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पंच परमेष्ठी विधान की आरती
ॐ जय पंच परम देवा, स्वामी जय पंच परम देवा। दुखहारी सुखकारी, जय जय जय देवा।।ॐ जय.।।टेक.।।
घाती कर्म विनाशा, केवल रवि प्रगटा।।स्वामी.॥ दर्श ज्ञान सुख वीरज, अनुपम शांति छटा।।ॐ जय.।। अष्ट कर्म रिपु क्षय कर, सिद्ध प्रसिद्ध हुए।स्वामी.।।
लोक शिखर पर राजे, नंतानंत रहे।।ॐ जय.।। पंचाचार सहित जो, गणनायक होते ॥स्वामी.॥ सूरि स्वात्म आराधक, सुखदायक होते ।।ॐ जय.। गुण पच्चीस सुशोभे, अतिशय गुणधारी ॥स्वामी.।। शिष्य पठन पाठनरत, जिनमहिमा न्यारी।।ॐ जय.॥ राज्यविभव सुख संपति, छोड़ विराग लिया।।स्वामी.।। सर्वसाधु परमेष्ठी, नरभव सफल किया।।ॐ जय.॥
पंच परम पद स्थित, परमेष्ठी होवें।।स्वामी.।। करे ‘चन्दनामती' आश यह, भव भ्रम मम खोवे।।ॐ जय.।।
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