Book Title: Universal Values of Prakrit Texts
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Bahubali Prakrit Vidyapeeth and Rashtriya Sanskrit Sansthan
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१. कर्नाटक सरकार के आर्थिक सहयोग से बाहुबली प्राकृत विद्यापीठ, श्रवणबेलगोला में एक श्रुतकेवली भद्रबाहु राष्ट्रीय
प्राकृत पुस्तकालय शीघ्र स्थापित की जाय, जिसमें विश्वभर में प्रकाशित प्राकृत, पालि, अपभ्रंश, संस्कृत, हिन्दी एवं
कन्नड के सभी संदर्भग्रंथ उपलब्ध हों। इससे भारतीय भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन को बल मिलेगा। २. केन्द्र एवं राज्य सरकार के सहयोग से पूर्ण अनुदानित एक बाहुबली प्राकृत विद्यापीठ (बाहुबली प्राकृत विश्वविद्यालय)
की स्थापना श्रवणबेलगोला मे की जाय। इसमें प्राकृत,अपभ्रंश, संस्कृत, कन्नड एवं हिन्दी भाषाओं के जैन साहित्य के
साथ जैन इतिहास, संस्कृति, कला, शिलालेख एवं पाण्डुलिपि शास्त्र-शिक्षण एवं शोधकार्य होगा। ३. भारत की केन्द्र सरकार द्वारा विदेशों में जहाँ पर भी भारत के राजदूत (एम्बेसेडर) नियुक्त हैं, उनके साथ एक
प्राच्यभाषाविद सहयोगी अधिकारी नियुक्त किया जाय, जो संस्कृत, प्राकृत, पालि आदि प्राचीन भाषाओं एवं उनके
साहित्य का जानकार हो। यह अधिकारी विदेशों में भारत की प्राचीन संस्कृति के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देगा। ४. केन्द्र एवं राज्य सरकार और सामाजिक शोध संस्थाओं के सहयोग से वर्ष २०१२ में भारत की किसी एक सांस्कृतिक
नगरी में प्रथम विश्व प्राकृत सम्मेलन आयोजित किया जाय। इसके लिए अभी से एक आयोजन समिति गठित कर उसका कार्यालय स्थापित किया जाय । संगोष्ठी में समागत सभी विदेशी एवं भारतीय विद्वानों ने यहाँ श्रीक्षेत्र श्रवणबेलगोला में ससंघ विराजमान परमपूज्य विद्यावाचस्पति आचार्यश्री १०८ सुविधि सागर जी महाराज के पावन दर्शन किये एवं उनसे व्यक्तिगत तत्त्वचर्चा का भी लाभ लिया।
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