Book Title: Yogasara Tika Author(s): Yogindudev, Shitalprasad Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia View full book textPage 9
________________ पृष्ठ २५२ [१४] क्रम विषय ४७. बाहरी क्रियामें धर्म नहीं है .... ४८. आत्मस्थ होना धर्म है १११ ४५. आशा तृष्णा ही संसारभ्रमणका कारण हैं. ५५. आत्मप्रेमी ही निर्वाणका पात्र है, ५१. शरीरको नाटकघर जानो .... .... .. ५२. जगतकं धन्धों में उलझा प्राणी आत्माको नहीं पहचानता २८३ ५३. शास्त्रपाठ आत्मज्ञान विना निष्फल है ५४. इन्द्रिय व मनक निरोधमे सहज ही आत्मानुभव होता है २०९ ५५. पुद्गल ब जगतक व्यवहारस आत्माको भिन्न जाने ...... ५६. आत्मानुभत्री ही संसारगे मुक्त होता है ५७. आत्माके ज्ञानके लिये नौ दृष्टान्त हैं. ५८. देहादिरूप में नहीं है, अहो ज्ञान मोक्षका बांज हे .... ५५. अाकाशके समान होकर भी में चंतन हूं ६०. अपने भीतर ही मोक्षमार्ग है .... ६१. निमोही होकर अपने अमृतीक आत्माको देखो ६२, आत्मानुभवका फल .... ६३. परभावका त्याग संसारत्यागका कारण है ६४. त्यागी आत्मध्यांनी महात्मा ही धन्य है ६५. आस्मरमण सिद्धमुखका उपाय है २४१ ६६. तत्वज्ञानी विरले होते हैं। २४५ ६७. कुटुम्ब-मोह त्यागने योग्य है .... ६८. संसारमें कोई अपना नहीं है .... ६९. जीव सदा अकेला है १०. निर्मोही हो आत्माका ध्यान कर . ..... २५५ २५० २५३Page Navigation
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