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________________ तीर्थंकर पंचकल्याणक भूमि की आरती तर्ज—पंखिड़ा..... आरती करूँ मैं सभी तीर्थधाम की। जिनवरों के पंचकल्याण धाम की।।आरती........।।टेक.। प्रभु की जन्मभूमि वंदना से जन्म सफल हो। प्रभु की त्यागभूमि अर्चना से धन्य जनम हो।। झूम झूम भक्ति करूँ, नृत्य करूँ मैं। आरती प्रभू की करके पुण्य भरूँ मैं।आरती......॥१॥ घाति कर्मनाश प्रभु को दिव्यज्ञान हो जहाँ। धनकुबेर नभ में समवसरण को रचें वहाँ।। झूम झूम भक्ति करूँ नृत्य करूँ मैं। आरती प्रभू की करके पुण्य भरूँ मैं।आरती......॥२॥ अष्टकर्म नाश प्रभु को मोक्ष प्राप्त हो जहाँ। सिद्धक्षेत्र उनको जैन ग्रंथ शास्त्रों में कहा।। झूम झूम भक्ति करूँ, नृत्य करूँ मैं। आरती प्रभू की करके पुण्य भरूँ मैं।आरती......॥३॥ मांगीतुंगी आदि और कई सिद्धक्षेत्र हैं। अन्य अतिशयों से पूर्ण कहे अतिशयक्षेत्र हैं।। झूम झूम भक्ति करूँ, नृत्य करूँ मैं। आरती प्रभू की करके पुण्य भरूँ मैं।।आरती......॥४॥ घृत का दीप लेके तीर्थक्षेत्र आरती करूँ। "चन्दनामति” हृदय में ज्ञानभारती भरूँ।। झूम झूम भक्ति करूँ, नृत्य करूँ मैं। आरती प्रभू की करके पुण्य भरूँ मैं।आरती......॥५॥ 138
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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