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________________ श्री महावीर वंदना - जो मोह माया जो मोह माया मान मत्सर, मदन मर्दन वीर हैं। जो विपुल विघ्नों बीच में भी, ध्यान धारणा धीर हैं।। जो तरण-तारण, भव-निवारण, भव-जलधि के तीर हैं। वे वंदनीय जिनेश, तीर्थंकर स्वयं महावीर हैं। जो राग-द्वेष विकार वर्जित, लीन आतम ध्यान में। जिनके विराट विशाल निर्मल, अचल केवल ज्ञान में। युगपद विशद सकलार्थ झलकें, ध्वनित हों व्याख्यान में। वे वर्द्धमान महान जिन, विचरें हमारे ध्यान में॥ जिनका परम पावन चरित, जलनिधि समान अपार है। जिनके गणों के कथन में, गणधर न पावै पार है। बस वीतरागी-विज्ञान ही, जिनके कथन का सार है। उन सर्वदर्शी सन्मति को, वंदना शत बार है।। जिनके विमल उपदेश में, सबके उदय की बात है। समभाव समताभाव जिनका, जगत में विख्यात है।। जिसने बताया जगत को, प्रत्येक कण स्वाधीन है। कर्ता न धर्ता कोई है, अणु-अणु स्वयं में लीन है।। आतम बने परमात्मा, हो शांति सारे देश में। है देशना-सर्वोदयी, महावीर के संदेश में। 62
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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