Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोय पण्णत्ती
[ गाथा : ३२
अर्थ – जम्बूद्वीपका विस्तार एक लाख योजन प्रमाण है। इसके आगे लवणसमुद्र से लेकर स्वयम्भूरमण समुद्र पर्यन्त द्वीप समुद्रोंके विस्तार प्रमाण क्रमशः दुगुने दुगुने हैं ।। ३२ ॥
विशेषार्थ - प्रत्येक द्वीप - समुद्रका विस्तार इसप्रकार है
5
४.
५.
1
口
नाम
जम्बूद्वीप
लवर समुद्र
धातकी खण्ड
कालोदधि
पुष्करवरद्वीप
पुष्करवर समुद्र
विस्तार
१ लाख योजन
२ लाख योजन
४ लाख योजन
९.
८ लाख योजन
१०.
१६ लाख योजन
११.
३२ लाख योजन | १२
३५८४
क्र०
७.
५६
5.
एवं भूववरसायर-परियंतं दटूलध्वं 1 धण जोयणाणि ३५ ।।
वारुणीवर द्वीप
वारुणीवर समुद्र
क्षीरवर द्वीप
क्षीरवर समुद्र
घृतवर द्वीप
घृतवर समुद्र
वित्वारो ॥ धण जोयणाणि ७५ ॥ देववर दीव ॥
२२४
**4
धण ७५ ॥ अविवरदीव ॥ धण सयंभुवरदीव धण १८७५० ॥
धण ७५०००।
नाम
विस्तार
६४ लाख योजन
१२८ लाख योजन
२५६ लाख योजन
५१२ लाख योजन
१०२४ लाख योजन २०४८ लाख योजन
तस्सोयरिमज्जक्लयर दीवस्स
जक्खवर समुद्द वित्थारो ||
धण ३७५ ॥ देववर समुद्द || घण ६३७५ ॥ अहिंदवरसमुद्द ३७५०० || सयंभु रमणसमुद्द
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अर्थ - इसप्रकार भूतवर-सागर पर्यन्त ले जाना चाहिए। उसके ऊपर --
यक्षrर द्वीपका विस्तार [ जगच्छ्रेणी ३५८४ = षे यक्षवर समुद्रका विस्तार [ ० ० ÷ १७९२ = देववर द्वीप का विस्तार [ ज० ० ÷ ८९६ = देववर समुद्र का विस्तार [ ज० श्र०÷४४६ = अहीन्द्रवर द्वीप का विस्तार [ ज० ० : २२४ - अहीन्द्रवर समुद्र का विस्तार [ ० ० ÷ ११२१ स्वयम्भूरमणद्वीप का विस्तार [ज० श्र े० ÷ ५६ = स्वयम्भूरमणसमुद्र का विस्तार [ज० श्र० २८
६
यो० ।
राजू ] + ३५ यो० 1 राजू ]+ राजू ]+ ३७५ यो० । राजू ]+
यो० ।
राजू ] + ९३७५ यो० ।
राजू ] + १८७५० यो० ।
राजू ] + ३७५०० योजन । राजू ] + ७५००० योजन है ।
११२
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