Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): R D Wadekar, N V Vaidya
Publisher: Fergussion College
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२.४२
उत्तराध्ययनसूत्रम् २१ निरट्टगम्मि विरओ मेहुणाओ सुसंवुडो।
जो सक्खं नाभिजाणामि धम्मं कल्लाणपावगं ॥४२॥ तवावहाणमादाय पडिमं पडिवज्जओ।
एवं पि विहरओ मे छउमं न नियट्टई ॥४३॥ २२ नत्थि नृणं परे लोए इड्डी वावि तवस्सियो।
अदुवा वंचिओ मि त्ति इइ भिक्खू न चिन्तए ॥४४॥ अभू जिणा अस्थि जिणा अदुवावि भविस्सई। मुसं ते एवमाहंस इइ भिक्खू न चिन्तए ॥४५॥ एए परीसहा सव्वे कासवेण निवेइया। जे भिक्खू न विहम्मेज्जा पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ ४६॥ त्ति बेमि॥
॥ परीसहज्झयणं समत्तं ॥२॥
॥ चाउरंगिज्ज तृतीयं अध्ययनम् ॥ चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जन्तुणो। माणुसत्तं सुई सद्धा संजमंमि य वीरियं ॥१॥. समावन्नाण संसारे नाणागोत्तासु जाइ। कम्मा नाणाविहा कट्ट पुढो विस्सभिया पया ॥२॥ एगया देवलोएसु नरएसु वि एगया। एगया आसुरं कायं आहाकम्महि गच्छई ॥३॥ एगया खत्तिओ होइ तओ चण्डालवोक्कसो। तओ कीडपयंगो य तओ कुन्थुपिपीलिया ॥४॥ एवमावडजोणी पाणिणो कम्मकिन्बिसा। न निविज्जन्ति संसारे सव्वद्येसु व खत्तिया ॥५॥ कम्मसंगोह सम्मुढा दुक्खिया बहुवेयणा। अमाणुसासु जोणीस विणिहम्मान्ति पाणिणो ॥६॥ कम्माणं तु पहाणाए आणुपुवी कयाइ उ । जीवा सोहिमणुप्पत्ता आययन्ति मणुस्सयं ॥७॥

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