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________________ श्री नमिनाथ भगवान की आरती श्री नमिनाथ जिनेश्वर प्रभु की, आरति है सुखकारी। भव दुःख हरती, सब सुख भरती, सदा सौख्य करतारी।। प्रभू की जय .............॥टेक.॥ मथिला नगरी धन्य हो गई, तुम सम सूर्य को पाके, मात वप्पिला, विजय पिता, जन्मोत्सव खूब मनाते, इन्द्र जन्मकल्याण मनाने, स्वर्ग से आते भारी। भव दुख..........॥प्रभू...........॥१॥ शुभ आषाढ़ वदी दशमी, सब परिग्रह प्रभु ने त्यागा, नमः सिद्ध कह दीक्षा धारी, आत्म ध्यान मन लागा, ऐसे पूर्ण परिग्रह त्यागी, मुनि पद धोक हमारी। भव दुख.........||प्रभू..........॥२॥ मगशिर सुदि ग्यारस प्रभु के, केवलरवि प्रगट हुआ था, समवसरण शुभ रचा सभी, दिव्यध्वनि पान किया था, हृदय सरोज खिले भक्तों के, मिली ज्ञान उजियारी। भव दुख..........॥प्रभू...........॥३॥ तिथि वैशाख वदी चौदस, निर्वाण पधारे स्वामी, श्री सम्मेदशिखर गिरि है, निर्वाणभूमि कल्याणी, उस पावन पवित्र तीरथ का, कण-कण है सुखकारी। __भव दुख..........॥प्रभू...........॥४॥ हे नमिनाथ जिनेश्वर तव, चरणाम्बुज में जो आते, श्रद्धायुत हों ध्यान धरें, मनवांछित पदवी पाते, आश एक “चंदनामती' शिवपद पाऊँ अविकारी। भव दुख.........||प्रभू...........॥५॥ 43
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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