Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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२० ]
तिलोयपण्णी
[ गाथा : ६६-७१
अर्थ-वापियोंके दोनों बाह्य कोनों में से प्रत्येक में स्वर्णमय रतिकर नामक दो पर्वत दधिमुखोंके आकार सहश हैं ।। ६७ ॥३
जोयण - सहस्स वासा, तेसिय- मेत्तोदया य पसवक ।
अढाइ
सयाइ य, अवगाढा रतिकरा' गिरिणो ।।६८ ||
१००० | १००० । २५० ।
अर्थ -- प्रत्येक रतिकर पर्वतका विस्तार एक हजार (१०००) योजन, इतनी (१००० यो० ) ही ऊँचाई और अढ़ाई सौ ( २५० ) योजन प्रमाण अवगाह ( नींव ) है ।। ६८ ।।
ते च च उ-कोणेसु एक्केबक- दहस्स होंति चचारि ।
1
लोयविणिच्छिय कत्ता, एवं
पाठान्तरम् ।
प्रयं - वे रविकर पर्वत प्रत्येक ग्रहके चारों कोनोंमें चार होते हैं, इसप्रकार लोक विनिश्चय कर्ता नियमसे निरूपण करते हैं ।। ६६ ।1
गियमा परुवंति || ६ ||
नन्दीश्वरी की प्रत्येक दिशामें तेरह-तेरह जिनालयों की प्रवस्थिति
एक्क --- अंजण- वहि मुह-रइयर - गिरीण सिहरम्मि ।
age वर रयणमओ, एक्केषक- जिणिद-पासावो ॥७०॥
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अर्थ – एक अञ्जनगिरि, चार दधिमुख और आठ रतिकर पर्वतोंके शिखरों पर उत्तम रत्नमय एक-एक जिनेन्द्र मन्दिर स्थित हैं ।। ७० ।।
नन्दीश्वरद्वीप स्थित जिनालयोंकी ऊँचाई प्रादिका प्रमारण
जं भहसाल - वरण- जिण घराण उस्सेह-पहूदि उनइट्ठ
तेरस जिण भवणाणं तं एदाणं पि वत्तव्यं ॥७१॥
पाठान्तर ।
भवनों की भी कहना चाहिए ॥ ७१ ॥
अर्थ --- भद्रशाल बनके जिन ग्रहोंकी जो ऊँचाई प्रादि बतलाई है, वहीं इन तेरह जिन
विशेषार्थं -- चतुर्थाधिकार गाथा २०२६ में भद्रशालवन स्थित जिनालयोंकी लम्बाईौड़ाई आदि पाण्डुकवन स्थित जिनालयोंकी लम्बाई-चौड़ाई आदिले चौगुनी कही गई है और इसी
१. ६. ब. रतिकर । २. ज. गिरिणा । ३. द. ब. क. ज. चेति हूँ ।