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________________ नवग्रह शांति विधान की आरती आरती नवग्रह स्वामी की-२ ग्रह शांति हेतू, तीर्थंकरों की, सब मिल करो आरतिया।।टेक.॥ आत्मा के संग अनादी, से कर्मबंध माना है। उस कर्मबंध को तजकर, परमातम पद पाना है। आरती नवग्रह स्वामी की।।१॥ निज दोष शांत कर जिनवर, तीर्थंकर बन जाते हैं। तब ही परग्रह नाशन में, वे सक्षम कहलाते हैं। आरती नवग्रह स्वामी की।।२।। जो नवग्रह शांती पूजन, को भक्ति सहित करते हैं। उनके आर्थिक-शारीरिक, सब रोग स्वयं टरते हैं। __ आरती नवग्रह स्वामी की।।३।। कंचन का दीप जलाकर, हम आरति करने आए। "चंदनामती” मुझ मन में, कुछ ज्ञानज्योति जल जाए। आरती नवग्रह स्वामी की।॥४॥ 111
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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