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________________ श्री चैत्य भक्ति विधान की मंगल आरती मै तो आरती उतारूं रे, श्री चैत्यभक्ति की, जय जय महावीर प्रभो जय जय जय - 2 || टेक.|| समसरण में, पधारे गौतम जब | "पधारे गौतम जब ... हुआ मान गलित उनका दीक्षा धारी तब | दीक्षा धारी तब ...... जयति भगवान कहा,मन में श्रद्धान महा, जय जय उचारी रे वीर प्रभु हाँ.... प्रभु की जय जय उचारी रे ||मैं तो आरती ...|| 1|| उसी स्तुति का नाम चैत्य भक्ति, पड़ गया उस क्षण से || पड़ गया . तीनो लोको के जिनवर की भक्ति, हो जाती है उससे || हो जाती है गौतम गणीश को, महावीर शिष्य को, वंदूँ मै बारम्बार, हां.....उनको वंदूँ मै बारम्बार ||मै तो आरती .... 12 || चैत्य भक्ति का सुन्दर विधान कर मन हरषा हैं | कर मन चंद्रामती शक्ति मिले, चैत्यों की भक्ति मिले, जीवन सुधारों रे, ..... प्यारा प्यारा जीवन सुधारों रे ||मै तो आरती..||3|| हां .... 103
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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