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________________ अहिच्छत्र पार्श्वनाथ तीर्थ की आरती आरति करो रे, प्रभु पार्श्वनाथ अहिच्छत्र तीर्थ की आरति करो रे।।टेक.।। जिनशासन के तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ प्रभु हैं। उनके पार्श्वनाथ बनने की कथा ग्रंथ में वर्णित है।। आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, इतिहास पुरुष श्री पार्श्वनाथ की आरति करो रे॥१॥ वाराणसि में गर्भ जन्म, दीक्षा कल्याणक प्राप्त किया। बालब्रह्मचारी बनकर, सांसारिक सुख का त्याग किया।। आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, श्री अश्वसेन वामानंदन की आरति करो रे।।२।। कमठाचर के उपसर्गों को, जहाँ प्रभू ने सहन किया। पद्मावति धरणेंद्र ने आ, उपसर्ग दूर कर नमन किया।। आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, उपसर्ग विजेता पार्श्वनाथ की आरति करो रे॥३॥ पार्श्वनाथ की प्रथम देशना, समवसरण में खिरी जहाँ। उसके ही प्रतिफल में समव-सरण की रचना बनी जहाँ।। आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, कैवल्यभूमि अहिच्छत्र तीर्थ की आरति करो रे॥४॥ जहाँ पात्रकेसरी मुनी से, संबंधित इतिहास बना । पद्मावति ने पार्श्व फणा पर, लिखकर दिया उन्हें सपना ।। आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, "चंदनामती" उस तीर्थभूमि की आरति करो रे ॥५।। 54
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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