Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
गाथा : १६२-१६५ ]
पंचमी महाहियारो
[ २८१
विशेषार्थ :- गाथा १२१ में मेरु पर्वतसे चन्द्रकी अभ्यन्तर दीथीका जो अन्तर प्रमाण ४४६२० योजन कहा गया है वह एक पार्श्वभागका है। दोनों पार्श्वभागका अन्तर अर्थात् चन्द्रकी अभ्यन्तर बीथीका व्यास और सुमेरुका पूल विस्तार [ ४४००२ ) + १०००० ] = Ec६४० योजन है । इसकी परिधिका प्रमाण ९९६४० x १०= ३१५०७६ योजन प्राप्त हुआ । जो शेष बचे ये छोड़ दिये गये हैं ।
I
परिधि के प्रक्षेपका प्रमाण ----
साणं वीहीणं, परिही परिमाण जाणण- णिमित्तं' ।
परिहि खेवं भणिमो, गुरूवदेसानुसारेणं ॥ १६२॥
अर्थ :- शेष वीथियोंके परिधि प्रमाणको जानने के लिए गुरुके उपदेशानुसार परिधिका
प्रक्षेप कहते हैं ।। १६२।।
चंद पह सूइ बड्ढी - दुगुरणं काढूण वग्गणं च ।
·
-
दस - गुणिदे अंमूलं, 'परिहि खेथो स गादी ।। १६३।।
७२ । १५६ ।।
प्र-चन्द्रपथों की सूची - वृद्धिको दुगुना करके उसका वर्ग करनेपर जो राशि उत्पन्न हो उसे दससे गुणा करके वर्गमूल निकालनेपर प्राप्त राशिके प्रमाण परिधिप्रक्षेप चाहिए ।।१६३ ।।
जानना
सयमंता । अन्भहिया ॥ १६४ ॥
तीसुतर-बे-सय- जोधणाणि तेदाल जुत्त हारो चचारि सया, सत्तावीसेहि २३० । ३ ।
पर्थ - प्रक्षेपकका प्रमारण दो सौ तीस योजन और एक योजनके चार सौ सत्ताईस भागों में से एक सौ तैंतालीस भाग अधिक ( २३०४४३ यो० ) है ।। १६४ ।।
=
२३३२ यो० बचे जो छोड़
विशेषार्थ- चन्द्रपथ सूची- वृद्धि के प्रमाण का दूना ( ३६२५६ × २ ) होता है, ग्रतः (२) २ x १०१०३५३ योजन प्राप्त हुए और ५३४३१ अवशेष दिए गये हैं । इसप्रकार 43 - २३०१४३ योजन परिधि प्रक्षेप का प्रमाण प्राप्त हुआ । चन्द्रको द्वितीय आदि पथोंकी परिधियोंका प्रमाणतिय-जोयण- लक्खाणि, पण्णणरस - सहस्स-ति-सय- उणवीसा । तेदाल जुद सयंसा, बिदिय पहे परिहि परिमाणं ॥ १६५ ॥ ३१५३१९ । ¥¥३ ।
१. ६. ब. गमितं । २. द. न. परिह्निक्खेदं । ३. द. ब. क. ज. परिक्खेद्यो ।