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________________ श्री अरहनाथ भगवान की आरती अरहनाथ तीर्थंकर प्रभु की, आरतिया मनहारी है, जिसने ध्याया सच्चे मन से, मिले ज्ञान उजियारी है ।।टेक.।। हस्तिनागपुर की पावन भू, जहाँ प्रभुवर ने जन्म लिया। पिता सुदर्शन मात मित्रसेना का जीवन धन्य किया।। सुर नर वन्दित उन प्रभुवर को, नित प्रति धोक हमारी है, जिसने ध्याया ..................॥१॥ तीर्थंकर, चक्री अरु कामदेव पदवी के धारी हो। स्वर्ण वर्ण आभायुत जिनवर, काश्यप कुल अवतारी हो।। मनभावन है रूप तिहारा, निरख-निरख बलिहारी है, जिसने ध्याया ....................॥२॥ फाल्गुन वदि तृतिया को गर्भकल्याणक सभी मनाते हैं। मगशिर सुदि चौदस की जन्मकल्याणक तिथि को ध्याते हैं।। मगशिर सित दशमी दीक्षा ली, मुनी श्रेष्ठ पदधारी हैं, जिसने ध्याया .......... ..........॥३॥ कार्तिक सुदि बारस में, केवलज्ञान उदित हो आया था। हस्तिनागपुर में ही इन्द्र ने, समवसरण रचवाया था।। स्वयं अरी कर्मों को घाता, अर्हत्पदवी प्यारी है, ॥४॥ जिसने ध्याया ............ मृत्युजयी बन, सिद्धपती बन, लोक शिखर पर जा तिष्ठे। गिरि सम्मेदशिखर है पावन, जहाँ से जिनवर मुक्त हुए।। जजे “चंदनामति'' प्रभु वर दो, मिले सिद्धगति न्यारी है, जिसने ध्याया ....................॥५।। 39
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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