________________ ह्रीं प्रतिमा की आरती हीं को मेरा नमस्कार है, चौबिस जिनवर से जो साकार है।हो ओ..... आरति करूँ मैं बारम्बार है, चौबिस जिनवर को नमस्कार है।।टेक.।। पद्मप्रभ वासुपूज्य राजते, कला में दोनों ही विराजते।। लाल वरण शुभकार है, दोनों प्रभू को नमस्कार है।हीं.॥१॥ पारस सुपारस हरित वर्ण के, सर्प व स्वस्तिक जिनके चिन्ह हैं। इनसे सुशोभित ईकार है, जिनवर युगल को नमस्कार है।।हीं.॥२॥ चन्द्रप्रभ पुष्पदन्त नाम है, चन्द्रमा में विराजमान हैं। श्वेत धवल आकार है, जिनवर की आरति सुखकार है।ही.।।३।। मुनिसुव्रत नेमीप्रभु श्याम हैं, जिनका बिन्दु में स्थान है। दीपक ले आए प्रभु के द्वार हैं, आरति उतारूं बारम्बार है।ह्रीं.।।४।। ऋषभाजित संभव अभिनंदनं, सुमति शीतल श्रेयो जिनवरम्। विमल अनंत धर्म सार हैं, शांति, कुंथु ,अर करते पार हैं।ह्रीं.॥५।। मल्लिप्रभु नमिनाथ राजते, सबके ही संग में विराजते। वीरा की महिमा अपरम्पार है, आरति उतारूं बारम्बार है।ह्रीं.॥६।। सोलह तीर्थंकर ह्रीं में शोभते, केशरिया वर्ण से सुशोभते। स्वर्ण छवि सुखकार है, आरति उतारूं बारम्बार है।।ह्रीं.॥७॥ “चंदनामती' करे वंदना, ध्यान करो तो दुःख रंच ना। पंचवर्ण सुखकार है, आरति से होता बेड़ा पार है।।हीं.॥८॥ 165