Book Title: Vastu Chintamani
Author(s): Devnandi Maharaj, Narendrakumar Badjatya
Publisher: Pragnyashraman Digambar Jain Sanskruti Nyas Nagpur
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पास्तु चिन्तामणि पश्चिम में भोजनगृह, वायव्य में धन एवं अन्न संग्रह तथा उत्तर में जलस्थान निर्मित करने की व्यवस्था वास्तु नियमों के अनुकूल है। इसका रेखाचित्र दृष्टव्य है।
ठक्कर फेरु कृत्त वास्तुसार में श्लोक क़. 107 एवं 108 में भी भवन निर्माण की आयोजना प्रदर्शित है। इसका श्लोक एवं चित्र भी दृष्टव्य है। इसी तरह विश्वकर्मा प्रकाश, नादर संहिता, वाराहाचार्य कृत वृहत् संहिता, किरण तन्त्र आदि ग्रन्थों में वर्णित भवन आयोजनाओं का श्लोक तो दिया ही है साथ ही अर्थ स्पष्ट करने के लिए रेखाचित्र भी दिए हैं। वास्त शास्त्र के प्राचीन ग्रन्थों का आधार लेकर बने ये रेखाचित्र आधुनिक वास्तुकारों की विचारधारा के लगभग अनुकूल ही हैं।
वास्तु परिकर एवं वेध प्रकरण में वर्णित तथ्यों का अच्छी तरह अध्ययन कर तदनुसार भवन निर्माण करना स्वामी के लिए शुभ एवं कल्याणकारक सिद्ध होगा। भूखण्ड तक जाने का रास्ता तथा भूखण्ड के आसपास के परिकर का भी प्रभाव भवनस्वामी पर पड़ता है। यहां तक कि विशिष्ट दूरी पर देवालय भी विपरीत प्रभावकारी हो जाते हैं। वास्तु परिकर विचार में इसका वर्णन स्पष्ट है।
खण्ड पंचम भूखण्ड प्रकरण है। ये ऐसे भूरवण्डों के लिए हैं जिनमें एक या दो पावों में सड़क है। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण में सड़क वाले भूखण्ड दिशाओं के नाम से उल्लेखित हैं। इनमें आधुनिक गृहों के निर्माण के लिए प्रसंगोचित सुझाव दिए गए हैं। प्रवेश की अपेक्षा तथा निर्माण कार्य की अपेक्षा क्या सावधानियां रखनी चाहिए, इनका स्पष्ट संकेत दिया गया है। मूल धारणा यह है कि पूर्वी पार्श्व की अपेक्षा पश्चिमी पार्श्व भारी होना चाहिए। भारी का आशय अधिक निर्माण से है। ईशान दिशा में कम से कम निर्माण हो जबकि नैऋत्य दिशा में भारी निर्माण हो। ईशान का तल नीचा हो जबकि नैऋत्य का ऊंचा। इसी भाति आग्नेय एवं वायव्य का भी तल ईशान से ऊंचा हो। कभी भी ईशान कोण काटा ना जाए। इसी भांति प्रत्येक प्रकार के भूखण्ड में प्रवेश निर्माणकार्य, सीढ़ी, चबूतरा, कम्पाउन्ड वाल, रिक्तभूमि, मार्गारम्भ, दरवाजे, फर्शतल, वाटिका, वृक्ष, कूप आदि की अपेक्षा से महत्त्वपूर्ण संकेत दिए गए हैं तथा इनके शुभाशुभ परिणाम भी वर्णित किए गए हैं।
सामान्यतया टक्षिण एवं नैऋत्य दिशा यम एवं दैत्य से सम्बन्धित समझी जाती हैं तथा लोग इन्हें सर्वथा अशुभ मानते हैं। किन्तु परिस्थिति वश ऐसे भूखण्ड, मकान या दकान मिल जाते हैं जिन्हें त्याग करना असंभव होता है। यदि इन संकेतों को ध्यान में रखा जाए तो काफी हद तक दोष निवारण हो