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चम्पापुर तीर्थ की आरती
तीर्थ की आरति करते हैं-२ वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।टेक.।।
प्राचीन संस्कृति की ये, दिग्दर्शक मानी जाती। हुआ धर्मतीर्थ का वर्तन, शास्त्रों में गाथा आती ॥
धरा वह पावन नमते हैं-२ वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।१।। वसुपूज्य वहां के राजा, उनकी थीं जयावती रानी। उनकी पावन कुक्षी से, जन्मे थे अन्तर्यामी ।।
जन्म की वह तिथि भजते हैं-२ वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।२।। बचपन से यौवन काया, प्रभु वासुपूज्य ने पाया। पर नहीं पंवैसे विषयों में, अरु बालयती पद पाया।।
दीक्षा की वह तिथि नमते हैं-२ वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।३।।
चम्पापुर के ही निकट में, मंदारगिरी पर्वत है। दीक्षा व ज्ञान से पावन, निर्वाणक्षेत्र भी वह है।।
सिद्धभमी को भजते हैं-२ वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।।४।।
हैं वर्तमान में दोनों प्रभु वासुपूज्य के तीरथ। हर भव्यात्मा को दर्शन, से प्रकटाते मुक्तीपथ।।
मुक्ति हेतू हम यजते हैं-२ वासुपूज्य की जन्मभूमि, चम्पापुर को जजते हैं।॥५॥
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