Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
गाथा : १४०-१४६ ]
अमो महाहियारो
णामे सणकुमारो, तेसु उत्तर बिसाए सेढिगया । पवणीसाणे' संठिय पइण्णया होंति माहिं ॥ १४० ॥
अर्थ - अञ्जन आदि सात इन्द्रक एवं उनके पूर्व, दक्षिण और पश्चिमके श्र ेणीबद्ध तथा नैऋत्य एवं प्राग्नेय दिशामें स्थित प्रकीर्णक, इनका नाम सनत्कुमार कल्प है। इन्हींकी उत्तर दिशा में स्थित श्र ेणीबद्ध और पवन एवं ईशान दिशा में स्थित प्रकीर्णक, ये माहेन्द्र कल्पमें हैं ।। १३९-१४० ।। रिट्ठादी चत्तारो, एवाणं च विसासु सेढिगया ।
विदिसा पइण्णयाणि, ते कप्पा ब्रम्ह णामे ॥ १४१ ॥
-
अ-अरिष्टादिक चार इन्द्रकों तथा इनकी चारों दिशाओंके श्ररेणीबद्ध और विदिशाओं के प्रकीर्णकका नाम ब्रह्म रूप है ।। १४१ ।।
पाई |
बम्हहिवयादिवर्थ एवाणं च विसासु सेटिगया ।
विदिसा पहण्णयाई, णामेणं लंतवो कप्पो ॥ १४२ ॥
-
·
म - ब्रह्महृदयादिक दो इन्द्रकों और इनकी चारों दिशाओं में स्थित श्रेणीबद्ध तथा विदिशाओंके प्रकीर्णकोंका नाम लान्तव कल्प है ।। १४२ ।।
shrihar नाम महाशुक्र करूप है || १४३ ||
महसुक्क -इंदओ तह, एदस्स य चड-बिसालु सेडिगया ।
विविसा पइण्णयाई, कप्पो महसुक्क - जामेगं ॥ १४३॥
-
-
अर्थ – महाशुक इन्द्रक तथा इसको चारों दिशाओं में स्थित श्रेणीबद्ध और विदिशाओं के
म
इंवय सहस्तयारी, एक्स्स चच विविसा पद्दण्णयाई, होदि
दिसासु सेडिगया । सहस्सार णामेणं ॥ १४४ ॥
[ ४७५
अर्थ – सहस्रार इन्द्रक और उसकी धारों दिशाओं में स्थित श्रेणीबद्ध एवं विदिशाओं के प्रकीर्णकों का नाम सहस्रार कल्प है ।। १४४ ।
-
श्राण- पहूदी छक्कं एवस्स य पुण्य अवर- वक्खिणदो ।
सेढीबद्धा णइरदि - अणल-बिस द्विव पहण्णामि ॥ १४५ ॥
-
·
श्राणद- आरण णामा, दो कप्पा होंति पाणवच्चुवया ।
उत्तर- दिस-सेढिगया, समीरणीसाग दिस-पइष्णा य ॥१४६॥
1
१. . . पवणी माणं सहिद, क. ज. उ. पणयसादि २. द. व. पइन्णमा, ज. ठ ३ द.व. क. ड. 3. अरिगल ।