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श्री ज्ञानमती माताजी की आरती (4)
आरति करने आये हम सब द्वार तिहारे ॥हाँ.........॥ भावों का यह दीप है जिसमें चमकें चाँद सितारे।। आरति.।।टेक.।।
विषय भोग तज करके तुमने, गृहबन्धन को तोड़ा। प्रभु वाणी भज करके तुमने, जग से मुख को मोड़ा।। तभी तुम्हारे दर्शन करके, भक्त विघन सब टारें।।
आरति..........................॥१॥ धन्य हुईं वे मोहिनि माता, जिनने तुमको जन्म दिया। स्वयं आर्यिका रत्नमती बन, नारी जीवन धन्य किया।। छोटेलाल पिता भी तुमसे, थे विराग में हारे।
आरति.. ......................॥२॥ श्री आचार्य वीरसागर से, ज्ञानमती संज्ञा पाई। गणिनी पद को प्राप्त किया, तुम युगप्रवर्तिका कहलाई।। हे चारित्रचन्द्रिका माता! हम हैं भक्त तुम्हारे।
आरति..........................॥३॥ तुमने अपने ज्ञान का उपवन, रत्नत्रय से संवारा है। तभी सैकड़ों ग्रन्थों की, रचना तुमने कर डाला है। इस युग के विद्वान भी तेरे, गुण को सतत उचारें।
___ आरति..........................॥४॥ शारद माता की आरति, अज्ञान तिमिर को हरती है। जीवन पथ को ज्ञान रश्मियों, से आलोकित करती है।। यही "चंदना' भाव संजोकर, आरति सभी उतारें। आरति..
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