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[ १६ ]
क्रम
विषय
७१. पुण्यको पाप जाने वही ज्ञानी है ७२. पुण्यकर्म सोनेकी बेड़ी है ७३. भाव नियंथ ही मोक्षमार्गी है ७४. देहमें भगवान होता हैं
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२६०
२.६३
२६६
७५. आप ही जिन हैं, यह अनुभव मोक्षका उपाय है २६५
२७१
२.७४
७६. आत्माके गुणोंकी भावना करे ७७. दोको छोड़कर दो गुण विचारे ७८. तीनको छोड़ तीन गुण बिचारे. ७९. चारको त्याग चार गुण सहित व्यावे
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८०. पांच के जोड़ोंस रहित व दश गुण सहित आत्माको ध्यावे २८२ ८१. आतारमण में तप त्यागादि सब कुछ है ८२. परभावोंका त्याग ही सन्यास है
२.८४
२८७५
२९.०
८३. त्नत्रय धर्म ही उत्तम तीर्थ है ८४. रत्नत्रयका स्वरूप....
२५३
२९५
२९८
८५. आत्मानुभव में सब गुण हैं ८६. एक आत्माका ही मनन कर ८७. सहज स्वरूपमें रमण कर ८८. सम्यग्दृष्टि सुमति पाता है ८९. सम्यग्दृष्टीका श्रेष्ठ कर्तव्य
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९०. सम्यक्ती ही पंडित व मुखिया हैं ९१. आत्मामें स्थिरता संवर व निर्जराका कारण है
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९२. आत्मरमी कर्मोंस नहीं बंधता...
९३. समसुखभोगी निर्वाणका पात्र है ९४. आत्माको पुरुषाकार भ्यावे
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