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________________ श्री बाहुबली भगवान की आरति (2) जयति जय जय गोम्मटेश्वर, जयति जय बाहुबली। जयति जय भरताधिपति, विजयी अनुपम भुजबली श्री आदिनाथ युगादिब्रह्मात्रिजगपति विख्यात हैं। गुणमणि विभूषित आदिनाथ के भारत और बाहुबली ॥ जयति जय०० वृषभेश जब तप वन चले तब न्याय नीति कर गए। साकेतनगरीपति भरत,पोदनपुरी बाहुबली ॥ जयति जय०० षटखंड जीता भरत मन की नहीं आशा बुझी । निज चक्ररत्न चला दिया फिर भी विजयी बाहुबली ॥ जयति जय०० सब आखिर राज्यविभव तजा, कैलाश पर जा बसे । इक वर्षकाले योग तब, निश्चल हुए बाहुबली ॥ जयति जय०० तन से प्रभु निर्मम हुए वन जंतु क्रीडा कर रहे । सिद्धि रमावरने चले प्रभु वीर बन बाहुबलि ॥ जयति जय०० प्रभु बाहुबली की नग्न मुद्रासीख यह सिखला रही । सब त्याग करके माधुरी तुम भी बनो बाहुबली ॥ जयति जय०० 77
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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