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________________ जृंभिका तीर्थ की आरती आरति करो रे, तीर्थ की सब मिल करके, आरति करो रे । आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, भिका तीर्थ की सब मिल करके, आरति करो रे॥ टेक ॥ कुण्डलपुर के वीर प्रभू ने, केवलज्ञान जहाँ पाया, प्रथम रचा था समवसरण, तब इन्द्र बहुत ही हरषाया। आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, कैवल्यभूमि की सब मिल करके, आरति करो रे॥१॥ भव्यात्माजन प्रभु दर्शन कर, सम्यग्दर्शन को पाते, दिव्यध्वनी क्यों नहीं खिरी, यह कोई समझ नहीं पाते। आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, अतिशय ज्ञानी महावीर प्रभू की, आरति करो रे॥२॥ श्रीविहार होते-होते, छ्यासठ दिन ऐसे निकल गए, राजगृही विपुलाचल गिरि पर, इन्द्रभूति थे पहुँच गए। आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, उस प्रथम देशनास्थल की सब, आरति करो रे || ३ || जिस धरती पर वीर प्रभू को, केवलज्ञान प्रकाश मिला, मिली प्रेरणा ज्ञानमती जी की, जीर्णोद्धार विकास हुआ। आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, उस परम पूज्य वंदित स्थल की, आरति करो रे ॥४॥ जिन संस्कृति के उद्गम स्थल, यह सब तीर्थ कहे जाते, इनके अर्चन - वंदन से, "चन्दनामती” भवि सुख पाते। आरति करो रे, आरति करो रे, आरति करो रे, आतम निधि की अभिलाषा लेकर, आरति करो रे ॥५॥ 87
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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