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________________ सिध्दचक् विधान की आरती छम छम छम छम बाजे घुघरू। सिद्धचक्र पाठ की मैं आरती करूँ।।टेक.। आठ कर्म नाश करके आप सिद्ध बन गये। आठ गुण को प्राप्त करके आत्मा में रम गये।। __ इसीलिए उन गुणों की आरती करूँ। सिद्धचक्र पाठ की मैं आरती करूँ ॥१॥ मैनासुन्दरी ने सिद्धचक्र पाठ था किया। पति का कुष्ट रोग प्रभु की भक्ति से मिटा दिया। भक्ति से मैं भी तुम्हारी आरती करूँ। सिद्धचक्र पाठ की मैं आरती करूँ॥२॥ सिद्धप्रभु का संस्मरण भी कार्यसिद्धि को करे। सिद्धशिला छूके शब्द वर्गणाएँ आती हैं।। शब्द पुष्प गूंथ के मैं आरती करूँ। सिद्धचक्र पाठ की मैं आरती करूँ॥३॥ वर्तमान, भूत, भाविकाल सिद्ध अर्चना। सब अनंतानंत सिद्ध के गुणों की वंदना।। __ वंदना के गीत गाके आरती करूँ। सिद्धचक्र पाठ की मैं आरती करूँ ॥४॥ स्वर्ण थाल मे रतन के दीप मेरे जल रहे। "चंदनामती” हृदय के पाप मेरे गल रहे।। चित्त को लगाए ज्ञानभारती भरूँ। सिद्धचक्र पाठ की मैं आरती करूँ ॥५॥ 123
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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