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________________ दशधर्म की आरती दशधर्मों की आरति करके, होगा बेड़ा पार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।टेक.॥ आत्मा को दुख से निकालकर, जो सुख में पहुँचाता। हर प्राणी के लिए वही तो, सच्चा धर्म कहाता। उसी धर्म को धारण करके, होगा बेड़ा पार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।१।। उत्तम क्षमा मार्दव आर्जव, धर्म कहे आत्मा के। इनसे मैत्री विनय सरलता, प्रगटित हों आत्मा में।। उत्तम सत्य व शौच धर्म से, होगा बेड़ा पार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।२।। उत्तम संयम तप व त्याग, मुक्ती का मार्ग बताते। इनको पालन करके मुनिजन, मुक्तिपथिक कहलाते। हम भी इनका पालन करके, लहें मुक्ति का द्वार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।३।। उत्तम आकिञ्चन्य धर्म, परिग्रह का त्याग कराता। श्रावक को परिग्रह प्रमाण का, सरल मार्ग समझाता।। उत्तम ब्रह्मचर्य तिहुँ जग में, है सब धर्म का सार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।४।। पर्व अनादी दशलक्षण में, दश धर्मों को वन्दन। इनकी आरति से हि “चन्दनामती' को भव बंधन।। इसीलिए दश धर्म हृदय में, लिए हैं हमने धार। धर्म के बिना इस जग में, कौन करेगा उद्धार।।५।। 140
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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