Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 668
________________ ६०० ] तिलोयपण्णत्ती अय्याबाहा रिट्ठा, एक्करस- सहस्स एक्क रस- जुसा । अणलाभा वहि-समा, सुराभा गद्दतोय-सारिच्छा ।।६४६ ॥ ११०११ | ७००७ । ६००६ । अर्थ- - श्रध्याबाध और अरिष्ट प्रत्येक ग्यारह हजार ग्यारह (११०११) हैं । अनलाभ वह्नि देवों के सद्दश ( ७००७ ) और सूर्याभ गर्दतोयों के सदृश ( ९००९ ) हैं ||६४६॥ अव्वाबाह- सरिच्छा, चंदाभ' सुरा हवंति सच्चाभार । सहस्सं, तेरस जुत्ताए संखाए ॥ ६५० ॥ अजुदं तिण्णि ११०११ । १३०१३ । अर्थ- चन्द्राभ देव प्रव्याबाधोंके सदृश ( ११०११ ) तथा सत्याम तेरह हजार तेरह ( १३०१३ ) हैं ।। ६५० ॥ [ गाथा : ६४९-६५३ पण्णरस- सहस्साणि, पण्णरस-जुबारिग होंति से प्रक्खा । खेमंकराभिधाणा, ससरस सहस्सयाणि सतरसा ।।६५१ ।। १५०१५ | १७०१७ । अर्थ---श्रं यस्क पन्द्रह हजार पन्द्रह ( १५०१५ ) और क्षेमङ्कर नामक देव सत्तरह हजार सतरह ( १७०१७ ) होते हैं ।। ६५१ ।। - ४. द. व. तर खस्स उणवीस - सहस्साणि, उणवीस जुत्तानि होंति जिसकोट्ठा । इगिवस सहस्वाणि, इगिवीस जुवाणि कामधरा ।। ६५२ || १६०१६ | २१०२१ । अर्थ- वृषकोष्ठ उन्नीस हजार उन्नीस ( १६०१६ ) और कामधर इक्कीस हजार इक्कीस ( २१०२१) होते हैं । ६५२ ।। निम्माणराज - णामा, तेवीस सहस्सयाणि तेबीसा । पणुवीस-सहस्सा रंग, पणुवीस-जुदाणि वितरषखा य ।।६५३ ॥ २३०२३ । २५०२५ । - १. द. ब. क. ज. उ. चंदाभासुर । २. द. व. क. ज. 5. संखाभा । ३. व. ब. क. ज. ठ, सेअध्या ।

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