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________________ श्री गौतमस्वामीजी की आरति (रागः- जय जय आरति आदि जिणंदा....) ___ जय जय आरति गौतमदेवा, सुरनर किन्नर करते सेवा... पहेली आरति विघ्न को चूरे, मनवांछित फल सघलो पूरे... दूसरी आरति मंगलकारी, विघ्न निवारी सुख दातारी... तीसरी आरति करता भावे, दुःख दोहग सवि दूर जावे... चोथी आरति महाप्रभारी, आशा पूरे देवो आवी... पांचमी आरति पांच प्रकारी, केवळज्ञान देवे जयकारी.... आत्मकमल में लबधिदाता, गौतम आरति करे सुखशाता... मंगल दीपक श्री गौतम गुरु समरीए, उठी उगमते सुर, लब्धिनो लीलो गुण नीलो, वेली सुख भरपूर ।।1।। गौतम गोत्रतणे घणी, रुप अतीव भंडार, अट्ठावीस लब्धिनो धणी, श्री गौतम गणधार ।2।। अमृतमय अंगुठडो, ठवीयो पात्र मोझार, खीर खांड घृत पूरियो, मुनिवर दोढ हजार ॥3॥ पहेलु मंगल श्री वीरनु, बीजुं गौतम स्वामी, त्रीजुं मंगल स्थूलभद्रनु, चो, धर्मनुं ध्यान ।।4।। प्रह उठी प्रणमुं सदा, जीहां जीहां जिनवर भाण, मानविजय उवज्झायनु, होजो कुशल कल्याण ।।5।। 73
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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