Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College

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Page 12
________________ चाउरंगिज्जं [-३.२० माणुस्सं विग्गहं लड़े सुई धम्मस्स दुल्लहा। जं सोचा पडिवज्जन्ति तवं खन्तिमहिंसयं ॥८॥ आहच्च सवर्ण लद्धं सद्धा परमदुल्लहा। सोच्चा नेआउयं मग्गं वहवे परिभस्सई ॥९॥ सुई च लढे सद्धं च वीरियं पुण दुल्लहं। बहवे रोयमाणा वि नो य णं पडिवज्जए॥१०॥ माणुसत्तंमि आयाओ जो धम्म सोच्च सद्दहे। तवस्सी वीरियं लड़े संवुडे निद्धणे रयं ॥११॥ सोही उज्जुयभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ट । निवाणं परमं जाइ घयसित्ति व्व पावए ॥१२॥ विगिंच कम्मुणो हेउं जसं संचिणु खन्तिए। सरीरं पाढवं हिच्चा उट्ठे पक्कमई दिसं ॥१३॥ विसालिसेहि सीलोहिं जक्खा उत्तरउत्तरा। महासुक्का व दिप्पन्ता मन्नन्ता अपुणच्चवं ॥ १४ ॥ अप्पिया देवकामांणं कामरूवविउविणो। उहूं कप्पेस चिटन्ति पुव्वा वाससया बहू ॥१५॥ तत्थ ठिच्चा जहाठाणं जक्खा आउक्खए चुया। उवेन्ति माणुसं जोणिं से दसंगेऽभिजाई ॥१६॥ खेत्तं वत्थु हिरण्णं च पसवो दासपोरुसं। चत्तारि कामखन्धाणि तत्थ से उववज्जई ॥ १७ ॥ मित्तवं नायवं होइ उच्चागोए य वण्णवं। अप्पायंके महापने अभिजाए जसोबले ॥ १८ ॥ भोच्चा माणुस्सए भोए अप्पडिरूवे अहाउयं । पुल्विं विसुद्धसद्धम्मे केवलं बोहि बुज्झिया ॥ १९ ॥ चउरंगं दुल्लहं मत्ता संजमं पडिवज्जिया। तवसा धुयकम्मंसे सिद्ध हवइ सातए ॥ २०॥ त्ति कमि ।। ॥ चाउरंगिज्जं समत्तं ॥३॥

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