Book Title: Yuktyanushasan
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 11
________________ ११ marrrrram प्राकथन mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm दया-दम-त्याग-समाधि-निष्ठं नयप्रमाणप्रकृताञ्जसार्थम् । अधृष्यमन्यैरखिलैः प्रवादै र्जिन त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥६॥ युक्त्यनुशासन जैसे जटिल और सारगर्भ महान् ग्रन्थका सुन्दरतम अनुवाद समन्तभद्र स्वामीके अनन्यनिष्ट भक्त साहित्य-तपस्वी प० जुगलकिशोरजी मुख्तारने जिस अकल्पनीय सरलतासे प्रस्तुत किया है वह न्याय-विद्याके अभ्यासियों के लिये आलोक देगा। सामान्य-विशेष युतसिद्धि-अयुतसिद्धि, क्षणभगवाद सन्तान आदि पारिभाषिक दर्शनशब्दोंका प्रामाणिकतासे भावार्थ "दिया है। आचार्य जुगलकिशोरजी मुख्तारकी यह एकान्त साहित्य-साधना आजके मोलतोलवाले युगको भी मॅहगी नही मालूम होगी, जब वह थोड़ा-सा भी अन्तर्मुख होकर इस तपस्वीकी निष्ठाका अनुबादकी पंक्ति-पक्तिपर दर्शन करेगा। वीरसेवामन्दिरकी ठोस साहित्य. सेवाएँ आज सीमित साधन होनेसे विज्ञापित नहीं हो रही है पर वे ध्रुवताराएँ हैं जो कभी अस्त नही होते और देश और कालकी परिधियों जिन्हें धूमिल नहीं कर सकती। जैन समाजने इस ज्ञानहोताकी परीक्षा ही परीक्षा ली । पर यह भी अधीर नही हुआ और आज भी वृद्धावस्थाकी अन्तिम डालपर बैठा हुआ भी नवकोंपलोंकी लालिमासे खिल रहा है और इसे आशा है कि -"कालो ह्ययं निरवधिः विपुला च पृथ्वी। हम इस ज्ञानयोगीकी साधनाके आगे सश्रद्ध नतमस्तक हैं और नम्र निवेदन करते हैं कि इनने जो आबदार ज्ञानमुक्ता चुन रखे हैं उनकी माला बनाकर रखदे, जिससे समन्तभद्रकी सर्वोदयी परम्परा फिर युगभाषाका नया रूप लेकर निखर पड़े। हिन्दू विश्वविद्यालय । काशी, ता० १-६-५१ । महेन्द्रकुमार (न्यायाचार्य)

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