Book Title: Tiloypannatti Part 3
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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सत्तमो महाहियारो
प्रथम पथ स्थित सूर्य की क्रमश: दस परिधियोंमें ताप परिधियोंका प्रमाण --
णव य सहस्सा उसय, छासीदो जोयणाणि तिष्णि-कला | पंच-हिदा ताव- खिदी, मेरु-णगे पढम पह ठिकम्मि ।१२६७॥
गाथा | २६७-३०० ]
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९४८६ । ३ ।
अर्थ - सूर्य के प्रथम पथ में स्थित रहनेपर मेरु पर्वत के ऊपर नौ हजार चार सौ छघासो योजन और पाँचसे भाजित तीन कला प्रमाण ताप-क्षेत्र रहता है ।। २९७॥
विशेषार्थ - मेरु पर्वत की परिधिको ३ से गुणित कर १० का भाग देनेपर मेरु पर्वत के ऊपर ताप क्षेत्रका प्रमाण ( ३३ ) = ९४८६३ योजन प्राप्त होता है ।
खेमा पण लेनसर ति-सय- अडबीसा' ।
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सोलस-हिदा तियंसा, ताथ - खिदी पढम-पह ठिकम्भि ||२६८ ॥
५३३२८ । २६ ।
अर्थ --- सूर्य के प्रथम पथमें स्थित रहनेपर क्षेमा नामक नगरीके प्रणिधिभाग में ताप क्षेत्रका प्रमाण तिरेपन हजार तीन सौ अट्ठाईस योजन और एक योजनके सोलह भागों में से तीन भाग अधिक होता है ||२८||
(2321)×
विशेषार्थ - क्षेमा नगरी के प्ररिधिभागकी परिधि १७७७६०३ यो० =२५३३५१५३३२८६६ योजन |
[ ३१६
खेमपुरी- पणिधीए, अडवण्ण-सहस्स चउसयारणं पि । पंचत्तरि जोयणया, इगिवाल-कलाओ सीदि-हिया ॥ २६६॥
५८४७५१ । ।
अर्थ- यह तापक्षेत्र क्षेमपुरीके प्रणिधिभाग में अट्ठावन हजार चार सौ पचत्तर योजन और अस्सीसे भाजित इकतालीस कला प्रमाण रहता है ।। २९९ ।।
विशेषार्थ - क्षेमपुरीके प्रणिविभागको परिधि १६४६१८६ यो० = ( १५५६३४७ ) × १० = ५८४७५] योजन तापक्षेत्रका प्रमाण ।
१. प. प्रतीसा ।
रिट्ठाए पणिधीए, बासट्ठि सहस्स णव सयाणं पि । एक्कारस जोयणया, सोलस-हिद- पण-कलाओ ताव- खिदी ||३००।
६२९११ ।। ।
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