Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपणतो
[ गाथा : २२६-२३० बम्हिदे चालीसं, सहस्स-अब्भहिय हुवे दुवे लक्खा । लंतषए दो-लक्खं, बि-गुणिय-सोदो-सहस्स-महसुक्के ॥२२६।।
२४०००० । २००००० । १६०००० । प्रर्य-सनरक्षक देव ब्रह्मन्द्र के दो लाख चालीस हजार ( २४७०००), लान्तब इन्द्र के दो लाख ( २००००० ) और महाशुक्र इन्द्रके द्विगुणित अस्सी हार अर्थात् एक लाख साठ हजार ( १६०००० ) होते हैं ।।२२६।।
वि-गुणिय-सद्वि-सहस्स, सहस्सयारिवयम्मि पत्तेक्कं । सोदि - सहस्स - पमाणे, उबरिम-चत्तारि-इंदम्मि ॥२२॥
१२००००। ८००००। ८००००। ८०००० । ६०००० ।
प्र-तनुरक्षक देव सहस्रार इन्द्र के द्विगुणित साठ हजार ( १२००००) और उपरितन चार इन्द्रों से प्रत्येकके अस्सी हजार ( ८००००) प्रमाण होते हैं ।।२२७॥
अभ्यन्तर-मध्यम और बाह्य परिषदके देवप्रभंतर-परिसाए, सोहम्मिवाण बारस - सहस्सा । चेते सुर - पवरा, ईसाणिवस्स बस - सहस्साणि ॥२२॥
१२००० । १००००। अर्थ-सौधर्म इन्द्रकी अभ्यन्तर परिषदें बारह हजार ( १२०००) और ईशान इन्द्रकी अभ्यन्तर परिषदमें दस हजार ( १००००) देव स्थित होते हैं ।।२२८॥
तविए अट्ट - सहस्सा, माहिबिदस्स छस्सहस्साणि । घम्हिदम्मि सहस्सा, चत्तारो दोणि संतविदम्मि ॥२२॥
८००० १६००० । ४००० । २००० । प्रयं-तृतीय ( सनत्कुमार इन्द्रकी अश्यन्तर परिषद) में पाठ हजार ( ८०००), माहेन्द्र की ( अभ्यन्तर परिषद ) में छह हजार ( ६०००), ब्रह्मन्द्र की ( अभ्यन्सर परिषद् ) में चार हजार (४०००) और लान्तव (इन्द्रकी अभ्यन्तर परिषद् ) में दो हजार ( २०००) देव होते हैं ।।२२६।।
सत्समयस्स सहस्सं, पंच • सयाणि सहस्सयारिदे । आणव-ईवादि-दुगे, पत्तक्क दो • सयाणि पण्णासा ॥२३०॥
१००० । ५०० । २५० । २५० ।