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श्री पार्श्वनाथ जी भगवान की आरती
ॐ जय पारस देवा स्वामी जय पारस देवा | सुर नर मुनिजन तुम चरणन की करते नित सेवा | ऊँ जय (0 पौष वदी ग्यारस काशी में आनन्द अति भारी, स्वामी आनन्द (0
अश्वसेन वामा माता उर लीनों अवतारी || ॐ जय () श्याम वरण नवहस्त काय पग उरग लखन सोहैं, स्वामी उरग (0 सुरकृत अति अनुपम पा भूषण सबका मन मोहैं || ॐ जय जलते देख नाग-नागिन को मंत्र नवकार दिया, स्वामी मंत्र (0
हरा कमठ का मान ज्ञान का भानु प्रकाश किया | ॐ जय मात पिता तुम स्वामी मेरे, आस करूं किसकी, स्वामी आस तुम बिन दाता और न कोई शरण गहूं जिसकी || ऊँ जय (0 तुम परमातम तुम अध्यातम तुम अन्तर्यामी, स्वामी तुम(0) स्वर्ग मोक्ष के दाता तुम हो त्रिभुवन के स्वामी || ॐ जय दीनबन्धु दुःख हरण जिनेश्वर, तुमही हो मेरे, स्वामी तुम (0 दो शिवधाम को वास दास, हम द्वार खड़े तेरे || ॐ जय विपद विकार मिटाओ मन का, अर्ज सुनो दाता, स्वामी अर्ज सुनो दाता | सेवक द्वैर जोड़ प्रभु के चरणो चित लाता || ॐ जय
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