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________________ श्री वर्द्धमान जी भगवान की आरती करौं आरती वर्द्धमानकी | पावापुर निरवान थान की टेक राग – बिना सब जगजन तारे | द्वेष बिना सब कर्म विदारे | शील-धुरंधर शिव-तिय भोगी | मनवच-कायन कहिये योगी | करौं0 रत्नत्रय निधि परिग्रह-हारी | ज्ञानसुधा भोजनव्रतधारी | करौं0 लोक अलोक व्यापै निजमांहीं | सुखमय इंद्रिय सुखदुख नाहीं | करौं0 पंचकल्याणकपूज्य विरागी | विमल दिगंबर अबर-त्यागी | करौं0 गुनमनि-भूषन भूषित स्वामी | जगत उदास जगंतर स्वामी | करौं0 कहै कहां लौ तुम सबजानौं | ‘द्यानत' की अभिलाषा प्रमानौ | करौं0 61
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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