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________________ शांतिसागर महाराज की आरती जय जय गुरुवर, हे सूरीश्वर, श्री शांतिसिन्धु महाराज की, मैं आज उतारूं आरतिया।।टेक.।। जग में महापुरूष युग का, परिवर्तन करने आते । अपनी त्याग तपस्या से वे, नवजीवन भर जाते ॥ गुरुजी नवजीवन... जग धन्य हुआ, तव जन्म हुआ, मुनि परम्परा साकार की, मैं आज उतारूं आरतिया॥१॥ कलियुग में साक्षात् मोक्ष की, परम्परा नहिं मानी। फिर भी शिव का मार्ग खुला है, जिस पर चलते ज्ञानी ।। गुरु जी जिस पर .. मुनि पद पाया, पथ दिखलाया, चर्या पाली जिननाथ की, मैं आज उतारूं आरतिया॥२॥ मुनि देवेन्द्रकीर्ति गुरुवर से, दीक्षा तुमने पाई । भोजग्राम माँ सत्यवती की, कीर्तिप्रभा फैलाई || गुरु 'जी कीर्तिप्रभा.......... हे शांतिसिन्धु, हे विश्ववन्द्य, तेरी महिमा अपरम्पार थी मैं आज उतारूं आरतिया॥३॥ परमेष्ठी आचार्य प्रथम तुम, इस युग के कहलाए। सदियों सोई मानवता को, आप जगाने आए। गुरु जी आप... तपमूर्ति बने, कटुकर्म हने, उत्तम समाधि भी प्राप्त की, मैं आज उतारूँ आरतिया॥४॥ श्री चारित्रचक्रवर्ती के, चरणों में वंदन है। अहिविष भी "चंदनामती", तव पास बना चंदन है || गुरु जी भव पार करो, कल्याण करो, मिल जावे बोधि समाधि भी, मैं आज उतारूं आरतिया॥५॥ 155
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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