Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाया । ३१०-३१४ ]
agat महाहियारो
श्रृटु-चउ-दुग सहस्सा, एक सहस्स सणवकुमार दुगे । बम्हम्मि लंतथिदे, कमेण महसुक्क • इंदम्मि ॥ ३१० ॥
Cons ४००० | २००० | १००० ।
अर्थ- सनत्कुमार और माहेन्द्र, ब्रह्मन्द्र, लान्तवेन्द्र तथा महाशुकेन्द्रको एक-एक ज्येष्ठ देवीके क्रमशः आठ हजार, चार हजार, दो हजार और एक हजार परिवार देवियां होती हैं ।। ३१०।।
पंच सया देवीप्रो, होति सहस्सार इंब देखीणं ।
अड्डाइज्ज साणि, आरणद इंदादिय - चउक्के ॥ ३११ ॥
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५०० । २५० ।
- सहस्रार इन्द्रकी प्रत्येक ज्येष्ठ देवीके पांच सौ ( ५०० ) परिवार देवियाँ और मानवेन्द्र आदिक चारकी प्रत्येक ज्येष्ठ देवीके अढ़ाई सौ ( २५० ) परिवार देवियां होती है ||३११॥
इन्द्रोंकी वल्लभा और परिवार बल्लभा देवियां -
बत्तीस सहस्ताणि, सोहम्मदुगम्मि होंति वल्लहिया । पत्तेक्कमड' - सहस्सा, सणवकुमारिव जुगलम्मि ॥ ३१२ ॥
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३२००० । ३२०००
८००० | ८००० |
- सौधर्मद्विक ( सौधर्म और ईशान ) में प्रत्येक इन्द्रके बत्तीस हजार ( ३२००० ) और सनत्कुमार आदि दो ( सनत्कुमार और महेन्द्र इन दो ) इन्द्रोंमें प्रत्येकके श्राठ ( आठ ) हजाय वल्लभा देवियाँ होती हैं ।। ३१२ ।।
बहवे दु सहस्सा, पंचसयाणि च लतविम्मि ।
अड्डाइज्ज सर्वाणि हवंति महसुक्क इंदम्मि ॥ ३१३ ॥
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१. द. क. अ. ठ. मठ्ठे
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२००० | ५०० | २५० ।
ब्रह्मन्द्रके दो हजार (२०००), लान्सबेन्द्र के पाँच सौ ( ५०० ) और महाशुकेन्द्रके अढ़ाई सौ ( २५० ) वल्लभा-देवियाँ होती हैं ।। ३१३॥
पणुवीस- जुदेवक-सयं, होंति सहस्सार-इंद-वल्लहिया ।
प्राणद
पाणद
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[ ५१७
प्रारण - अच्चद इंदारण तेसङ्घी ॥ ३१४ ॥
१२५ | ६३ ।
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