Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 675
________________ गाथा 1 ६८१ ] अट्ठमो महाहियारो [ ७ परालबम--- पाएकालजमसिद्धनाम : |--- :-: -:-...-:.'-:..:....स्नुष पोदारातलम m00000ोजन विस्तार / सिद्ध शिला ईषत्मारभार आठवीं पृथ्वी 120CTarat AIMER T REET ARTYPREनमापन गतिलपत्र १२योजन शर्मा सिडी विमान १०...योजन विस्तार ---- राज अस नाली विशेषार्थ--सर्वार्थ सिद्धि विमान के ध्वजदण्ड से १२ योजन ऊपर जाकर क्रमशः बीस-बीस हजार मोटे धनोदधि, धन और तनु-वातवलय हैं; इसके बाद पूर्व-पश्चिम एक राजू विस्तार वाली ईषत्प्राम्भार नामक ८वीं पृथिवी है । यह पृथिवी उत्तर-दक्षिण ७ राजू लम्बो और ८ योजन मोटी है। इसका घन फल प्रथमाधिकार पृष्ठ १३६ के अनुसार (१ राज विस्तृत x ७ राजू आयत ४६ योजन बाल्य को जगत्प्रतर रूप से करने पर ) ४६ वर्गराजू योजन प्रमाण है । ___ इस पृथिवी के बहमध्य भाग में उत्तान ( ऊर्ध्वमुख ) छत्र के प्राकार सहस आकार वाला और ४५ लाख योजन विस्तृत ईषत्प्राम्भार नामक क्षेत्र (सिद्ध-शिला ) है । इस शिलाका मध्य बाहल्य ८ योजन और अन्त ( के दोनों छोरों का ) बाहल्य एक-एक अंगुल प्रमाण है । इसकी सूक्ष्म

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