Book Title: Vismi Sadini Viral Vibhuti Part 01
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Sahasavan Kalyanakbhumi Tirthoddhar Samiti Junagadh
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-અંતિમ આજ્ઞાપત્ર
श्रीशं स्वेश्वर पश्वनाथाय नमः | सकलागम-रहस्यदेदि- आचार्य विजय पानदरी घरेभ्यो नमः । आरी यानी बाद मारा समुदायाची व्यवस्था नीचे जा रहे, तेम हु इच्छं छ । 'इच्छु धुनो अर्थ आज्ञा करू छू, तेवो ज समजवानी छे । परन्तु कोई कटोकटी "ना प्रसफ मां अमुक नियम को भंग थह गयो होय, तो गुर्वाज्ञाग के दोष न लागे । जेमके - ग्लान वृद्धाविनी वाराफरती रोया करवाने आगल जनाववामां आवशे, तक कोई नियम जो अनिवार्य संयोगमा कई फेरफार थइ जाय, तो दोष व लागे । तेवा आशय थी आज्ञा वा बदले 'इच्णुं धुं ' शब्दको प्रयोग करेल घे, ते समजवु ।
भारी यानी बाद मारा समुदाय ना नायक तरीके आ.वि. राम चन्द्रसूरियों ने सौओ गभवा, अने नेमके नीचे मुजब व्यवस्था करवी !.. (5) समुदाय ला साधुओ जेबी जेबी टुकड़ी माँ रही आराधना करता होय, मी मंथली जबाबदारी ते ते टुकड़ी ना स्पर्धकपति नी राखती । जेमके - दीक्षा, बडी दीक्षा, योग, बिहार, जोमांसा, अभ्यास विगेरे कोने १ क्यारे? क्यों? 'धर्मय करायो विगेरे /
(३) उपस्थापना प्रव्रज्याना क्रम भी करवी अने अंकल दिवस माँ प्रब्रजित नी उपस्थापना अपवाद सिवाय वयक्रम थी करखी 1 पद-प्रदानभां पण योग्य आत्माओं वो बने त्यां सुधी क्रम जालवयो। (३) दरेक स्पर्धकपति में पोताना चोमासानी आज्ञा आ. यशोदेव सूरिजी वासो गावी ।
() आचार्य यशोदेव सूरिजी चोमासा नी आज्ञा आ. जम्बूसूतिजी पासे मं (४) आचार्य - जम्बूसूरिजी चोमासानी आज्ञा आ.रामचन्द्रसूरिजी पासे मंगावपी / (६) स्पर्धक पति ओ माँ परस्पर मतभेद पडे तो पं-भवट्टर विजकनी तथा पं.मी . विजयजी बने मलीने जे निर्णय आपे, ते करेके स्वीकारयो ।
(७) शासन ना तथा समुदायना महत्व ना प्रसङ्गने माँ रोचे जणाच्या मुजब ना स्थ विनों जी जनावेली समितिनी सम्पूर्ण सम्मानपूर्वक निर्णय तथा अमल करवी | तेमल शास्त्रीय प्रश्नो नां मुनि श्री जयघोष वि. वी पण सलाह लेवी | है) आचार्य जम्बूसूरिजी आ. यशदिवसूनिजी ६. कनक वि. (४) पं. कान्ति कि, (५) पं. भङ्गङ्करवि. (६) पै.ग्रामा चि. (७) पं. हेमन्त वि. () पं. मुक्ति वि., (ए) पं. हिमांशु वि. (१०, पं. भानु वि (3) पं-भाव तुङ्गविः । बति (८) दरेक मुनि से ग्रन्थ विमेरे छधावबाद होय, ते पोताला स्पर्धकली सम्मति पूर्वक छपावक ।
साधुओ संस्कृत के प्राकृत माँ बखान करे, ते वधु इच्छालीय थे।
पूण्ठयश्री परमगुरुहेवश्री खा. प्रेमसूरीमहाराण साहेबना परमविश्वासु नृपापात्र हता...
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लेख थिगेरे को समिति वा स्थविरोओ उत्सूत्र जो प्रतिकार करके । (2) लगभग दश वरस मी तो समिति ना स्थविरोओ भेमा मलवु अने विचारोंनी आपले करवी ।
(3) जघन्य थी पांच मुनिओ (शिष्य-प्रशिष्य) तो गय होय अने तेला बायक माँ बीजी योग्यता साथै वर्तमान में वर्तना आमयो में वांचन होद, नोज आचार्यचदनी आपकी । जघन्यथी नितीय चूर्णि सेवांचन होतुं जोहर। (१३) 30 चारित्र वि. विगेरे अयोग्य साधुओं ने आचार्यपद में देवं ।
आ.रामचन्द्रसूरिजी बाद तेमनी जबाबदारी आ. जम्बूसूरिजीने, आ. यशोदे तिमी बाद मनी जबाबदारी पं. कान्ति विजयजी ने, तथा पं- भानुविजयजी की जबाबदारी मुनिश्री जय घोष वि. ने सौंपवी ।
(द) बधा स्पर्धक निओ ओ परस्पर वात्सल्य भाव घी वर्तयुं । तेमज पं.भद्रडुरवि०, पं. मुक्ति वि., पं. भानुदि· विगेरे शक्तिशाली आत्माओं से तो परस्पर खूब वात्सल्यभाव हो रहे ।
(१५) अंक स्पर्धक पति का साथ बीजा स्पर्धक पनिनी मिश्रा माँ जया इच्छता होय, तो बीजा स्पर्धक पनि अ प्रथमस्पर्धक पनि नी राजा सिवाय स्वीकारणा नहीं । पोताना स्पर्धक पति ने पोताना कारणो जणाववा धनां रजा न आये तो आ० यशो देवसू रिजी ने पोताला कारजो जणांचवा अने तेमने कारणों' व्याजबी लागे, जो तेना स्पर्धकपति रजा अवश्य आपकी जोइए। (१६) ग्लाने वृद्धादिमुनिओनी यथायोग्य सेवा नो दरेक स्पर्धक पनि अ ख्याल राज्यको निमज नीचे लखेल स्पर्धक पनि ओ गे बाद करती बीजे क्या य ज्यां ग्लान वृद्धा दिसाधुओ नी सेवा करनी
महार
(९) आ. जम्बूसूरिजी आव्यशदिवसूरिजी (3) 4. कान्ति वि. पं. भद्रङ्कर वि. 14. भृगाङ्कवि. (घ) पं. हेमावि (७) पं. मुक्ति वि. १. भानुवि. (b) कोई पण साधुओ पोतानी आरती उतरावदी नहि, गृहरयो उतारे, तो निषेध करवो
एटा मैच्यादि भावो नी प्ररूपणा के विचारणा स्वहित मुख्य रारवी ने करवी । (१७) पू. भीम- भवो दधितारक -गुरुदेवश्री पण कच्छ मां अंचलगछ ना लोको ने पांचम ना दिवसे व्यारसा वांची आपना हना, तेमज स्वरतरगच्छ ना को को ने ऋण करेमि भंते उच्चरावता हवा, तेही नहि वांची आपवानो के नहि उच्चरावताना आग्रह नहि गखयों, तेमज वांची आपदाओं के उच्चराववामां मिध्याल मानवु नहे । (२०) रत्नाधि को अ पदस्थों को तथा पदस्योओ रत्नाधिको जो उचित व्यवहार साचववा मां उपेक्षा करती नहि।
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