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श्री महावीर स्वामी भगवान की आरती (5)
जय वीर प्रभो, महावीर प्रभो, की मंगल दीप प्रजाल के मैं आज उतारूं आरतिया।।टेक.।।
सुदी छट्ठ आषाढ़ प्रभूजी, त्रिशला के उर आए। पन्द्रह महिने तक कुबेर ने, बहुत रत्न बरसाये।।प्रभू जी.।। कुण्डलपुर की, जनता हरषी, प्रभु गर्भागम कल्याण पे, मैं आज उतारूं आरतिया॥१॥
धन्य हुई कुण्डलपुर नगरी, जन्म जहां प्रभु लीना । चैत्र सुदी तेरस के दिन, वहां इन्द्र महोत्सव कीना । । प्रभू जी . ।। काश्यप कुल के, भूषण तुम थे, बस एकमात्र अवतार थे, मैं आज उतारूं आरतिया॥२॥
यौवन में दीक्षा धारण कर, राजपाट सब त्यागा। मगशिर असित मनोहर दशमी, मोह अंधेरा भागा। प्रभू जी ॥ बन बालयती, त्रैलोक्यपती, चल दिए मुक्ति के द्वार पे, मैं आज उतारूं आरतिया॥ ३ ॥
शुक्ल दशमि वैशाख में तुमको, केवलज्ञान हुआ था। गौतम गणधर ने आ तुमको, गुरु स्वीकार किया था। प्रभू जी ॥ तव दिव्यध्वनी, सब जग ने सुनी, तुमको माना भगवान है, मैं आज उतारूं आरतिया॥४॥
कार्तिक
पावापुरि सरवर में तुमने, योग निरोध किया था। कृष्ण अमावस के दिन, मोक्ष प्रवेश किया था। प्रभू जी । निर्वाण हुआ, कल्याण हुआ, दीपोत्सव हुआ संसार में, मैं आज उतारूं आरतिया॥५॥
वर्धमान सन्मति अतिवीरा, मुझको ऐसा वर 1 कहे 'चंदनामती' हृदय में, ज्ञान की ज्योति भर दो। प्रभू जी ।। अतिशयकारी, मंगलकारी, ये कल्पवृक्ष भगवान हैं, मैं आज उतारूं आरतिया॥६॥
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