॥१॥
समवसरण महावीर प्रभू का, विपुलाचल पर आया, छ्यासठ दिन तक खिरी न वाणी, इन्द्र बहुत अकुलाया। इन्द्रभूति ने ज्यों दीक्षा ली..
इन्द्रभूति ने ज्यों दीक्षा ली, दिव्यध्वनि प्रगटा || आरति ॥२॥
राजा श्रेणिक और चेलना रानी हुईं विख्याता | रथ चलवाया जैनधर्म का फैली थी यशगाथा।। राजा श्रेणिक वीर प्रभू के
राजा श्रेणिक वीर प्रभू के, श्रोता प्रमुख कहाए | | आरति ॥३॥
समवसरण के दर्शन हेतू, चला भक्तिवश मेढ़कागज के पैरों तले दबा, नाना इतिहासों की जननी.
और देव बना था तत्क्षण||
नाना इतिहासों की जननी, भू को शीश झुकाएं। आरति.॥४॥
इस नगरी में पंच पहाड़ी, जन-जन का मन हरतीं। कई मुनी गए मोक्ष जहाँ से, उसकी गाथा कहती जैन संस्कृति की दिग्दर्शक....
जैनी संस्कृति की दिग्दर्शक, हैं इतिहास कथाएं | | आरति ।।५।।
नगरी के गिरिव्रज, वसुमति, कई नाम शास्त्र में माने। जुड़े कई इतिहास यहाँ से, जम्बूस्वामी हुए विरागी..
जम्बूस्वामी हुए विरागी, केवलिजिन को ध्याएं | | आरति ।।६।।
गणिनी माता ज्ञानमती के चरण पड़े तीरथ पर मुनिसुव्रत प्रभु जन्मभूमि की, कीरत फैली भूपर ॥ तीर्थ ‘“चंदनामती’” पूज्य ...
तीर्थ “चंदनामती” पूज्य, आत्मा को तीर्थ बनाए। आरति.।।७।।
तीर्थ पाव
जानें।
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