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पूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी की आरती
हे बालसती, माँ ज्ञानमती, हम आए तेरे द्वार पे
शुभ मंगल दीप प्रजाल लिया ।। टेक.।।
शरद पूर्णिमा दिन था सुन्दर, तुम धरती पर आईं। उन्नीस सौ चौंतिस में मोहिनि जी हरषाईं||माता
माता,
थे पिता धन्य, नगरी भी धन्य, मैना के इस अवतार पे, शुभ मंगल दीप प्रजाल लिया ॥१॥
बाल्यकाल से ही मैना के, मन वैराग्य समाया।
तोड़ जगत के बन्धन सारे, छोड़ी ममता माया ।। माता... गुरु संग मिला, अवलम्ब मिला, पग बढ़े मुक्ति के द्वार पे, शुभ मंगल दीप प्रजा लिया ॥२॥
प्रथम देशभूषण गुरुवर से, लिया क्षुल्लिका दीक्षा । वीरसागर आचार्य से पाई, आत्मज्ञान की शिक्षा ।। माता.. बन वीरमती, से ज्ञानमती, उपकार किया संसार पे, शुभ मंगल दीप प्रजाल लिया ॥३॥
यथा नाम गुण भी हैं वैसे, तुम हो ज्ञान की दाता। तुम चरणों में आकर के हर, जनमानस हरषाता ॥ माता....... साहित्य सृजन, श्रुत में ही रमण, कर चलीं स्वात्म विश्राम पे, शुभ मंगल दीप प्रजाल लिया॥४॥ मंगल आरति करके माता, यही याचना करते । अपने से गुण मुझको देकर, ज्ञान की सरिता भर दे || माता ... भव पार करो, उद्धार करो, " चंदना ” यही जग सार है। शुभ मंगल दीप प्रजाल लिया ॥५॥
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