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________________ श्रावस्ती तीर्थ की आरती तीरथ श्रावस्ती की आरति को दीप जला कर लाए, तीरथ श्रावस्ती। टेक ॥ श्री सम्भव जिन के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान चार कल्याण हुए। दृढ़राज पिता अरु मात सुषेणा, प्रभू जन्म से धन्य हुए। नगरी में हर्ष अपार हुआ..... नगरी में हर्ष अपार हुआ, घण्टे शहनाई बाज रहे। इक्ष्वाकु वंश के भास्कर को, पा जनता हर क्षण मुदित रहे । तीरथ श्रावस्ती. .11811 सुरपति की आज्ञा से धनपति ने, रतन जहाँ बरसाए थे। दीक्षा ली थी जब जिनवर ने, तब लौकान्तिक सुर आए थे। कह सिद्ध नम : दीक्षा ले ली... कह सिद्ध नम : दीक्षा ले ली, सुर नर जयकार लगाते हैं। सोलह सौ हाथ तनू प्रभु का, अरु स्वर्ण वर्ण मन भाते हैं। तीरथ श्रावस्ती. .........IIRII थी कार्तिक कृष्ण चतुर्थी जब, प्रभुवर को केवलज्ञान हुआ। शुभ समवसरण रच गया, सभी ने दिव्यध्वनि का पान किया ।। बारहों सभा में बैठ भव्य .......... बारहों सभा में बैठ भव्य, प्रभु दिव्यध्वनि सुन हरषाएँ। गणधर, मुनिगण आदिक संयुत, शुभ समवसरण को हम ध्याएं || तीरथ श्रावस्ती..........................॥३॥ थी चैत्र शुक्ल षष्ठी संभव जिन, सम्मेदाचल से मोक्ष गए। प्रभु का निर्वाणकल्याण मनाकर, हम उस तीरथ को प्रणमें|| तीरथ का कण-कण परम पूज्य .. तीरथ का कण-कण परम पूज्य, आगम में वर्णित गाथाएँ। शाश्वत निर्वाणभूमि पावन, उसकी रज को हम सिर नाएँ।। तीरथ श्रावस्ती. ........1181 94
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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